Taliban Captured Wakhan Corridor: कभी भारत के खिलाफ आतंकवादियों को पनाह देने वाला पाकिस्तान अब खुद इसकी मार झेल रहा है. एक तरफ जहां पिछले 4-5 साल में पाकिस्तान में आतंकवादी हमले और उनमें मरने वालों की संख्या बढ़ी है तो दूसरी ओर इससे उसे कई और नुकसान भी उठाने पड़ रहे हैं. इन सबके बीच खबर आ रही है कि तालिबान ने पाकिस्तान के वखान कॉरिडोर पर कब्जा कर लिया है. यह कॉरिडोर अफगानिस्तान के उत्तर के रणनीतिक क्षेत्र में से एक है और यह संकीर्ण पट्टी है जो चीन तक फैली हुई है. यह बदख्शां और चूपरसन घाटी (गिलगित-बाल्टिस्तान) को अलग करती है.
27 जुलाई को किया कब्जा
स्थानी मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, 27 जुलाई को सशस्त्र तालिबान के एक समूह ने करंबर झील के पास पाकिस्तान के वखान कॉरिडोर सीमा चौकी पर हमला किया और इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया. इस संबंध में एक वीडियो अफगानी सोशल मीडिया सर्किल में खूब वायरल हुआ, जिसमें तालिबान के लड़ाके पाकिस्तानी संकेतों वाले एक स्तंभ को नष्ट करते हुए दिख रहे हैं. उनके पास एके 47 था और वे ''तालिबान जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे. तालिबान के अनुसार, पाकिस्तान ने 2021 में अफगान संकट का फायदा उठाते हुए बदख्शां के पास वखान क्षेत्र में जो अफगान क्षेत्र में था पर कब्जा किया था और वहां एक स्तंभ स्थापित कर दिया था. तालिबान ने अब इसी स्तंभ को तोड़ा है. वहीं इस खबर के आने के बाद स्थानीय लोगों ने अपने क्षेत्र की रक्षा करने में फेल रहने पर जीबी स्काउट्स और पाकिस्तानी सेना की आलोचना की है.
स्थानीय लोगों ने उड़ाया पाकिस्तान का मजाक
स्थानीय मीडिया ने पाकिस्तान का मजाक उड़ाते हुए लिखा, "हम पाकिस्तान से गिलगित-बाल्टिस्तान की रक्षा करने की उम्मीद नहीं कर सकते, जिसने खुद चीन को अपनी जमीन बेच दी है." वखान कॉरिडोर पर कब्जा करने के साथ ही तालिबान ने मध्य एशिया तक पहुंचने की पाकिस्तान की उम्मीदों को तोड़ दिया है. अफगानिस्तान को दरकिनार कर पाकिस्तान हमेशा चाहता है कि वखान कॉरिडोर पर एक सड़क पुल मध्य एशिया तक के लिए बन सके. लेकिन तालिबान जिसके वर्तमान में इस्लामाबाद के साथ दोस्ताना संबंध नहीं हैं, ने इस उम्मीदों पर पानी फेर दिया है.
दोनों देशों के बीच सीमा को लेकर विवाद
दरअसल पाकिस्तान और तालिबान के बीच विवाद का प्राथमिक मुद्दा दोनों देशों को अलग करने वाली डूरंड रेखा पर बाड़ लगाने के लिए पाकिस्तान के चल रहे प्रयास हैं. डूरंड रेखा एक पारस्परिक रूप से मान्यता प्राप्त सीमा नहीं है और अफगानिस्तान ने ऐतिहासिक रूप से इसकी वैधता को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है. दरअसल पश्तून जनजाति जो अफगानिस्तान के सत्तारूढ़ बहुमत को बनाती है, ऐतिहासिक रूप से सीमा के दोनों किनारों पर रहती है और आवाजाही करती है. बाड़ लगाने को लेकर दोनों देश के सैनिक आपस में कई बार भिड़ भी चुके हैं.
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