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Bhishma Vachan: अज्ञातवास में जब कौरव नहीं लगा पाए पांडवों का पता, फिर दरबार में भीष्म ने कही ये बात

Bhishma Pratigya: अज्ञातवास में पांडवों को पता न चल पाने के बाद दुर्योधन ने बैठक बुलाई. इस बैठक में सबकी बात सुनकर भीष्म पितामह ने युधिष्ठर के बारे में ये बात कही.

भीष्म वचन
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Shashishekhar Tripathi|Updated: Aug 26, 2022, 06:22 PM IST

Bhishma Pledge: पांडवों के वनवास में अज्ञातवास का एक वर्ष भी व्यतीत होने वाला था. दुर्योधन ने अपने गुप्तचरों को हर कहीं दौड़ाकर उनका पता लगाने का प्रयास किया, ताकि पांडवों को फिर से वनवास भेजा जा सके. इतनों दिनों में दुर्योधन भी इस बात को अच्छी तरह जान गया था कि अब वह पांडवों को शक्ति के बल पर नहीं हरा सकता है. वह इसी फिराक में था कि तेरहवें वर्ष के पूरा होने में कुछ दिन ही बचे हैं और यदि तेरहवें वर्ष का उनका अज्ञातवास ठीक से पूरा हो गया तो फिर पांडव मदमाते हाथी की तरह क्रोध में आएंगे जो कौरवों के लिए दुखदायी होगा.

अज्ञातवास में पांडवों की पहचान के लिए दुर्योधन ने की बैठक

दुर्योधन ने अपने लोगों की बैठक बुलाकर कहा कि किसी भी तरह पांडवों का पता लगाओ, ताकि वे अपने क्रोध को पीकर फिर से वन को चले जाने को मजबूर हो जाएं और हमारा राज्य सभी प्रकार की विघ्न बाधाओं से मुक्त होकर हमेशा के लिए सुरक्षित हो जाए. इतना सुनकर उनके मित्र कर्ण ने सुझाव दिया कि शीघ्र कुशल जासूसों को भेजा जाए, जो धन-धान्य से पूर्ण राज्यों में, बड़ी सभाओं में, सिद्ध महात्माओं के आश्रमों, राज नगरों, तीर्थों, गुफाओं में जाकर वहां के रहने वालों के बीच में घुल-मिलकर पांडवों के बारे में पता लगाएं. दुशासन ने उनकी बात से सहमति जताते हुए कहा कि मुझे भी यह बात ठीक जान पड़ती है और अब इस काम में देरी नहीं होनी चाहिए. इस पर गुरु द्रोणाचार्य ने भी सुझाव दिया कि पांडव शूरवीर, विद्वान, बुद्धिमान, इंद्रियों को जीतने वाले और धर्म के ज्ञाता तथा अपने बड़े भाई धर्मराज युधिष्ठिर की आज्ञा मानने वालों में से हैं. ऐसे लोग न तो कष्ट में होते हैं और न ही उनका कोई तिरस्कार करता है.

भीष्म बोले, युधिष्ठिर की नीति की निंदा मेरे जैसा नहीं नहीं कर सकता

सबकी बातें सुनने के बाद पितामह भीष्म बोले, पांडवों के विषय में मैं यही कहूंगा कि जो नीतिवान पुरुष होते हैं, उनकी नीति को अनीति का पालन करने वाले नहीं जान पाते हैं. युधिष्ठिर की जो नीति है, उसकी निंदा मेरे जैसे पुरुष को कभी नहीं करनी चाहिए. उसकी नीति को अच्छी नीति ही कहा जाएगा. अनीति तो कह ही नहीं सकते हैं.  

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