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2014 के बाद बदला नॉर्थ-ईस्ट को देखने का नजरिया! राजनीति ने ऐसे निभाया अहम रोल

बहुत समय तक पश्चिम के लिए जिस तरह से, भारत उपमहाद्वीप को सपेरों, हाथियों, जादू-टोना और अंधविश्वास से भरी हुई रहस्यमयी विचित्र दुनिया थी. उसी तरह 20वीं सदी के आखिर तक भारत का पूर्वोत्तर भाग शेष भारत के लिए एक विचित्र दुनिया थी.

2014 के बाद बदला नॉर्थ-ईस्ट को देखने का नजरिया! राजनीति ने ऐसे निभाया अहम रोल
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Ashish Shukla|Updated: Mar 24, 2023, 08:16 PM IST

भारत में लोकतंत्र पश्चिम से नहीं पहुंचा बल्कि वैदिक काल से ही मौजूद है. भारत के पुरातन साहित्य वैदिक वाङ्गमय पर दृष्टि डालने से पता चलता है कि यहां पर गणतंत्रात्मक व्यवस्थाएं आदिकाल से ही मौजूद हैं. यूरोप में ये विचार बारहवीं और तेरहवीं शताब्दी में प्रकाश में आया पर उन सब से सदियों पहले भारत में इस तरह के विचारों का उद्गम हो चुका था. जिसमें सभा व परिषद के माध्यम से राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक निर्णयों को जनहित में लिया जाता था. लेकिन कई सदियों तक गुलामी की जंजीरों में बंधे रहने के कारण हम अपने अतीत के गौरव को भुला बैठे हैं. नव औद्योगिक काल में पश्चिम की थोपी गई बाजारू व्यवस्था से सम्मोहित होकर हम अपने वेदों, आयुर्वेद, ज्ञान-विज्ञान को भुलाकर पश्चिम के भौतिकवाद से तुलना करते-करते हीन भावना से ग्रस्त होते गए. हमने अपने ही सुदूर क्षेत्रों को अखंड रखने के बजाय उनको अकेला छोड़ दिया. 

बहुत समय तक पश्चिम के लिए जिस तरह से, भारत उपमहाद्वीप को सपेरों, हाथियों, जादू-टोना और अंधविश्वास से भरी हुई रहस्यमयी विचित्र दुनिया थी. उसी तरह 20वीं सदी के आखिर तक भारत का पूर्वोत्तर भाग शेष भारत के लिए एक विचित्र दुनिया थी. जिसके सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक विषयों की जानकारी देश के अन्य हिस्से में रहने वाले भारतीय को कम थी या कहें न के बराबर थी.

पूर्वोत्तर राज्यों का राष्ट्रीय मीडिया क्या स्थान था? इन राज्यों से गैंडों का शिकार, ब्रह्मपुत्र नदी की भयानक बाढ़, अफस्पा का विरोध प्रदर्शन, उग्रवादियों और सुरक्षा बलों में मुठभेड़ की खबरें ही आती थीं. सुरक्षा बलों और अफस्पा के खिलाफ इरोम चानू शर्मिला की भूख हड़ताल और मणिपुर में महिलाओं का नग्न प्रदर्शन एक दो बार ही मुख्यधारा मीडिया की हेडलाइन्स बना था.

हालांकि, 2014 में एनडीए सरकार आने के बाद स्थितियां आश्चर्यजनक तरीके से बदली हैं. खास तौर पर पीएम मोदी का पूर्वोत्तर के राज्यों से विशेष लगाव भी इन राज्यों के लिए वरदान साबित हुआ है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री बनने से पहले राष्ट्रीय स्वयं सेवक (RSS) के प्रचारक के तौर पर पूरे देश का भ्रमण किया था. जिसमें उन्हें पूर्वोत्तर राज्य विशेष रूप से रूचिकर लगे. जिसका जिक्र प्रधानमंत्री अपने साक्षात्कारों में भी करते रहे हैं. साथ ही RSS की हमेशा से रूचि पूर्वोंत्तर राज्यों में रही है. जिसके कारण ये 'सात बहनें' आज देश की मुख्यधारा के साथ खड़ी हैं. आज राष्ट्रीय मीडिया में भी पूर्वोत्तर के राज्यों के विधानसभा चुनाव पर प्राइम टाइम शो हो रहे हैं ये सब बदलाव के ही सूचक हैं.

2017 के पहले अरुणाचल में एक भी कॉमर्शियल एयरपोर्ट नहीं था. दिल्ली या देश के दूसरे राज्यों में जाने के लिए गुवाहटी आना होता था. वो भी बिना पुलिस सुरक्षा के रात में यात्रा करना संभव नहीं था. पहले असम का उत्तरी भाग आधे साल तक ब्रह्मपुत्र की बाढ़ के कारण देश से कटा रहता था. अब इस नदी पर आधा दर्जन के करीब पुल बन गए हैं या निर्माण के आखिरी पड़ाव पर हैं. आज पूरा पूर्वोत्तर सालभर देश के मुख्य भाग से जुड़ा रहता है. पूर्वोत्तर को अपना दूसरा रेलवे स्टेशन एक सदी के बाद इसी सरकार ने दिलवाया था. रेलवे अगले दो वर्षों में मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, सिक्किम और नागालैंड की राजधानियों को रेलमार्ग से जोड़ने की योजना बना रहा है.

पूर्वोंत्तर अब उग्रवाद से निकल कर देश की प्रगति के साथ चल रहा है. हाल में ही विधानसभा प्रचार के दौरान नागालैंड में गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि वह उम्मीद करते हैं कि पूरे पूर्वोत्तर से जल्द अफस्पा हटाया जा सकता है. नगा शांति समझौते पर बातचीत चल रही है और उम्मीद है कि पीएम मोदी द्वारा शुरू की गई शांति पहल से पूरे पूर्वोत्तर में शांति आ सकती है. उत्तर पूर्व में उग्रवाद का जिक्र करते हुए शाह ने कहा था कि बीजेपी शासन में हिंसा की घटनाओं में 70 प्रतिशत तक की कमी आई है.

पूर्वोत्तर राज्यों में देश की पौने चार प्रतिशत जनसंख्या रहती है और पूरे देश के क्षेत्रफल का लगभग 8 प्रतिशत इन राज्यों के पास है. जिसमें कुल मिलाकर 26 लोकसभा सीटें आती हैं. जो औसतन भारत के किसी एक प्रदेश की लोकसभा सीटों के बराबर है. इन राज्यों में बीजेपी के पैर जमाने का एक कारण ये भी है. अगर आने वाले चुनाव में बीजेपी की अपनी पारंपरिक सीटों में कमी आती है तो वह उसको पूर्वोत्तर राज्यों की सीटों से पूरा करने की कोशिश करेगी.

हाल ही में हुए त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय के चुनाव के बाद बीजेपी तीनों राज्यों में अपने सहयोगियों के साथ सत्ता हासिल करने में सफल रही है. बीजेपी पूर्वोत्तर के 8 राज्यों, जिसमें सिक्किम भी शामिल है, में स्थानीय दलों के साथ एक गठबंधन में है जिसका नाम नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस (NEDA)है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस (नेडा) महज आठ राज्यों का गठबंधन नहीं हैं बल्कि नॉर्थ ईस्ट का मतलब है न्यू इंजन ऑफ इंडियन ग्रोथ.

साथ ही नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस के मुखिया हिमंत बिस्वा सरमा ने बीजेपी को इन राज्यों में स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई है. पंद्रह साल कांग्रेस के साथ रहने के बाद 2015-16 में हिमंत बिस्वा सरमा ने बीजेपी का दामन थामा. उसके बाद हिमंत बिस्वा सरमा और बीजेपी का ग्राफ पूर्वोत्तर राज्यों में लगातार बढ़ता चला गया. आज हिमंत बिस्वा सरमा असम के मुख्यमंत्री के साथ ही 'पूर्वोत्तर में बीजेपी के चाणक्य' की भूमिका में भी हैं.

हिमंत बिस्वा सरमा के राजनीतिक सचिव पवित्र मारग्रेटा ने हमसे बातचीत में बताया कि पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के नेतृ्त्व में पूर्वोत्तर के लिए जितना भी काम केंद्र सरकार ने किया है. उसको सही तरीके से असम सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने पूर्वोत्तर के सभी राज्यों के जनमानस तक सही और प्रभावी तरीके से पहुंचाया है. जिसका नतीजा है कि आज बीजेपी पूर्वोत्तर के लगभग सभी राज्यों में सत्ता पक्ष के साथ है या सत्ता में है. आज पूर्वोत्तर की युवा पीढ़ी पूरे देश के साथ कंधा से कंधा मिलाकर खड़ी है और देश के विकास में अपना योगदान दे रही है.

Disclaimer: This article does not have journalistic/editorial involvement of IDPL, and IDPL claims no responsibility of this article.

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