Maa Chamunda: रक्तबीज जैसे महापराक्रमी दैत्य का वध करने के बाद दैत्यराज शुंभ और निशुंभ के क्रोध की कोई सीमा न रही. बड़े-बड़े असुरों और लाखों की विशाल सेना के मारे जाने से आहत और क्रोधित निशुंभ देवी की ओर दौड़ पड़ा. उसके साथ असुरों की प्रधान सेना थी. इस सेना में शामिल बड़े-बड़े असुर देवी को मार डालने के लिए आतुर थे. महापराक्रमी शुंभ भी देवी चंडिका को मारने के लिए युद्ध स्थल पर जा पहुंचा. दोनों पक्षों में घोर संग्राम छिड़ गया. जिस तरह बारिश के मौसम में बादलों से पानी की झड़ी लग जाती है, ठीक उसी तरह से शुंभ और निशुंभ ने देवी की तरफ बाणों की लगातार बारिश शुरु कर दी. इधर देवी चंडिका भी चुप बैठने वाली तो नहीं थीं. वह भी अपने धनुष से बाणों की वर्षा कर असुरों के भेजे सारे बाण काटती रहीं. इसके साथ ही उन्होंने ऐसे शस्त्र चलाए, जिनसे दोनों दैत्यों के अंग घायल होने लगे.
निशुंभ ने चमकती हुई तलवार और ढाल के साथ देवी के वाहन सिंह के माथे पर हमला किया. इस पर देवी ने एक विशेष बाण चलाकर उसकी तलवार काटने के साथ ही उसकी ढाल के टुकड़े कर दिए. इसके बाद अत्यंत क्रोध में आकर उसने एक शक्ति चलायी तो देवी ने उस शक्ति को भी नष्ट कर दिया. अब उसने भाला उठाया तो देवी ने उसे भी चूर-चूर कर दिया और उसे इतना अधिक घायल कर दिया कि वह जमीन पर लोट लगाने लगा.
अपने पराक्रमी भाई निशुंभ की यह दशा देखकर वह खुद ही देवी अंबिका का वध करने के आगे बढ़ा. शुंभ ने देवी की ओर एक शक्ति फेंकी, जिसे उन्होंने निष्फल कर दिया और एक भाला उस पर निशाना कर चलाया, जिससे शुंभ बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा, लेकिन इसी बीच निशुंभ को होश आ गया और अपनी दस हजार भुजाएं कर देवी चंडिका को शस्त्रों के प्रहार से घेर दिया.
निशुंभ को अपनी ओर आता हुए देखकर देवी ने भाला फेंककर उसकी छाती को घायल कर दिया, लेकिन उसकी छाती से एक और भीमकाय पुरुष देवी को ललकारते हुए निकला तो देवी ने उसका मस्तक अपनी तलवार से काट डाला. तब तक सभी देवियां दैत्यों का संहार और भक्षण करने लगीं.