Time Machine on Zee News: ज़ी न्यूज के खास शो टाइम मशीन में हम आपको बताएंगे साल 1989 के उन किस्सों के बारे में जिसके बारे में शायद ही आपने सुना होगा. ये वो साल था जब देश की सुरक्षा में सेंध लगी थी. इसी साल देश के तत्कालीन गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी को आतंकियों ने किडनैप कर लिया था. इसी साल कश्मीर से कश्मीरी पंडितों का पलायन शुरू हुआ था. ये वही साल था जब इंदिरा गांधी के हत्यारों को फांसी दी गई थी. आइये आपको बताते हैं साल 1989 की 10 अनसुनी अनकही कहानियों के बारे में.
इंदिरा गांधी के हत्यारों को फांसी
31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई थी. इंदिरा की हत्या उन्हीं के अंगरक्षकों ने की थी. इंदिरा गांधी की ही सुरक्षा में तैनात सिक्योरिटी गार्ड बेअंत सिंह ने अपनी सर्विस रिवॉल्वर से इंदिरा गांधी पर तीन गोलियां चलाईं. इसके बाद सतवंत सिंह ने भी इंदिरा का शरीर गोलियों से छलनी कर दिया. गोली लगने के बाद इंदिरा को तुरंत एम्स हॉस्पिटल ले जाया गया गया, करीब 4 घंटे बाद दोपहर 2 बजे उन्हें मृत घोषित कर दिया गया. इंदिरा पर गोलियां चलाने के बाद बेअंत सिंह और सतवंत सिंह को अन्य सुरक्षाकर्मियों ने पकड़ लिया. इस दौरान भागने की कोशिश में बेअंत सिंह मारा गया और सतवंत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया. वहीं इंदिरा गांधी की हत्या की साजिश रचने वाले केहर सिंह और बलवंत सिंह पर भी मुकदमा चला. लेकिन बलवंत सिंह के खिलाफ ज्यादा सबूत नहीं मिले और वो रिहा हो गया. लेकिन अदालत ने इंदिरा पर गोलियां चलाने वाले सतवंत सिंह और साजिश रचने वाले केहर सिंह को उनकी हत्या का दोषी मानते हुए सजा ए मौत सुनाई. सजा के करीब 5 साल बाद यानी साल 1989 को तिहाड़ जेल में इन दोनों को फांसी दे दी गई.
गृहमंत्री की बेटी हुई किडनैप
देश में एक तरफ जहां 90 के दशक में सबकुछ ठीक होने की राह पर था. तो वहीं कश्मीर के हालात दिन ब दिन इस दौर में बिगड़ रहे थे. कश्मीर में आए दिन आतंकी घटनाएं हो रही थीं. दिन-दहाड़े लोगों को मौत की नींद सुलाया जा रहा था. इसी बीच तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबिया सईद का अपहरण कर लिया गया. जिसने देश की हवा ही बदल दी. गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबिया उस वक्त श्रीनगर के अस्पताल में बतौर मेडिकल इन्टर्न काम कर रही थीं. 8 दिसंबर 1989 के दिन घर लौटने के लिए जब वो बस में जा रही थी तभी अचानक आए चार लोगों ने उनका अपहरण कर लिया. इस अपहरण के बाद देशभर में अफरा-तफरी मच गई. अपहरण की जिम्मेदारी फिर JKLF ने ली. इसके बाद अपहरणकर्ताओं ने रूबिया को छोड़ने के बदले में जो शर्त रखी और भी चौंकाने वाली थी. अपहरणकर्ताओं ने रुबिया की रिहाई के बदले करीब 5 खतरनाक आतंकवादियों को जेल से रिहा करने की मांग की थी. ये सुनकर सरकार भी सोचने पर मजबूर हो गई. लेकिन गृहमंत्री के बेटी का सवाल था. आखिरकार केंद्र सरकार ने आतंकी संगठन की बात मानी. करीब पांच दिन बाद रूबिया को सुरक्षित छोड़ दिया गया था. इसके बदले में पांच आतंकियों को जेल से रिहा किया गया.
तमिलनाडु असेंबली में खींची गई जयललिता की साड़ी
1989 को तमिलनाडु असेंबली में एक ऐसी घटना हुई जिसने ना सिर्फ देश के लोकतंत्र को शर्मसार किया. बल्कि पूरी राजनीति को ही बदल कर रख दिया. 25 मार्च 1989 को तमिलनाडु विधानसभा में बजट पेश किया जा रहा था. सदन में जैसे ही बजट भाषण पढ़ा जाना शुरू हुआ जयललिता और उनकी पार्टी के नेताओं ने विधानसभा में हंगामा शुरू कर दिया. हंगामा इतना बढ़ा कि विपक्ष के किसी नेता ने मुख्यमंत्री करुणानिधी की तरफ फाइल फेंकी जिससे उनका चश्मा गिरकर टूट गया. जययलिता ने जब देखा कि हंगामा ज्यादा बढ़ रहा है, तो वो सदन से बाहर जाने लगीं. तभी मंत्री दुरई मुरगन आ गए और उन्होंने जयललिता को बाहर जाने से रोका और उनकी साड़ी खींची जिससे उनकी साड़ी फट गई और वो खुद भी जमीन पर गिर गईं. सत्ता पक्ष यानी डीएमके और विपक्ष यानी एआईएडीएमके के सदस्यों के बीच विधानसभा में हाथा-पाई हुई. अपनी फटी हुई साड़ी के साथ जयललिता विधानसभा से बाहर आ गईं. यही वो दिन था जब जयललिता ने सदन से निकलते हुए कहा था कि वो मुख्यमंत्री बनकर ही इस सदन में वापस आएंगी वरना कभी नहीं आएंगी.
एक नाटक ने ले ली जान!
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता और जन नाट्य मंच की नींव रखने वाले एक्टर, डायरेक्टर, गीतकार सफदर हाशमी की हत्या 1989 में उस वक्त कर दी गई जब वो नुक्कड़ नाटक कर रहे थे. 1 जनवरी 1989 को गाजियाबाद के झंडापुर में अंबेडकर पार्क के नजदीक सफदर हाशमी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार के उम्मीदवार रामानंद झा के समर्थन में नुक्कड़ नाटक कर रहा थे. नाटक का नाम था,'हल्ला बोल. तभी-तभी कांग्रेस के उम्मीदवार मुकेश शर्मा वहां से निकल रहे थे. उन्होंने सफदर हाशमी से रास्ता देने को कहा. इस पर सफदर ने उन्हें थोड़ी देर रुकने या दूसरा रास्ते से निकलने को कहा, इस पर गुस्साएं मुकेश शर्मा के समर्थकों ने सफदर हाशमी को बुरी तरह मारा. जिसके बाद उन्हें हॉस्पिटल ले जाते वक्त उनकी मौत हो गई. सफदर हाशमी को मौत के वक्त दिल्ली NCR में मातम पसर गया. लेकिन उनकी मौत के ठीक 2 दिन बाद सफदर हाशमी की पत्नी मल्यश्री और उनके साथियों ने हल्ला बोल का अधूरा नाटक का मंचन कर उसे पूरा किया.
दलित नेता ने रखी राममंदिर की पहली ईंट
9 नवंबर 1989 में जब राम मंदिर के लिए पहली ईंट रखी जानी थी. तब पूरे भारत के हिंदू विद्वानों ने कामेश्वर चौपाल के नाम का चयन किया था. इसके पीछे मुख्य वजह ये थी कि दलित नेता कामेश्वर चौपाल की राम मंदिर आंदोलन में सक्रिय भूमिका थी. राम मंदिर निर्माण के लिए हुए आंदोलन का अहम पड़ाव साल 1986 माना जाता है. उस साल कोर्ट के आदेश पर राम मंदिर का दरवाजा खुला, जो वर्षों से बंद था. तब देश के धर्मगुरुओं ने तय किया कि आयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण हो. देश भर में मंदिर निर्माण के लिए शिलापूजन कार्यक्रम चला. वर्ष 1989 में राम मंदिर का शिलान्यास कार्यक्रम तय हुआ. इससे ठीक पहले कुंभ के मेले में धर्मगुरुओं ने तय किया कि किसी दलित शख्स से ही शिलान्यास कार्यक्रम कराया जाएगा. इसी निर्णय के अनुसार धर्मगुरुओं ने कामेश्वर चौपाल को शिलान्यास के लिए पहली ईंट रखने को कहा. चौपाल इस बात से पहले अनजान थे. चौपाल ने बताया कि उन्हें यह पता था कि धर्मगुरुओं ने किसी दलित से ईंट रखवाने का निर्णय लिया है. लेकिन ये मौका उन्हें खुद मिलेगा, इस बात की उम्मीद नहीं थी. शिलान्यास के बाद चौपाल का नाम पूरे देश में छा गया.
श्रीलंका के राष्ट्रपति ने दी भारत को धमकी
1987 में भारतीय शांति रक्षा सेना श्रीलंका में शांति बनाए रखने के लिए एक स्पेशल ऑपरेशन के तरह काम कर रही थी. जिसका उद्देश्य लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम यानि LTTE और श्रीलंकाई सेना के मध्य श्रीलंकाई गृहयुद्ध को समाप्त करना था. भारतीय शांति रक्षा सेना 1987 में श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति जेआर जयवर्धने के अनुरोध पर राजीव गांधी के द्वारा भेजी गई थी. लेकिन 1989 में जब रणसिंघे प्रेमदासा श्रीलंका के राष्ट्रपति बनें तो उन्होंने भारत को धमकी दी कि अगर भारत ने जल्द अपनी सेना नहीं हटाई. तो वो युद्ध से भी पीछे नहीं हटेंगे. जिसका खुलासा भारत के हाई-कमिश्नर के तौर पर काम करने वाले लखन लाल मल्होत्रा ने किया उन्होनें बताया कि राष्ट्रपति प्रेमदासा ने मुझसे कहा था कि अगर भारत अपनी सेना को वापस नहीं बुलाता. तो वे सरकारी चैनल पर ऐलान कर देंगे कि श्रीलंका के सुरक्षाबलों ने देश के पूर्व और उत्तरी हिस्से की जिम्मेदारी ले ली है. अगर इसके बाद इंडियन पीसकीपिंग फोर्सेज (IPKF) ने विरोध किया. इससे दुश्मनी उभर सकती है और युद्ध की स्थिति पैदा हो सकती है. हांलाकि इस बात का लखन लाल मल्होत्रा ने जवाब देते हुए श्रीलंका के राष्ट्रपति से कहा कि आपसे शांति के बारे में बात करने आया हूं. लेकिन अगर आप युद्ध चाहते हैं तो वो भी संभव है. और लखन लाल का ये जवाब सुनकर श्रीलंका के राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदासा चुप हो गए.
सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज!
आजादी के लंबे वक्त बाद साल 1989 आया जब सुप्रीम कोर्ट को पहली महिला जज मिली. जी हां, साल 1989 आया तो सुप्रीम कोर्ट को पहली महिला जज के तौर पर फातिमा बीवी मिलीं. 1947 में आजादी के बाद साल 1950 में देश का सविंधान लागू हुआ. और संविधान लागू होने के साथ ही देश में सुप्रीम कोर्ट की भी स्थापना हुई. लेकिन सुप्रीम कोर्ट की स्थापना के करीब 39 साल बाद यानि साल 1989 में सर्वोच्च न्याययलय की पहली महिला जज फातिमा बीवी बनीं. फातिमा बीवी जब सुप्रीम कोर्ट की जज बनीं तो हर तरफ उनकी तारीफ हुई, उन्होंने इतिहास रचा. फातिमा बीवी सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि पूरे एशिया में इस पद पर पहुंचने वाली पहली महिला बनीं.
कराची में सचिन का इंटरनेशनल डेब्यू
15 नवंबर 1989 को एक ही मैच से किया था सचिन और वकार ने इंटरनेशनल डेब्यू. 1989 के कराची टेस्ट में भारतीय टीम ने पहले बल्लेबाजी की और पाकिस्तान को दमदार शुरुआत मिली. उसने भारत के 4 विकेट सिर्फ 80 रन पर उखाड़ फेंके थे, वो भी सिर्फ 19 ओवर में एक और इत्तेफाक देखिए कि डेब्यूटेंट सचिन तेंदुलकर का विकेट पाकिस्तान की ओर से डेब्यू करने वाले तेज गेंदबाज वकार यूनिस ने लिया. पहली पारी में तेंदुलकर ने 15 रन बनाए. सचिन के अलावा वकार ने पहली पारी में मांजरेकर, प्रभाकर और कपिलदेव के विकेट चटकाए. तेंदुलकर ने जब डेब्यू किया था तब उनकी उम्र 16 साल और 205 दिन की थी. इतनी छोटी उम्र में सचिन ने अंडर प्रेशर सिचुएशन में अपना पहला मैच खेलते हुए अकरम, इमरान, अब्दुल कादिर और वकार की चुनौती का सामना किया और अजहर के साथ 32 रन की साझेदारी की. फिर उसके बाद सचिन ने जिस तरह से मैच खेला. उसके बाद उन्हें कभी पीछे पलट कर देखने की जरूरत नहीं पड़ी.
कश्मीरी पंडितों के पलायन की शुरुआत
90 का दशक कश्मीर में रहने वाले कश्मीरी पंडितों वो घाव दे रहा था जो अबतक नहीं भर पाए हैं. 1989 ही वो साल था जब कश्मीर से कश्मीरी पंडितों का पलायन शुरू हो गया था. कश्मीरी में आए दिन टारगेट किलिंग हो रही थी. एक-एक करके कश्मीरी पंडितों को मारा जा रहा था. घाटी से धीरे-धीरे कश्मीरी पंडितों का पलायन शुरू हो गया था. इसके पीछे की वजह यही थी कि वहां एक एक करके कश्मीरी पंडितों को मारा जा रहा था. भले ही कश्मीर से कश्मीरी पंडितों को 1990 में निकाला गया था. लेकिन इसकी शुरूआत 1989 में ही हो गई थी. उस दौर में मस्जिदों में घोषणा की जाने लगी कि कश्मीरी पंडित काफिर थे और पुरुषों को कश्मीर छोड़ना होगा. अगर नहीं छोड़ा तो इस्लाम कबूल करना होगा नहीं तो उन्हें मौत की नींद सुला दिया जाएगा. जिन लोगों ने मजबूर हो कर कश्मीर छोड़ना तय किया उन्हें अपने घर की महिलाओं को वहीं छोड़ने के लिए कहा गया. धीरे-धीरे कश्मीर से कश्मीरी पंडितों का वजूद खत्म किया जाने लगा. यही वजह है कि साल 1989 से लेकर 1990 में ना जाने कितने कश्मीर पंडित बेघर हुए और कश्मीर छोड़कर चले गए.
'चांदनी' की चमक से चमका बॉलीवुड
साल 1989 तक आते आते श्रीदेवी हिंदी सिनेमा की वो परी बन चुकी थीं. जो सफलता के आसमान में खुलकर उड़ रहीं थीं. इसी बीच साल 1989 में बड़े पर्दे पर फिल्म आई चांदनी. फिल्म में श्रीदेवी लीड रोल में थीं. या यूं कह लीजिए कि फिल्म के लीड स्टार्स विनोद खन्ना और ऋषि कपूर पर श्री का स्टारडम काफी भारी पड़ा था. ये वो फिल्म है जिसने यशराज फिल्म्स को डूबने से बचाया. उधार के पैसे लेकर बनी यशराज फिल्म्स की शायद ये इकलौती फिल्म है. इसी फिल्म ने यशराज फिल्म्स की मझदार में फंसी नैया को पार किया. फिल्म की कहानी, फिल्म के गाने.. मानों लोगों की जुंबा पर चढ़ गए. देखते ही देखते चांदनी उस साल की बड़ी फिल्म बन गई. बॉक्स ऑफिस पर भी फिल्म को खूब प्यार मिला था.
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