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विक्रम- प्रज्ञान के पास अब 6 दिन, बचे हैं ये तीन खास काम, पांच सितंबर के बाद हो जाएगा अंधेरा

Vikram Lander- Pragyan Rover: 23 अगस्त को चांद की सतह पर विक्रम लैंडर ने सॉफ्ट लैंडिंग की थी. उसके बाद से लगातार विक्रम और प्रज्ञान रोवर काम कर रहे हैं. पांच सितंबर तक दोनों के पास समय और उन्हें तीन खास काम भी करने हैं.

विक्रम- प्रज्ञान के पास अब 6 दिन, बचे हैं ये तीन खास काम, पांच सितंबर के बाद हो जाएगा अंधेरा
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Lalit Rai|Updated: Aug 31, 2023, 04:28 PM IST

Vikram Lander-Pragyan Rover: चांद की सतह पर प्रज्ञान रोवर ना सिर्फ चहलदमी कर रहा है बल्कि एक से बढ़कर एक जानकारी भी दे रहा है. प्रज्ञान(Pragyan rover on moon surface) ने अब तक जो जानकारी दी है उसके मुताबिक धरती पर कम होते संसाधनों का विकल्प मिल सकता है. चांद पर चहलकदमी के दौरान एक बार प्रज्ञान क्रेटर में गिरते गिरते बचा लेकिन इसरो(isro chandrayann mission) की सतर्क निगाहों ने बचा लिया. इसरो का कहना है कि उम्मीद है कि चांद पर उस जगह 19 सितंबर के बाद रोशनी होगी तो विक्रम और प्रज्ञान दोनों काम कर सकेंगे

बता दें कि 23 अगस्त को जब विक्रम लैंडर(Vikram Lander) चांद की सतह पर उतरा उस दिन से लेकर यानी पांच सितंबर तक रोशनी रहेगी. पांच सितंबर के बाद अंधेरा हो जाएगा. विक्रम और प्रज्ञान की डिजाइनिंग 14 दिन के हिसाब से की गई है. अब विक्रम और प्रज्ञान के पास सिर्फ 6 दिन बचे हैं और इन दिनों में उन्हें कई महत्वपूर्ण काम करने हैं.

प्रज्ञान के जिम्मे अभी तीन काम

-चंद्रयान के पास पहला काम सतह पर भूंकपीय गतिविधियों के बारे में जानकारी हासिल करना है.

-चांद और धरती के बीच सिग्नल की दूरी का सटीक अध्ययन करना है

-चांद की धूल में अभी तक पता लगाए तत्वों के अलावा और तत्वों की खोज करनी है.

चांद की सतह पर अभी इतने तत्व

सल्फर के अलावा, शुरुआती परिणामों में एल्यूमीनियम, कैल्शियम, लोहा, क्रोमियम, टाइटेनियम, मैंगनीज, सिलिकॉन और ऑक्सीजन शामिल हैं. अब तक परीक्षण किए गए नमूनों में पानी के लिए आवश्यक कोई हाइड्रोजन नहीं पाया गया है, लेकिन हाइड्रोजन की उपस्थिति के संबंध में गहन जांच चल रही है. यह उपलब्धि विक्रम लैंडर द्वारा चंद्रमा के उच्च अक्षांशों पर तापमान के पहले माप के बाद मिली है.चंद्रमा के ध्रुवों के पास गड्ढों के तल पर पानी जमे हुए रूप में रहता है. इस तरह की जानकारी के बाद चांद को फतह करने के प्रयासों में इजाफा हुआ है.इसी संभावना की वजह ने भारत को चंद्रयान 3 की  लैंडिंग 69 डिग्री दक्षिण में करने के लिए प्रेरित किया. रूस ने भी उसी दिशा में कदम बढ़ाया हालांकि उसे कामयाबी नहीं मिली. 

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