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Shradh Niyam: पितरों की आत्मा शांति और तृप्ति के लिए जरूरी है श्राद्ध में इन बातों का पालन करना, तभी मिलेगी पूर्वजों की कृपा

Pitru Paksha 2024: 17 सितंबर से पितृ पक्ष की शुरुआत हो चुकी है और अश्विन माह की अमावस्या जिसे सर्व पितृ अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है के दिन आखिरी श्राद्ध होता है. हिंदू धर्म में श्राद्ध का विशेष महत्व बताया गया है. जानें इस दौरान किन नियमों का पालन करना बेहद जरूरी है. 

 
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shilpa jain|Updated: Sep 20, 2024, 12:36 PM IST

Shradha Niyam: श्राद्ध  हिंदू धर्म की एक महत्वपूर्ण विधि है, जिसका उद्देश्य पितरों को तर्पण और श्रद्धांजलि देना है.  श्राद्ध से जुड़ी कई बातें, सामग्री और समय महत्वपूर्ण माने जाते हैं, जो इसे सफल और पवित्र बनाते हैं और पितरों की आत्मा को शांति एवं तृप्ति प्रदान करते हैं. इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित शशिशेखर त्रिपाठी से जानें श्राद्ध से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातों के बारे में. 

कुतप वेला: श्राद्ध के लिए शुभ समय 

श्राद्ध के लिए दिन का आठवां मुहूर्त, जिसे  कुतप वेला  कहते हैं, विशेष रूप से उत्तम माना गया है. यह समय प्रातःकाल के 11:36 से 12:24 तक रहता है. इसे 'कुतप' इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह पापों को संतृप्त करने वाला समय होता है. श्राद्ध के लिए यह समय अत्यंत फलदायी माना गया है. इसके साथ ही कुछ दुर्लभ सामग्री जैसे खड्ग पात्र (गैंडे के सींग से बना पात्र), नेपाल कंबल, चाँदी, कुश, तिल, गौ और दौहित्र (कन्या का पुत्र) का भी श्राद्ध में विशेष महत्व है.

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कुश और कृष्ण तिल का महत्व 

श्राद्ध में  कुश  और  कृष्ण तिल  का विशेष महत्व है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कुश और काला तिल भगवान विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुए हैं और इसलिए श्राद्ध की रक्षा करने में सक्षम माने जाते हैं. जड़ से अंत तक हरे कुश और गोकर्ण मात्र परिमाण के कुश श्राद्ध में विशेष रूप से उत्तम माने जाते हैं.

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चांदी का महत्व 

चाँदी से बने पात्र या मढ़े हुए पात्र पितरों के लिए उत्तम माने जाते हैं क्योंकि चाँदी को शिवजी के नेत्र से उत्पन्न माना गया है. अगर चाँदी के पात्र में जल भी श्रद्धापूर्वक अर्पित किया जाए, तो वह पितरों को अक्षय तृप्ति प्रदान करता है. 

दौहित्र का महत्व 

श्राद्ध में  दौहित्र  (कन्या का पुत्र) का विशेष महत्व होता है. दौहित्र, कुतप वेला और तिल—ये तीनों श्राद्ध में अत्यधिक पवित्र माने जाते हैं. इसके साथ ही चाँदी का दान और भगवत स्मरण भी श्राद्ध में महत्वपूर्ण होते हैं.

श्राद्ध में तुलसी का महत्व 

श्राद्ध में  तुलसी  का प्रयोग विशेष पुण्यकारी माना गया है. तुलसी की सुगंध से पितृगण प्रसन्न होकर विष्णु लोक की यात्रा करते हैं. तुलसी से पिंडदान करने पर पितरों की तृप्ति प्रलय तक रहती है. 

श्राद्ध के लिए उचित पुष्प 

श्राद्ध में सफेद और सुगंधित पुष्पों का उपयोग श्रेष्ठ माना गया है.  मालती, जूही, चम्पा  जैसे सुगंधित श्वेत पुष्प, कमल, तुलसी और शृंगराज आदि पितरों को प्रिय होते हैं. इसके अतिरिक्त,  अगस्त्य, भृंगराज और शतपत्रिका  भी पितरों को तृप्त करने के लिए उत्तम पुष्प माने गए हैं.

श्राद्ध स्थल का महत्व 

श्राद्ध के लिए  गया, पुष्कर, प्रयाग, कुशावर्त (हरिद्वार)  आदि तीर्थ विशेष माने जाते हैं. घर, गौशाला, देवालय या गंगा-यमुना जैसी पवित्र नदियों के किनारे श्राद्ध करना अत्यधिक पुण्यकारी होता है. श्राद्ध-स्थान को शुद्ध करने के लिए गोबर और मिट्टी से लेपन करना आवश्यक होता है और दक्षिण दिशा की ओर ढाल वाली भूमि अच्छी मानी जाती है.

श्राद्ध में आवश्यक तीन गुण 

श्राद्ध कर्ता को तीन प्रमुख गुणों की आवश्यकता होती है: 

-  पवित्रता : श्राद्ध की विधि को शुद्धता और मन की शांति के साथ करना आवश्यक है.

-  अक्रोध : श्राद्ध के दौरान क्रोध का त्याग करना चाहिए, क्योंकि यह पितरों की तृप्ति को बाधित कर सकता है.

-  आतुरता : जल्दबाजी न करना, विधि का ध्यानपूर्वक पालन करना आवश्यक है.

 

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