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Knowledge News: धरती पर अब तक का सबसे बुरा साल था सन 535? इतिहासकार ने किया खुलासा

Worst Year On The Earth: सबसे बुरा समय कौन सा था? हैरानी की बात है कि यह 1349 का 'ब्लैक डेथ' नहीं था, जिसने यूरोप को तबाह कर दिया था, और न ही 1918 का फ्लू महामारी थी, जिसमें 50 से 100 मिलियन लोग मारे गए थे. इसके बजाय, इसका जवाब साल 536 एडी में मिलता है.

 
Knowledge News: धरती पर अब तक का सबसे बुरा साल था सन 535? इतिहासकार ने किया खुलासा
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Alkesh Kushwaha|Updated: Aug 13, 2024, 09:29 AM IST

Knowledge News: जब हम सोचते हैं कि इंसानों के लिए सबसे बुरा वक्त कौन सा रहा होगा, तो ज्यादातर लोग तुरंत कोविड-19 महामारी का जिक्र करेंगे. हालांकि यह सच है कि इस महामारी ने बहुत सारी समस्याएं खड़ी कीं और बहुत नुकसान हुआ, लेकिन इतिहास में इससे भी बदतर दौर रहे हैं. लेकिन सबसे बुरा समय कौन सा था? हैरानी की बात है कि यह 1349 का 'ब्लैक डेथ' नहीं था, जिसने यूरोप को तबाह कर दिया था, और न ही 1918 का फ्लू महामारी थी, जिसमें 50 से 100 मिलियन लोग मारे गए थे. इसके बजाय, इसका जवाब साल 536 एडी में मिलता है.

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साल 536 में, एक अजीब और भयानक कोहरा पूरे यूरोप, मध्य पूर्व और एशिया के कुछ हिस्सों में फैल गया, जिसने दुनिया को एक अंधेरे में डाल दिया जो पूरे 18 महीने तक चला. History.com के अनुसार, यह कोई साधारण कोहरा नहीं था; इसने दिन में सूरज को ढक लिया, जिससे तापमान बहुत कम हो गया, फसलें नष्ट हो गईं और मौतों की संख्या बढ़ गई. यही असली अंधकार युग था.

रिसर्चर्स ने पाया कि इस कोहरे का मुख्य कारण एक ज्वालामुखी का विस्फोट था. जर्नल एंटीक्विटी में 2018 में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, यह कोहरा राख के कारण हुआ था, जो 536 की शुरुआत में आइसलैंड के एक ज्वालामुखी के विस्फोट से पूरे उत्तरी गोलार्द्ध में फैल गई थी. 1815 में हुए सबसे घातक ज्वालामुखी विस्फोट माउंट टांबोरा की तरह, यह विस्फोट इतना बड़ा था कि इसने दुनिया की जलवायु के पैटर्न को बदल दिया, जिसके परिणामस्वरूप कई सालों तक अकाल पड़ा.

बाइजेंटाइन इतिहासकार प्रोकोपियस ने अपनी किताब 'हिस्ट्री ऑफ द वॉर्स, बुक्स III एंड IV' में लिखा है कि पूरे साल सूरज की रोशनी चांद जैसी कमजोर थी. उन्होंने यह भी लिखा कि ऐसा लग रहा था कि सूरज हमेशा ग्रहण लगा हुआ हो और इस दौरान लोगों को युद्ध, महामारी और मौत जैसी अन्य बीमारियों से छुटकारा नहीं मिली. साल 1990 के दशक में, जब ट्री रिंग (जिनसे तापमान का पता चलता है) की जांच से पता चला कि साल 540 की गर्मियां असामान्य रूप से ठंडी थीं, तब से वैज्ञानिक इसके कारणों का पता लगाने की कोशिश कर रहे थे. तीन साल पहले ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका से बर्फ के कोर निकाले जाने पर इसका एक संकेत मिला.

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ज्वालामुखी विस्फोट के दौरान हवा में बहुत सारे छोटे कण उछलते हैं, जिनमें सल्फर और बिस्मथ धातु शामिल होते हैं. ये मिलकर धुएं का ऐसा पर्दा बनाते हैं जो सूरज की किरणों को वापस अंतरिक्ष में भेज देता है, जिससे पृथ्वी ठंडी हो जाती है. वैज्ञानिकों की एक टीम ने ट्री रिंग और बर्फ में पाए गए इन रासायनिक अवशेषों का अध्ययन किया. Science.org के अनुसार माइकल सिगल के नेतृत्व वाली इस टीम ने पाया कि पिछले 2500 वर्षों में ज़्यादातर बहुत ठंडी गर्मियों से पहले ज्वालामुखी विस्फोट हुआ था.

शोधकर्ताओं का मानना है कि 535 के अंत या 536 की शुरुआत में शायद उत्तरी अमेरिका में एक बड़ा ज्वालामुखी विस्फोट हुआ था. 540 में एक और विस्फोट हुआ था. वैज्ञानिकों के मुताबिक, इन दो विस्फोटों ने ही इतनी लंबी अवधि तक अंधेरा और ठंड रहने का कारण बताया है. यूरोप और एशिया में गर्मियां 35 से 37 डिग्री फ़ारेनहाइट तक ठंडी हो गईं. चीन में तो गर्मियों में बर्फबारी भी हुई. ज्वालामुखी की राख से सूरज ढक गया था, जिसके कारण उस समय को 'लेट एंटीक लिटिल आइस एज' के नाम से जाना जाता है.

Science.org के अनुसार, इस शोध के सह-लेखक और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के इतिहास प्रोफेसर माइकल मैककॉर्मिक ने कहा, "यह इंसानों के लिए ज़िंदा रहने के सबसे बुरे दौरों में से एक था, शायद सबसे बुरा साल रहा हो."

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