Bhojshala ASI Survey: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ के आदेश के बाद धार में भोजशाला का एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) सर्वेक्षण 22 मार्च 2024 से शुरू हो रहा है. ताकि यह सामने आ सके कि भोजशाला परिसर में किस तरह के प्रतीक चिन्ह, वास्तु शैली है. इस मामले को लेकर मौलाना कमालुद्दीन वेलफेयर सोसाइटी मध्य प्रदेश ने उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. आइए जानते हैं कि भोजशाला का इतिहास क्या है और इस पर क्यों विवाद चल रहा है.
भोजशाला का वैभवशाली इतिहास
मध्य प्रदेश के धार शहर में हजारों साल पहले राजा भोज का शासन था. राजा भोज परमार वंश के सबसे महान राजा थे और विद्या की देवी सरस्वती के उपासक थे. राजा भोज से साल 1034 में एक महाविद्यालय की स्थापना की, जिसे बाद में भोजशाला के नाम से जाना गया. इस महाविद्यालय में पढ़ने के लिए दूर-दूर से छात्र आते थे. राजा भोज ने इस कॉलेज में देवी सरस्वती का भव्य मंदिर भी बनवाया था.
कहा जाता है कि बाद में मुसलमानों ने इस मंदिर में मौलाना कमालुद्दीन की मजार बना दी थी. जबकि आज भी भोजशाला में देवी-देवताओं के चित्र मौजूद हैं और संस्कृत में श्लोक लिखे हुए हैं. इतना ही नहीं 18वीं शताब्दी में की गई खोदाई में देवी सरस्वती की प्रतिमा भी निकली थी, जिसे अंग्रेज लंदन ले गए. यह प्रतिमा आज भी लंदन के संग्रहालय में है और हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में इस प्रतिमा को वापस लेने की भी मांग की गई है.
121 साल बाद होगा सर्वे
भोजशाला सरस्वती मंदिर का पहले भी सर्वे हो चुका है. 1902-03 में एएसआई ने भोजशाली परिसर में खोदाई की थी. अब 121 साल बाद फिर से एएसआई की टीम भोजशाला के 50 मीटर परिक्षेत्र में अत्याधुनिक तकनीकों से जांच करेगी.
बता दें कि पूर्व में हुई जांच रिपोर्ट में जो फोटो लगाए गए थे, उसमें भगवान विष्णु और कमल का फूल स्पष्ट दिखाई दे रहा था. हिंदू धर्म में कमल के फूल को बेहद पवित्र माना गया है. धन की देवी मां लक्ष्मी कमल के आसन पर ही विराजिती हैं.