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Kumar Vishwas: जब गोपियों के पलटवार पर निरुत्तर हो गए उद्धव, कुमार विश्वास ने सुनाई द्वापर युग की कथा

Kumar Vishwas Party: बचपन में श्री कृष्णा अपनी बाल लीलाओं के लिए प्रसिद्ध थे, और मुस्कुराते हुए कहते है की श्री कृष्णा का बचपन ठीक वैसा ही था जैसा कि बचपन होना चाहिए.

Kumar Vishwas: जब गोपियों के पलटवार पर निरुत्तर हो गए उद्धव, कुमार विश्वास ने सुनाई द्वापर युग की कथा
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Updated: Jun 24, 2022, 01:23 PM IST

kumar vishwas krishna story: जी टीवी और जी फाइव पर शनिवार और रविवार को प्रसारित होने वाले शो 'स्वर्ण स्वर भारत' में कुमार विश्वास की जुबानी प्रेमावतार श्री कृष्ण के बचपन की कहानी आईये जानते हैं, कुमार विश्वास ने कैसे श्री कृष्ण के बचपन को सुनाया और द्वापर युग के बारें में बताया, जिसके बाद पूरा मंच तालियों से गूंज उठा.

Kumar Vishwas Child Story of Krishna: कुमार विश्वास कार्यक्रम के एक एपिसोड में कृष्ण के बचपन को सुनाते हैं, और बताते है की कृष्ण के जीवन और देवत्व का आधार ही प्रेम है, इसलिए उन्हें प्रेमावतार श्री कृष्ण कहा गया है और इसलिए पूरे वृन्दावन की गोपियां उनकी दीवानी थीं, मंच पर पधारे भागवताचार्य और जया किशोरी भी कथा के दौरान मंद मंद मुस्कान और तालियों के साथ पूरा आनंद ले रहे थे.

कृष्ण का बचपन

कुमार विश्वास कहते हैं, कि बचपन में श्री कृष्णा अपनी बाल लीलाओं के लिए प्रसिद्ध थे, और मुस्कराते हुए कहते हैं कि श्री कृष्णा का बचपन ठीक वैसा ही था जैसा कि होना चाहिए, आनंद में डूबा हुआ, एकदम सरल और खूब चंचल और ऐसे प्रेम को तो सब दुलारते हैं, पूरा व्रज कृष्ण का दीवाना था, और उनसे मिलने के लिए हमेशा गोपियां उनके नाम की शिकायत मां यशोदा के पास लेकर जाती थीं और सोचती थीं, क्या पता इसी बहाने कृष्ण से मिलने का साथ खेलने का मौका मिल जाए.

 

गोपियों की शिकायत और द्वापर युग

कुमार विश्वास कहते हैं, की जब-जब गोपियां कृष्ण की शिकायतें लगाती, तब-तब एक मीठे शब्दों के साथ कृष्ण अपनी मां यशोदा को सफाई देते थे,और कहते मां मैंने तो माखन खाया ही नहीं, और कब खाऊंगा सुबह ही सुबह तो तुमने मुझे गाय लेकर वन भेज दिया था, और आने में मुझे शाम हो गई मुझे समय ही नहीं मिलता मां ये गोपिकाएं सब झूठ बोलती हैं और कहते हैं कि ये लोग इतनी उंचाई पर माखन रखती हैं कि मेरे छोटे छोटे हाथ ही नहीं पहुंचते. ये लोग मेरे मुंह पर माखन लगाती हैं और शिकायत लेकर आपके पास आ जाती हैं,  आप भी इन सबकी बात मान लेती हैं. इसी के साथ-साथ कुमार विश्वास कहते हैं कि इसी प्यार में, इसी मनोहार में और भेजे गए इस उपहार में पूरा युग बीता है, जिसे द्वापर युग कहते हैं.

प्रेम का शत्रु है अहंकार

कुमार विश्वास कहते हैं, कि एक बार परमसत्ता का साक्षात्कार हो जाए, तो अंदर का अहंकार अवश्य मिट जाता है, इसी प्रकार से कृष्ण ने भी अहंकार को दूर रखा और सब पर प्रेम लुटाया सब गोपिकाएं उनकी दीवानी थीं, लेकिन एक तो कहीं ज्यादा दीवानी थीं, जिसे हम सब वृषभानुजा यानि राधा के नाम से जानते हैं, जब कृष्ण गोकुल छोड़कर मथुरा चले गए, तो सब गोपियां यह जानकर पागल हो उठीं और राधा भी व्याकुल हो गईं, ऐसे में सभी गोपियों ने एक साथ उनके घर पर जाकर स्वयं नंदबाबा को विश्व अनसन चेतवानी एक युक्ति के माध्यम से प्रस्तुत की और कहा "राधिका जी है तो जी हैं सबे नतो पीहैं हलाहल नंद के द्वारे" अब यहां कर्तव्य और प्रेम दो दीवार खड़ी हैं, जो एक तो मथुरा का अधुपति बनाकर मथुरा का स्वराज्य स्थापना के लिए प्रेरित करता है और वही दूसरी ओर उनका प्यार जो केवल और केवल प्रेम जानती है.

कृष्ण के दरबार के ज्ञानी "उद्धव"

परमयोगी और ज्ञानी उद्धव ने कृष्ण से कहा कि आप इतने विराट व्यक्तित्व हैं, इतने ज्ञानवान हैं, लेकिन आप उन युवतियों के लिए इतने परेशान रहते हो, तो कृष्ण ने कहा मित्र तुम ज्ञानी ज्यादा हो तुम तो समझ गए, लेकिन जो दूर महिलाएं रहती हैं, उनको तुम समझाओ, मैंने उन्हें मेरे वापस आने का वचन दिया था, लेकिन यहां इतने आवश्यक काम हैं, की मैं जा नहीं पा रहा हूं, लेकिन आप तो महान ज्ञानी हैं, तो आप जो मुझे समझाते हो, यही ज्ञान आप उन महिलाओं को भी जाके देदो, और उद्धव के लिए सबसे बड़ी मुसीबत का काम ही यही था, तो जब उद्धव गांव पहुंचते हैं, और गोपियों को पता लगता है, की कन्हैया के यहां से सन्देश आया है तो गोपियों ने उद्धव को घेर लिया और जब सब आ गए,

तो उद्धव ने अपना ज्ञान देना शुरू किया, कि यह त्रिकुटी में भगवान को देखो और अंदर सांस भरो फिर बाहर निकालो आत्मा परमात्मा के भेद बताने लगे, इतने में गोपियों ने एक अच्छा पलटवार कर दिया और गोपिकाओं ने कहा की तुम्हारे बारे में बहुत सुना है तुम योग की बात करते हो, लेकिन वियोग की बात कर रहे हो, उद्धव निरुत्तर होकर सोच ही रहे थे की, एक गोपिका ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा की तुम गजब हो तुम ऐसे आदमी के साथ रहते हो जो सबको प्रेम करना सिखाता है, अनुराग सिखाता उसके साथ आपने ये सीखा की आप राग से बाहर निकलो वरना तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता, ये कथा प्रेम की नहीं थी बल्कि ये कथा तर्क के आगे प्रेम को समाप्त करने की कथा थी, ये कथा हमें अहंकार को दूर करना सिखाती है और प्रेम को बढ़ाने का आदेश देती है.

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