Sandeep Kumar Bhatt Becomes Swami Sundar Gopal Das: यह बात सही है कि आज के समय में ज्यादातर लोग लग्जरी जीवन जीना पसंद करते हैं. इसके लिए वे खूब पैसे कमाने की कोशिश करते हैं और नैतिक-अनैतिक का कई बार फर्क भी भूल जाते हैं. इन दिनों सोशल मीडिया पर एक ऐसे शख्स की कहानी वायरल हो रही है जो एक साधु है. लेकिन यह ऐसे साधु हैं जो कभी आईआईटी दिल्ली के टॉपर रह चुके हैं. अब इन्होंने खुद यह राज खोला है कि इन्होंने किस वजह से ऐसा किया और वे मैनेजर से साधु बन गए.
2002 के IIT दिल्ली बैच के गोल्ड मेडलिस्ट
दरअसल, मूल रूप से बिहार के रहने वाले संदीप कुमार भट्ट ने 2002 में आईआईटी दिल्ली से बीटेक किया था और वे अपने बैच के गोल्ड मेडलिस्ट रहे थे. इतना ही नहीं इसके बाद उन्होंने 2004 में एमटेक भी किया. कोर्स पूरा करते ही उन्होंने एक बड़ी कंपनी में मैनेजर के रूप में काम भी किया. लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि उनका मोह संसार से खत्म हो गया और उन्होंने संन्यासी की राह अपना ली. हाल ही में उन्होंने एक इंटरव्यू में इस बारे में बताया है.
28 की उम्र में 2007 में संन्यासी बन गए
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक संदीप कुमार भट्ट ने 28 साल की उम्र आते आते संन्यास की राह पकड़ ली और वे 2007 में संन्यासी बन गए. संन्यासी बनने के बाद से वे स्वामी सुंदर गोपालदास हो गए. उन्होंने खुद इस बारे में बात करते हुए बताया कि समाज में इंजीनियर, डॉक्टर, IAS, जजेस, साइंटिस्ट, नेता तो बहुत मिल जाएंगे. पर कोई ऐसा नहीं मिलेगा जिसका मिशन समाज को अलग राह दिखाना या फिर लोगो की चरित्र निर्माण करना हो.
'मशीन की क्वालिटी बढ़ रही, इंसान की घट रही'
उनका मानना है कि समाज में फैले कुरीतियों को ठीक करने का एक मात्र रास्ता धार्मिक शिक्षा है. उन्होंने कहा कि नोबेल पुरस्कार पाना कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन अगर आप किसी बिगड़े हुए शख्स को सुधार दें तो यह वाकई बड़ा काम है और वे इसी काम में लगे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि मशीन की क्वालिटी तो बढ़ रही है पर इंसान की क्वालिटी घट रही है. हर साल लाखों क्राइम होते हैं, यह इस बात का प्रमाण है कि इंसान की क्वालिटी खराब हो रही है.
वे यह भी कहते हैं कि पढ़े लिखे लोगों को साधु-संत बनना चाहिए. आखिर क्या वजह है कि बड़ी-बड़ी कंपनी IIT के लोगों हायर करती है. अगर अच्छाई समाज में बढ़ानी है तो ऐसे लोगों को भी आगे आना चाहिए. संदीप भट्ट उर्फ गोपाल दास ने बताया कि जब उनके संन्यासी बनने की बात घरवालों को पता चली तो उनका रिएक्शन भी ठीक वैसा ही था, जो अमूमन किसी भी घर वाले का होता. लेकिन उन्होंने अपने परिवार वालों को समझाया कि वह यही करना चाहते हैं.
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