Asaduddin Owaisi row: एआईएमआईएम (AIMIM) के नेता असदुद्दीन ओवैसी के शपथ ग्रहण के दौरान लोकसभा में हंगामा हो गया. शपथ लेने के बाद औवेसी ने ऐसे नारे लगाए जिसे लेकर कई सदस्यों ने नाराजगी जाहिर की. ओवैसी ने शपथ लेने के बाद नारा लगाया- 'जय भीम, जय तेलंगाना'. फिर 'जय फलिस्तीन' कहने के बाद उन्होंने अल्लाह-ओ-अकबर का नारा भी लगाया.
बैरिस्टर ओवैसी ने कहा - 'जय भीम...जय मीम...जय तेलंगाना...जय फिलिस्तीन...तकबीर, अल्लाह-ओ-अकबर'
ओवैसी के नारों पर बीजेपी के कई सांसदों ने आपत्ति ज़ाहिर की और अपना विरोध दर्ज करवाया.
ओवैसी की सफाई
BJP ने ये भी कहा, 'ओवैसी जैसे लोग भारत में रहकर भारत माता की जय नहीं बोलते. BJP विधायक राजा सिंह ने ओवैसी के नारे पर बयान देते हुए कहा- 'फिलिस्तीन से इतना ही प्यार है तो वहीं चले जाएं.' वहीं T राजा ने भी ओवैसी पर पलटवार करते हुए कहा- 'बंदूक उठाकर फिलिस्तीन चले जाएं'.
वहीं विवाद बढ़ने पर ओवैसी बोले कि, जो कहा सबके सामने कहा है. सब बोल रहे हैं क्या बोले? हम क्या बोले- 'जय भीम, जय मीम, जय तेलंगाना, जय फिलिस्तीन. कैसे खिलाफ है बताइए.' वहीं इस मामले पर प्रोटेम स्पीकर ने कहा कि अगर ओवैसी ने कोई आपत्तिजनक बात कही है, तो उसे कार्यवाही के रिकॉर्ड से हटा दिया जाएगा.
क्या कहते हैं नियम
जिस नियम के हवाले से बैरिस्टर ओवैसी साहब की सांसदी जाने की बातें कहीं जा रही हैं, उससे पहले जान लेते हैं कि सरकार का इस मामले पर क्या कहना है. बीजेपी नेता जी किशन रेड्डी, ने कहा - 'जो जय फिलिस्तीन का स्लोगन दिया है, ये बिल्कुल गलत है, ये संसद के नियमों के मुताबिक, जो स्लोगन दिया गया, ये बिल्कुल नियमों के खिलाफ है.'
बड़े-बूढ़े कहते आए हैं कि 'जबान का प्रयोग बड़ा सोंच समझकर करना चाहिए'. आम आदमी हो या माननीय जनप्रतिनिधि सभी से अपेक्षा की जाती है कि वो ऐसा बोलें जिससे जनता जनार्दन का भला हो ना कि समाज के किसी वर्ग या व्यक्ति विशेष की भावना आहत होती हो या आस्था प्रभावित होती हो.
'तोल मोल के बोल'
हिंदी पट्टी बेल्ट यानी राज्यों में एक बड़ा पॉपुलर मुहावरा है- तोल-मोल के बोलना, यानी कोई भी बात कहने या बताने से पहले उसका आगा-पीछा सोचना, उसके कारण होने वाले परिणामों को जानना, समझना. लेकिन ऐसा लगता है कि आज के समय में ये 'फ्रेज' अपनी अहमियत खो चुका है. शायद लोग इसे भूल गए हैं या ये शब्द महज डिक्शनरी में कैद हो कर रह गया है. यानी अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर जिसका जो मन कर रहा है, बस बोले जा रहा है. ओवैसी को ही ले लीजिए. उनके चाहने वाले उन्हें 'कानूनी जानकार' और बड़े अदब से बैरिस्टर साहब कह कर बुलाते हैं. खुद ओवैसी बात-बात पर संसद, सदन, कानून और संविधाए की दुहाई देते रहते हैं, फिर क्या उन्हें ये रूल नहीं मालूम था जिससे उनकी खतरे में पड़ सकती है.
दरअसल संसद के मौजूदा नियमों के अनुसार, किसी भी सदन के सदस्य को किसी विदेशी राज्य (देश) के प्रति अपनी निष्ठा प्रदर्शित करने पर, उसकी लोकसभा या किसी भी सदन की सदस्यता से अयोग्य ठहराया जा सकता है. एक्सपर्ट के मुताबिक या तो उन्हें फिर शपथ लेने को कहा जा सकता है, या फिर वे अयोग्य ठहराए जा सकते हैं.
राष्ट्रपति से हुई शिकायत
कानूनी जानकारों का कहना है कि ओवैसी का बयान नियमों के विरुद्ध है. वो अपनी जनसभा में कोई तकरीर नहीं दे रहे थे, बल्कि संसद में बोल रहे थे. भारत के संविधान के अनुच्छेद 102 और 103 के संदर्भ में ओवैसी के खिलाफ भारत के राष्ट्रपति के समक्ष एक शिकायत दर्ज की गई है, जिसमें उन्हें संसद सदस्य के रूप में अयोग्य घोषित करने की मांग की गई है.
A complaint has been filed before the President of India against Mr. Asaduddin Owaisi in terms of article 102 and 103 of the constitution of india by Mr. Hari Shankar Jain seeking his disqualification as member of parliament. @rashtrapatibhvn @adv_hsjain
— Vishnu Shankar Jain (@Vishnu_Jain1) June 25, 2024
अनुच्छेद 102 को जानिए
संविधान के अनुच्छेद 102 के मुताबिक, अगर कोई सदस्य सरकार में लाभ के पद पर है, तो उसकी संसद सदस्यता चली जाती है. सिर्फ उस पद पर बने रहने पर वह अयोग्य घोषित नहीं होगा, जिस पद पर सांसदों का बना रहना किसी कानून के तहत उसे अयोग्य नहीं ठहराता. वहां से वेतन, भत्ते और दूसरे सरकारी लाभ लेने पर मनाही है.
अयोग्यता संबंधी प्रावधान.
(ए) संविधान के अनुच्छेद 102 के मुताबिक, अगर कोई सदस्य सरकार में लाभ के पद पर है, तो उसकी संसद सदस्यता चली जाती है. सिर्फ उस पद पर बने रहने पर वह अयोग्य घोषित नहीं होगा, जिस पद पर सांसदों का बना रहना किसी कानून के तहत उसे अयोग्य नहीं ठहराता. वहां से वेतन, भत्ते और दूसरे सरकारी लाभ लेने पर मनाही है.
(बी) यदि वह मानसिक रूप से विक्षिप्त है और सक्षम न्यायालय द्वारा ऐसा घोषित किया गया है.
(सी) यदि वह दिवालिया घोषित हो चुका है तो भी उसकी संसद सदस्यता समाप्त की जा सकती है.
(डी) यदि वह भारत का नागरिक नहीं है, या उसने स्वेच्छा से किसी विदेशी राज्य की नागरिकता हासिल कर ली है, या किसी विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा या पालन की किसी स्वीकृति के अधीन है.
(ई) यदि वह संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून द्वारा या उसके तहत अयोग्य घोषित किया गया है.
संविधान के अनुच्छेद 102 के मुताबिक, अगर वह किसी और देश के प्रति निष्ठा जताता है, तो भी उसकी सदस्यता जा सकती है. ओवैसी के केस में दावा किया जा रहा है कि उन्होंने फिलिस्तीन के प्रति निष्ठा जताई है. ऐसे में 102 D के मुताबिक, उनकी सांसदी पर खतरा मंडरा रहा है. वहीं दो या इससे अधिक साल की सजा होने पर भी संसद की सदस्यता चली जाती है.