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Diaper Side Effects: बच्चों के लिए हानिकारक है डायपर? लगातार पहनाने से खराब हो सकती है किडनी

Diaper Side Effects in Hindi: बच्चों के कपड़े खराब होने के डर से अधिकतर पैरंट्स उन्हें डायपर पहनाना पसंद करते हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि आपकी यह आदत उन्हें मुश्किल में डाल सकती है.   

Diaper Side Effects: बच्चों के लिए हानिकारक है डायपर? लगातार पहनाने से खराब हो सकती है किडनी
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Devinder Kumar|Updated: Apr 10, 2024, 09:46 PM IST

Diaper Side Effects for Children: छोटे बच्चे गोद में लेने पर कपड़े ना ख़राब करें या फिर सोते वक्त बिस्तर ना गीला करे. इसके लिए आजकल ज्यादातर महिलाएं अपने नवजात शिशुओं और कम उम्र के बच्चों को डायपर पहनाकर रखती हैं. ताकि बच्चा उसके अंदर ही पेशाब कर सके और गीलापन बाहर भी ना आए. डायपर के बढ़ते चलन की कई वजहें और भी हैं.

इन वजहों से पहनाती हैं डायपर

एक तो ये कि बार-बार बच्चों के कपड़े बदलने की तुलना में डायपर पहनाना और बदलना आसान होता है. दूसरा ये कि बच्चे डायपर में रहते हैं तो उनके कपड़े गीले नहीं होते और तीसरा ये कि बच्चे का बिस्तर गीला नहीं होता और उसे बार-बार बदलना नहीं पड़ता है. यही वजह है कि कई महिलाएं बच्चे को जन्म के साथ ही डायपर पहनाना शुरू कर देती हैं. 

बच्चों की किडनी को नुकसान!

लेकिन क्या आप जानते हैं कि डायपर की ये आदत बच्चे के स्वास्थ्य के लिए कितना ख़तरनाक साबित हो सकती है. ऐसा करने से बच्चों की किडनी पर बुरा असर पड़ता है और उनकी किडनी ख़राब तक हो सकती है. ये जानकारी दिल्ली AIIMS के डॉक्टरों ने दी है. एम्स के पीडियाट्रिक सर्जरी यानी बाल चिकित्सा सर्जरी डिपार्टमेंट के मुताबिक जन्म के बाद से ही बच्चों को डायपर पहनाने से उनकी किडनी पर बुरा असर पड़ता है. साथ ही अगर डायपर टाइट है तो भी बच्चे की किडनी प्रभावित हो सकती है.

बीते दो दशक में तेजी से बढ़ा चलन

बच्चों को डायपर पहनाने का चलन पुराना है, लेकिन बीते दो दशकों में डायपर्स का इस्तेमाल तेज़ी से बढ़ा है. खासतौर पर छोटे या न्यूक्लियर परिवारों में बच्चों को डायपर में रखने का चलन ज़्यादा है. अगर पति-पत्नी दोनों कामकाजी हैं तो वो अपनी सहूलियत के लिए बच्चे को डायपर में ही रखते हैं. लेकिन डॉक्टर्स का कहना है कि नवजात या कम उम्र के बच्चों को लगातार डायपर में रखकर माता-पिता उनकी नेचर कॉल या पेशाब की इच्छा को दबा रहे हैं. 

दिल्ली एम्स के मुताबिक हर 300 में से एक बच्चे के यूरीन का रास्ता सीधा नहीं होता. सर्जरी के जरिए ऐसे बच्चों के पेशाब के रास्ते को सीधा नहीं किया गया तो उनका पेशाब रुक सकता है, जिसकी सीधा असर बच्चे की किडनी पर पड़ता है. 

पहले इस तकनीक का करते थे इस्तेमाल

पुराने ज़माने में जब डायपर नहीं होते थे बच्चों को कपड़े की लंगोट पहनाई जाती थी, जो टाइट नहीं होती थी. साथ ही महिलाएं थोड़ी-थोड़ी देर पर बच्चों उठाकर पेशाब भी करवाती थीं ताकि वो लंगोट या बिस्तर गीला ना करें. लेकिन आज की व्यस्त ज़िंदगी में हर किसी के पास इतना समय नहीं है. 

डॉक्टरों का कहना है कि लगातार डायपर में रहने से छोटे बच्चों में पेशाब की समस्या बढ़ जाती है, जिससे उनकी किडनी पर बुरा असर पड़ता है. कई बार हालात इतने बिगड़ जाते हैं कि उनकी किडनी की सर्जरी तक करनी पड़ जाती है. 

स्किन डिजीज समेत हो सकती हैं कई बीमारियां

जिम्स ग्रेटर नोएडा के पीडियाट्रिशियन डॉक्टर डॉक्टर राकेश गुप्ता बताते हैं कि पुराने ज़माने में बच्चों को जो लंगोट पहनाई जाती थी वो सूती या मुलायम कपड़े की बनी होती थी, जिनको धोकर दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता था. लेकिन डिस्पोज़ेबल डायपर बनाने में सेल्यूलोज़, पॉलीप्रोपाइलीन, पॉलीथीन और माइक्रो फ़ाइबर्स का इस्तेमाल किया जाता है. जिनके ज़्यादा इस्तेमाल से डायपर रैश, स्किन डिजीज़, अस्थमा और लिवर डैमेज जैसी बीमारियां हो सकती हैं. 

अमेरिका के पीडियाट्रिक्स जर्नल के अनुसार, आमतौर पर हर 2 घंटे में बच्चों का डायपर बदल देना चाहिए. अगर बच्चा डायपर में है तो लगातार चेक करते रहना चाहिए कि कहीं उसने पेशाब तो नहीं कर दिया है. डायपर बदलते वक्त उस हिस्से को अच्छे से साफ़ करना चाहिए, ताकि वहां गीलापन ना रहे. बच्चों को लगातार कई घंटों तक डायपर पहनाकर नहीं रखना चाहिए. साथ ही बच्चों को कुछ देर बिना डायपर के भी रखना चाहिए. अगर बहुत ज़रूरी ना हो तो बच्चों को सूती कपड़े से बनी लंगोट या हल्की पैंट पहनाएं. 

दुनियाभर में 7 लाख करोड़ की है इंडस्ट्री

अस्पताल हो या घर. गांव हो या शहर. हर कहीं बच्चे डायपर में मिलते हैं. बच्चों के वजन और साइज़ के हिसाब से अलग-अलग वेराइटी के डायपर बाज़ार में मिलते हैं. कई बड़ी कंपनियां डायपर मार्केट में मौजूद हैं. इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में डायपर इंडस्ट्री 10 हज़ार करोड़ रुपये की है. जिसमें करीब 39 फ़ीसदी हिस्सेदारी मैनीपोको ब्रैंड के डायपर्स बनाने वाली यूनिचार्म कंपनी की है. जबकि 38 फ़ीसदी हिस्से पर पैम्पर्स ब्रैंड के डायपर्स बनाने वाली प्रॉक्टर ऐंड गैम्बल कंपनी का क़ब्ज़ा है. दुनिया की बात करें तो डायपर इंडस्ट्री क़रीब 85 बिलियन डॉलर यानी क़रीब 7 लाख करोड़ रुपये की है और ये इंडस्ट्री हर साल क़रीब 5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है. 

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