Pitru Paksha Tithi 2024: 'पितृ पक्ष' ऐसा समय होता है जब पितर मृत्युलोक में आते हैं और उनके सगे-संबंधी उनकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान आदि करते हैं. अपने परिजनों द्वारा दिए गए श्राद्ध प्रसाद से तृप्त होकर अश्विन महीने की अमावस्या को वापस पितृ लोक लौट जाते हैं. साथ ही अपने परिवारजनों को सुख, समृद्धि, वंश वृद्ध का आशीर्वाद देकर जाते हैं. अब सवाल यह है कि श्राद्ध की तिथि कैसे तय की जाती है, साथ ही परिजन की मृत्यु की तिथि ज्ञात ना होने पर किस दिन किसका श्राद्ध किया जाता है.
किसे करना चाहिए श्राद्ध कर्म
पितृ पक्ष में अपने पितरों की संतुष्टि के लिए श्राद्ध करना बहुत जरूरी होता है. वरना जो लोग अपने पूर्वजों अर्थात पितरों की संपत्ति का उपभोग तो करते हैं, लेकिन उनका श्राद्ध नहीं करते हैं, उन्हें पितृ दोष लगता है और जीवन में कई तरह के दुख-कष्ट पाते हैं.
अब प्रश्न यह है कि किस व्यक्ति को श्राद्ध करना चाहिए तो जिस मृत पिता के एक से अधिक पुत्र हों और उनमें पिता की धन-संपत्ति का बंटवारा न हुआ हों और वे सभी साथ रहते हैं तो श्राद्ध कर्म सबसे बड़े बेटे को करना चाहिए. वहीं संपत्ति का बंटवारा होने के बाद सभी बेटों को अलग-अलग श्राद्ध करना चाहिए. श्राद्ध कर्म अपने पूर्व की 3 पीढ़ियों का करना चाहिए, पिता, दादा, परदादा के साथ नाना-नानी भी शामिल हैं. इसके अलावा ससुर, ताऊ, चाचा, मामा, भाई, बहनोई, भतीजा, गुरु, शिष्य, जामाता, भानजा, फूफा, मौसा, पुत्र, मित्र, विमाता के पिता एवं इनकी पत्नियों का भी श्राद्ध करना चाहिए.
श्राद्ध की तिथि कैसे तय करें
जिस दिन परिजन की मृत्यु हुई हो उस तिथि से श्राद्ध की तिथि का निर्धारण होता है. यानि की जिस समय व्यक्ति ने अंतिम सांस ली हो और उस समय पंचांग के अनुसार जो तिथि हो पितृ पक्ष में उसी तिथि के दिन श्राद्ध करना चाहिए. वहीं तिथि ज्ञात ना होने की स्थिति में सर्व पितृ अमावस्या को श्राद्ध करें. इसके अलावा कुछ अन्य बातों का भी ध्यान रखें.
- जिन लोगों की मृत्यु सामान्य तौर से हुई हो और उस दिन चतुर्दशी तिथि हो तो उसका श्राद्ध पितृपक्ष की त्रयोदशी तिथि या अमावस्या के दिन श्राद्ध करें. स्वभाविक मृत्यु वाले परिजनों का श्राद्ध चतुर्दशी तिथि के दिन नहीं करना चाहिए.
- दुर्घटना, सांप के काटने से, आत्महत्या, हत्या या किसी भी तरीके से अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए व्यक्ति का श्राद्ध चतुर्दशी तिथि के दिन ही करें चाहे मृत्यु किसी भी तिथि के दिन हुई हो. ऐसे जातक का श्राद्ध उसकी मृत्यु की तिथि के दिन नहीं किया जाता.
- सुहागिन महिलाओं का श्राद्ध पितृ पक्ष की नवमी तिथि को करना चाहिए, चाहे उनकी मृत्यु किसी भी तिथि को हुई हो.
- ब्रह्मचारी या संन्यासियों का श्राद्ध पितृपक्ष की द्वादशी तिथि को ही करें.
- नाना-नानी का श्राद्ध अश्विन शुक्ल प्रतिपदा को ही करना चाहिए, चाहे उनकी मृत्यु किसी भी तिथि में हुई हो.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित हैNEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)