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Rajouri Encounter: फिर शहादत... फिर वही सियासत ! | Taal Thok Ke

Taal Thok ke: जम्मू-कश्मीर के राजौरी में 4 जवानों की शहादत पर पूरा देश दुखी है। शहीद जवानों के पार्थिव शरीर आज उनके गांव पहुंच गए। कानपुर में शहीद करण यादव को अंतिम विदाई देने भारी हुजूम जमा हुआ। बाक़ी तीन जवानों में दो उत्तराखंड के और एक बिहार के नवादा के हैं। हमले की ज़िम्मेदारी पीपुल्स एंटी-फ़ासिस्ट फ़्रंट ने ली है, जो पाकिस्तान से चल रहे जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा की ही एक मिली-जुली दुकान है। राजौरी के जंगलों में आज सेना के सर्च ऑपरेशन का छठा दिन है। हेलिकॉप्टर और ड्रोन भी लगे हुए हैं। कल रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह पहुंचने वाले हैं। उनसे पहले आज आर्मी चीफ़ जनरल मनोज पांडेय पहुंचे। राजौरी और पुंछ के ये दौरे नई रणनीति के लिहाज़ से अहम हैं। देखने में आ रहा है कि 370 हटने के बाद से पाकिस्तान के पाले हुए आतंकी कश्मीर से भागकर जम्मू के जंगलों में शिफ्ट हुए हैं। बीते कुछ हमले भी बताते हैं कि आतंकी अब जम्मू को टेरर ग्राउंड बना रहे हैं। एक हमला वो था जो आतंकियों ने जवानों पर किया। दूसरा हमला वो है जो विपक्ष अब सरकार पर कर रहा है। हमले का मजमून ये है कि आप तो बड़ी बातें करते थे कि 370 हटने के बाद ये बदल गया, वो बदल गया तो ये क्या है? फ़ारूक अब्दुल्ला आज बोले कि एक भी टूरिस्ट को गोली लगी तो सारा का सारा टूरिज़्म धरा रह जाएगा। इससे पहले बोले थे कि ये पत्थरबाज़ी बंद नहीं हुई है, सिर्फ़ बंदूकों की वजह से रुकी हुई है। बीजेपी के साथ-साथ गुलाम नबी आज़ाद जैसे नेताओं का भी कहना है कि ये वक्त सियासत करने का नहीं है। तो आंकड़ों से जानेंगे कि कश्मीर में UPA के 10 साल में आतंकवाद का ग्राफ़ कितना था और मोदी सरकार के साढ़े नौ साल में कितना है? कश्मीर में आखिरी आतंकी पर आखिरी गोली चलने में कितना वक्त है? ये भी जानेंगे कि कश्मीर में इतना कुछ करके भी कहां कसर बाक़ी रह गई है?

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