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Bhishma Vachan: आखिर गंगा पुत्र देवव्रत कैसे बने भीष्म, अपने पिता के विवाह के लिए ली थी ये प्रतिज्ञा

Bhishma Pratigya: राजा शांतनु के पुत्र देवव्रत ने अपने पिता की इच्छा पूर्ति के लिए एक ऐसी कठोर प्रतिज्ञा की,जिसके कारण ही उनका नाम देवव्रत से भीष्म हो गया और आज भी जब कोई कठोर प्रतिज्ञा करता है, तो उसे भीष्म प्रतिज्ञा की संज्ञा दी जाती है. जानिए आखिर क्या थी भीष्म प्रतिज्ञा और क्यों इसी प्रतिज्ञा के कारण उनको देवव्रत से भीष्म कहा जाने लगा.  

Bhishma Vachan: आखिर गंगा पुत्र देवव्रत कैसे बने भीष्म, अपने पिता के विवाह के लिए ली थी ये प्रतिज्ञा
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Shashishekhar Tripathi|Updated: Aug 06, 2022, 04:29 PM IST

Bhishma Pledge: गंगा पुत्र देवव्रत को यूं ही भीष्म नहीं कहा जाता है. इसके पीछे उनके द्वारा ली गई कड़ी प्रतिज्ञा है. एक समय की बात है, जब हस्तिनापुर के महाराज शांतनु यमुना नदी के तट पर घूम रहे थे, तभी उन्हें निषादों के बीच में एक सुंदर कन्या दिखाई पड़ी तो उसका परिचय पूछ लिया. कन्या ने बताया मेरे पिता निषादराज हैं और मै धर्मार्थ कार्य से नाव चलाती हूं. राजा उसकी सुंदरता पर मोहित हो गए और उसके पिता के पास पहुंच कर पत्नी बनाने की इच्छा व्यक्त की.

निषाद राज ने रखी शर्त

इसके बाद निषाद राज ने कहा कि इस कन्या सत्यवती के लिए उनसे अच्छा पति और कौन हो सकता है किंतु उनकी एक शर्त है कि इसके गर्भ से उत्पन्न पुत्र ही आपके राज्य का अधिकारी होगा दूसरा कोई नहीं. शांतनु विवाह तो करना चाहते थे किंतु उनकी शर्त मानने की हामी नहीं भर सके और सीधे महल को लौट आए. 

देवव्रत ने पिता के लिए मांगी कन्या

महाराज शांतनु (Maharaj Shantanu) ने महल में लौट कर अपने कक्ष में चले गए. उनका किसी भी काम में मन नहीं लगता. उन्होंने खाना पीना भी छोड़ दिया और शरीर पीला पड़ने लगा. उनके पुत्र देवव्रत ने आकर उनसे इस निराशा का कारण पूछा तो शांतनु ने पूरी बात बताई. उन्होंने कहा कि मै यही सोच कर चिंतित हूं कि तुम ही इस कुल के एकमात्र वंशधर हो और यदि तुम पर कोई विपत्ति आ गई तो हमारे वंश का ही नाश हो जाएगा.

देवव्रत पहुंचे निषाद राज के घर

गंगा नंदन देवव्रत ने सारी स्थिति को समझते हुए अपने समाज के बड़े बूढ़े क्षत्रियों को साथ लिया और निषाद राज के घर पहुंच कर अपने पिता के लिए कन्या मांगी. निषाद राज ने बताया कि यह एक श्रेष्ठ राजा की पुत्री है और इस नाते आप लोगों के समकक्ष है और उन्होंने भी कहा था कि तुम मेरी पुत्री का विवाह राजा शांतनु से करना किंतु मैंने आपके पिता को भी विवाह की शर्त बता दी थी.

देवव्रत ने ली प्रतिज्ञा

इस पर गंगा पुत्र देवव्रत ने वहीं पर सबके सामने प्रतिज्ञा की कि मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि इसके गर्भ से जो पुत्र होगा, वही हमारा राजा होगा. निषाद राज ने अपनी शंका बताते हुए कि आपकी बात तो ठीक है किंतु यदि आपके पुत्र ने सत्यवती के पुत्र से राज्य छीन लिया तो क्या होगा. इसके बाद देवव्रत ने सबके सामने दूसरा संकल्प लिया कि आज से मेरा ब्रह्मचर्य अखंड होगा.

पिता ने दिया आशीर्वाद

उनकी प्रतिज्ञा सुन कर निषादराज ने कन्या देने की हामी भर ली और आकाश से देवता ऋषि और अप्सराएं पुष्पवर्षा करते हुए कहने लगे कि यह भीष्म है इसका नाम भीष्म होना चाहिए. इसके बाद उन्होंने कन्या लाकर पिता को सौंप दी तो पिता ने आशीर्वाद दिया कि जब तक तुम जीना चाहोगे, मृत्यु तुम्हारा बाल बांका भी नहीं कर सकेगी.
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