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उस्ताद बिस्मिल्लाह खां ने क्यों ठुकरा दिया था अमेरिका में बसने का ऑफर? आज की पीढ़ी को जानना चाहिए

Ustad Bismillah Khan Story: उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का निधन 2006 में हो गया लेकिन उनकी शहनाई की धुन आने वाली पीढ़ियों को याद दिलाती रहेगी कि काशी का एक वासी ऐसा भी था. बिस्मिल्लाह खां को काशी और गंगा मां से विशेष प्रेम था. उन्होंने अमेरिका में बसने का ऑफर भी ठुकरा दिया था. 

उस्ताद बिस्मिल्लाह खां ने क्यों ठुकरा दिया था अमेरिका में बसने का ऑफर? आज की पीढ़ी को जानना चाहिए
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Anurag Mishra|Updated: Aug 05, 2024, 02:14 PM IST

उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का जिक्र होते ही आज भी जेहन में शहनाई गूंजने लगती है. उन्हें शहनाई, बनारस और गंगा मां से विशेष स्नेह था. भारत के इस रत्न को एक बार अमेरिका में बसने का ऑफर आया था. कहा गया कि खां साहब आप पूरे कुनबे के साथ अमेरिका में रह जाइए. इस पर बिस्मिल्लाह खां ने जो जवाब दिया वह आज की पीढ़ी को भी जानना चाहिए. 

बिस्मिल्लाह खां का एक वीडियो वायरल हो रहा है. इसमें वह कहते सुने जाते हैं, 'हमने कहा बाबा हम रह तो जाएंगे लेकिन हम अकेले नहीं हैं. हम यहां रहेंगे तो साल, दो साल, चार साल रहेंगे. हमने कहा कि परिवार में कई लोग हैं. लड़के-बच्चे... उसने कहा सबको ले आइए. हमने कहा यही नहीं हमारे साथ के भी जो लोग हैं तो उन्होंने कहा कि उन्हें भी ले आइए. 40-50 आदमी सबको लाइए.'

हम जब हिंदुस्तान से बाहर होते हैं न...

खां साहब से कहा गया कि आपको क्या चाहिए? होटल, कार... सब है यहां. खां साहब अपने ठेठ बनारसी अंदाज में जवाब दिया, 'सुनिए, ये संगीत है. हम वो आदमी हैं जब हिंदुस्तान से बाहर आते हैं तो हमको हिंदुस्तान दिखाई देता है. और जब हिंदुस्तान में रहते हैं यानी बंबई में, मद्रास में, कलकत्ते में प्रोग्राम कर रहे होते हैं तो हमको बनारस दिखाई देता है.'

वैसा ही बनारस ला दीजिए

उस्ताद बिस्मिल्लाह खां बोले, 'वैसे ही बनारस बना दीजिए. वैसे ही गंगाजी, वैसे ही शिवालय, वैसे ही मंदिर, वैसे ही पूजा-पाठ और शहनाई बज रही है... वो बना दीजिए हम यहीं रहेंगे.' उसने कहा- नो नो. खां साहब का जवाब था- अच्छा फिर चलते हैं नमस्कार. 

बताते हैं कि राकफर्लर फाउंडेशन से भी अमेरिका में बसने का प्रस्ताव उन्होंने यह कहकर ठुकरा दिया कि गंगा नदी ले आओ, यहीं बस जाऊंगा. अपनी कला से उन्होंने उतना ही धन लिया, जितनी जरूरत थी. वास्तव में बिस्मिल्ला खां काशी नहीं छोड़ना चाहते थे. वह काशी को धरती पर स्वर्ग के समान मानते थे. उनका काशी से बेहद लगाव था. यहीं पर उन्हें संगीत की शिक्षा मिली थी. उनके नाना भी यहां एक मंदिर में शहनाई बजाते थे. 

वह बचपन से ही घंटों शहनाई का अभ्यास करते थे. उन्होंने कभी सुविधाओं की मांग नहीं की. वह हर स्थिति में कला के प्रति समर्पित थे. उनके जीवन में दिखावे और अहंकार का कोई स्थान नहीं था.

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