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Ram Mandir Unsung Heroes: राम मंदिर आंदोलन के 'पंचरत्न', गोली खाई, पुलिस से पिटे, जिनकी कहानी किसी ने नहीं सुनी

Ram Mandir Pran Pratishtha: इन दिनों घर-घर में राम मंदिर (Ram Mandir) की चर्चा हो रही है. प्राण प्रतिष्ठा (Pran Pratishtha) का इंतजार हो रहा है. इस प्रतीक्षा और चर्चा के बीच लोग राम मंदिर आंदोलन के उन नायकों की बात करते हैं जो चर्चित हैं, जिन्हें पूरा देश जानता है. जिनकी कहानियां टीवी में लगातार चलती रही हैं. अखबारों में छपती रही हैं. लेकिन आज हम आपको राम मंदिर आंदोलन के पंचरत्नों की कहानी बताएंगे.

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ये वो पांच गुमनाम नायक हैं जिन्होंने राम मंदिर आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. एक ने गोली खाई, दूसरे ने पुलिस की प्रताड़ना झेली, लेकिन रामपथ पर डटे रहे, कभी पीछे नहीं हटे. अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा से पहले भक्तों में उत्साह बढ़ने लगा है. 500 वर्षों की परीक्षा के बाद मंदिर निर्माण हो रहा है. 22 जनवरी को करोड़ों रामभक्तों का सपना साकार होगा. मंदिर निर्माण में आंदोलन का अहम रोल है और उसी आंदोलन से जुड़े कई ऐसे चेहरे हैं जिनकी चर्चा कभी नहीं हुई. वो पांच चेहरे जो अब नहीं देखे होंगे. आज उनकी कहानी के बारे में जानते हैं.

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1992 में वो दिसंबर का ही महीना था जब राम मंदिर आंदोलन चरम पर पहुंचा और कारसेवकों ने कुछ ऐसा किया जिसे तत्कालीन सरकार भांप नहीं पाई. अशोक सिंघल, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, उमा भारती, विनय कटियार समेत कई लोग आंदोलन का प्रमुख चेहरा थे. मगर इस आंदोलन को धार देने में लाखों कारसेवकों का भी योगदान है. जिनमें कई चेहरे चर्चा में आए लेकिन ऐसे लोगों की भी लंबी फेहरिस्त है जिनकी कहानी दुनिया के सामने नहीं आ सकी. ऐसे ही एक आंदोलनकारी अयोध्या के सुधीर हैं. सुधीर उस वक्त हिंदू जागरण मंच के वार्ड संयोजक थे. 28 अक्टूबर 1990 को उन्हें कार सेवा का आदेश मिला. जिसके बाद 71 लोगों की टीम के साथ वो आगे बढ़े. 30 अक्टूबर 1990 को उन्हें गोली लगी. और दाईं आंख का रेटिना खराब हो गई. सुधीर आज भी वो दौर याद करते हैं तो उन्हें गर्व महसूस होता है.

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अयोध्या में आज जिस भव्यता के साथ मंदिर बन रहा है उसके पीछे संघर्ष का लंबा इतिहास है. गुमनाम आंदोलनकारियों में वेद प्रकाश राजपाल भी हैं. अयोध्या में जब रथ यात्रा निकल रही थी तब वेद प्रकाश को लालकृष्ण आडवाणी का सुरक्षा प्रभारी बनाया गया था. आंदोलन के दौरान उन्होंने अयोध्या पहुंचे कई कारसेवकों की सेवा की. पुलिस ने कई बार उनके घर पर छापेमारी की लेकिन वेद प्रकाश पीछे नहीं हटे.

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90 के दशक में आंदोलन को लेकर बड़ी उत्साह था. अजय रस्तोगी की आंदोलन से जुड़ी कई यादें हैं. अजय रस्तोगी को कारसेवकों के खाने का इंतजाम करने की जिम्मेदारी दी गई थी. उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर अयोध्या में लंगर लगाया. देशभर से आए कार सेवकों को खाना खिलाया. 3 दिसंबर से 6 दिसंबर 1992 की दोपहर तक लगातार खाना बनाते रहे और खिलाते रहे.

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राम मंदिर आंदोलन ऐसे दौर में चला जब एक दूसरे तक संदेश पहुंचाना भी बड़ी चुनौती थी. इसके बाद भी लोगों ने आंदोलन आगे बढ़ाया. अयोध्या के शिव करन सिंह ऐसे ही एक गुमनाम आंदोलनकारी हैं. जो संदेशवाहक के तौर पर काम करते रहे. बचपन से संघ से जुड़े रहे. उन्होंने अयोध्या पहुंचे कारसेवकों के रहने का इंतजाम किया. साथ ही गांव-गांव लोगों को आंदोलन से जुड़ी जानकारी दी. शिव करन सिंह ने कहा कि खुशी है कि मंदिर बन रहा है. दीपोत्सव में हमें नहीं बुलाया, बुलाएंगे तो चले जाएंगे नहीं तो बाद में दर्शन करेंगे.

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मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन जैसे-जैसे आगे बढ़ा वैसे-वैसे लोग भी जुड़ते चले गए. आज जब रामलला को मंदिर में विराजमान करने की तैयारी चल रही है तो आंदोलनकारियों के ऐसे प्रण भी देखने और सुनने को मिल रहे हैं जो उनकी भक्ति का अहसास करा रहे हैं. वहीं, राम मंदिर आंदोलनकारी योगेश रस्तोगी ने कहा कि अयोध्या में भव्य और दिव्य मंदिर की परिकल्पना आज साकार हो रही है. 22 जनवरी की शुभघड़ी का हर किसी को बेसब्री से इंतजार है. आंदोलन में शामिल गुमनाम चेहरों की कहानी उनका संघर्ष भी बताती है और रामलला को लेकर उनकी भक्ति भी दिखाती है.





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