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Mare Ride: दूल्हा घोड़ी पर ही क्यों चढ़ता है? असली कारण आप नहीं जानते होंगे..जान लीजिए

Groom Ride: शादी में घोड़ी पर बैठना एक परंपरागत और प्रमुख रिवाज है, जो भारतीय विवाह संस्कृति में अपनाया जाता है. यह प्रथा शादी के दौरान दूल्हे के आने का संकेत है और उसे बारात के साथ अपनी होने वाली ससुराल में जाने का संकेत है. लेकिन इसका कारण क्या है यह जान लेते हैं.

Mare Ride: दूल्हा घोड़ी पर ही क्यों चढ़ता है? असली कारण आप नहीं जानते होंगे..जान लीजिए
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Gaurav Pandey|Updated: Jun 26, 2023, 06:40 PM IST

Mare And Horse: भारत एक ऐसा देश है जहां शादियों में तमाम तरह की रीतियां या कह सकते हैं कि परंपराएं निभाई जाती हैं. इन्हीं परंपराओं में से एक परंपरा यह भी है कि शादी के समय दूल्हा घोड़ी पर सवार होता है. घोड़ी पर सवार होना बहुत ही शुभ माना जाता है. दूल्हा घोड़ी पर तब सवार होता है, जब वह बारात लेकर अपने ससुराल की तरफ चलता है. लेकिन यहां पर तमाम लोगों का सवाल यह है कि आखिर दूल्हा घोड़ी पर ही क्यों सवार होता है, घोड़े पर क्यों नहीं सवार होता है. इसके पीछे तमाम तरह के होते हैं. आइए इस बारे में समझते हैं.

एक नहीं, कई कारण
दरअसल, घोड़ी पर सवार होने के एक कारण नहीं बल्कि कई कारण हैं. एक दो कारण तो बहुत ही प्रायोगिक कारण हैं, जबकि कुछेक कारण परंपरा के हिसाब से बताए जाते हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक घोड़ी पर चढ़ना दूल्हे के अच्छे स्वास्थ्य का परिचायक है क्योंकि घोड़ी एक फुर्तीला प्राणी है और इसकी सवारी स्वस्थ व्यक्ति ही कर सकता है. घोड़ी की लगाम को थामे रहना यह दर्शाता है दुल्हा परिवार की डोर को संभाले रख सकता है.

एक टेस्ट की तरह
वहीं यह भी मान्यता है कि घोड़ी पर बैठना दूल्हे के लिए एक टेस्ट की तरह है. घोड़ी चढ़ने के पीछे माना जाता है कि दुल्हा पत्नी के चंचल मन को अपने प्रेम और संयम से काबू में रखने में सफल रहेगा. इसी को देखते हुए दूल्हे का घोड़ी पर चढ़ने का टेस्ट लिया जाता है कि जो दूल्हा घोड़ी पर चढ़ गया वो सारी जिम्मेदारियों को निभा ले जाएगा.

कुछेक कारण परंपरा के
एक परंपरा यह भी बताई जाती है कि प्राचीनकाल में जब शादियां होती थी तो उस समय दुल्हन के लिए वीरता का प्रदर्शन करना पड़ता था और योद्धा घोड़े पर सवार होकर जाते थे. कई बार तो दुल्हन को भागना पड़ता था. इतिहास में बहुत से मामले हैं जब दुल्हे को दुल्हन के लिए लड़ाई लड़नी पड़ी हैं. उस समय में घोड़े को वीरता का प्रतीक माना गया. अब बदलते दौर में घोड़े का स्थान घोड़ी ने ले लिया और उसे शगुन मानने लगे.

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