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Masan Holi 2023: यहां रंगों से नहीं श्‍मशान में चिता की राख से खेली जाती है होली, हैरान कर देगी इस प्रथा की कहानी

Kasi Masan Holi: बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में चिता की भस्म (Holi with ashes of pyre) से भी होली खेली जाती है. इस परंपरा को मसाने वाली होली कहा जाता है. मशहूर गायक पंडित छन्नूलाल मिश्रा ने इस होली को अपने गीत 'खेले मसाने में होली..दिगंबर खेलें मसाने में होली' में अद्भुत शब्दों में समझाया है.

Masan Holi 2023: यहां रंगों से नहीं श्‍मशान में चिता की राख से खेली जाती है होली, हैरान कर देगी इस प्रथा की कहानी
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Shwetank Ratnamber|Updated: Mar 01, 2023, 11:46 AM IST

Bhasma Holi 2023: भारत में होली का त्‍योहार (Holi Festival 2023) बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है. जगत के नाथ विश्वनाथ यानी भगवान शंकर की नगरी काशी में होली का उत्‍सव रंगभरी एकादशी (Rangbhari Ekadashi 2023) से ही शुरू हो जाता है. बनारस की इस खास होली में भगवान शिव के भक्‍त भोलेनाथ के साथ होली खेलते हैं, लेकिन यह होली बहुत अलग होती है.

चिता की राख से होली

काशी के महाश्‍मशान में रंगभरी एकादशी के दिन खेली गई होली बाकी होली से बहुत अलग होती है. जी हां, इस होली को मसान की होली कहते हैं. क्‍योंकि यहां रंगों से नहीं बल्कि चिता की राख से होली खेली जाती है. मोक्षदायिनी काशी नगरी के महाशमशान हरिश्चंद्र घाट पर चौबीसों घंटे चिताएं जलती रहती हैं. कहा जाता है कि यहां कभी चिता की आग ठंडी नहीं होती है. पूरे साल यहां गम में डूबे लोग अपने प्रियजनों को आखिरी विदाई देने आते हैं लेकिन साल में एकमात्र होली का दिन ऐसा होता है जब यहां किसी उत्सव जैसी खुशियां दिखती हैं. माना जाता है कि रंगभरी एकादशी को बाबा विश्वनाथ अपनी नगरी के भक्तों व देवी देवताओं के साथ अबीर से होली खेलते हैं. वहीं इसके अगले दिन मणिकर्णिका घाट पर बाबा अपने गणों के साथ चिता की भस्म की होली खेलते हैं.

सैकड़ों साल पुरानी है परंपरा 

इस साल भी वाराणसी में श्मशान घाट पर रंगों के साथ चिता की भस्म से होली खेली जाएगी. इस दौरान डमरू, घंटे, घड़ियाल और मृदंग, साउंड सिस्टम से निकलता संगीत जोर से बजता है. कहा जाता है कि चिता की राख से होली खेलने की परंपरा 350 साल पुरानी है. इसके पीछे की कहानी ये है कि भगवान विश्‍वनाथ अपने विवाह के बाद मां पार्वती का गौना कराकर काशी पहुंचे थे. तब उन्होंने अपने गणों के साथ होली खेली थी. लेकिन वे श्मशान पर बसने वाले भूत, प्रेत, पिशाच और अघोरियों के साथ होली नहीं खेल पाए थे. तब उन्‍होंने रंगभरी एकादशी के दिन उनके साथ चिता की भस्‍म से होली खेली थी. 

भूत-पिशाच को रोककर रखते हैं बाबा

माना जाता है कि बाबा विश्वनाथ के प्रिय लोग भूत, प्रेत, पिशाच जैसी शक्तियों को बाबा खुद इंसानों के बीच जाने से रोककर रखते हैं. इस खास होली की शुरुआत हरिश्चंद्र घाट पर महाश्मशान नाथ की आरती से होती है. जिसका आयोजन यहां के डोम राजा का परिवार करता है. परंपरा के मुताबिक पहले मसाननाथ की मूर्ती पर गुलाल और चिता भस्म लगाने के बाद घाट पर ठंडी हो चुकी चिताओं की रात उठाई जाती है और एक दूसरे के ऊपर फेंककर परंपरा के हिसाब से भस्म के साथ मसान वाली होली खेली जाती है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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