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लैंसडाउन का नाम बदलने को लेकर गरमाई सियासत, कालौं डांडा के बाद अब बीजेपी विधायक ने की इस नाम की मांग

lansdowne name change: लैंसडाउन का नाम बदलने के प्रस्ताव को लेकर राजनीति गरमाई हुई है. बीजेपी के लैंसडाउन विधानसभा क्षेत्र के विधायक दिलीप रावत का बड़ा बयान सामने आया है. 

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लैंसडाउन का नाम बदलने को लेकर गरमाई सियासत, कालौं डांडा के बाद अब बीजेपी विधायक ने की इस नाम की मांग
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Shailjakant Mishra|Updated: Oct 31, 2022, 01:09 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में लैंसडाउन का नाम बदलने के प्रस्ताव को लेकर राजनीति गरमाई हुई है. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट और काग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा एक दूसरे पर वार-पलटवार कर रहे हैं. इसी बीच बीजेपी के लैंसडाउन विधानसभा क्षेत्र के विधायक दिलीप रावत का बड़ा बयान सामने आया है. 

बीजेपी विधायक ने क्या कहा- 
बीजेपी विधायक दिलीप रावत का कहना है कि उनके द्वारा पहले भी यह प्रस्ताव पूर्व रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण को दिया गया था कि लैंसडाउन नाम बदलकर बलभद्र नगर किया जाना चाहिए. इसके अलावा कैंटोनमेंट बोर्ड को भी समाप्त किया जाना चाहिए, क्योंकि यह भी अंग्रेज़ो के द्वारा ही शुरू किए गए थे. 

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष का तर्क
लैंसडाउन का नाम बदलकर कालो डांडा करने के प्रस्ताव को लेकर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने भी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, जो समझदार लोग होते हैं वह अपने इतिहास को अपनी धरोहरों को बचाकर रखते हैं. इतिहास गवाह है जिन लोगों ने अपने इतिहास को खुर्द बुर्द करने की कोशिश की है वह देश आज बहुत पीछे हैं. नाम बदलने से अच्छा होता कि वहां की सुविधाएं बढ़ाई जातीं. वीरों के नाम से बड़े इंस्टिट्यूट खोले जाते अस्पताल का उच्चीकरण होता.

उन्होंने आगे कहा, ''मैं मुख्यमंत्री से उम्मीद करूंगा कि लैंसडाउन में 300 नाली में बना एक स्कूल है, जिसे तोड़ दिया गया. उसके लिए पैसा जारी करवाएं. वो ऐतिहासिक धरोहर भी है , अगर उस इंटर कॉलेज को भव्य और आवासीय बनाया जाए तो नाम बदलने से ज्यादा बेहतर होगा. वहां के छात्रों को उसका फायदा होगा. नाम बदल की राजनीति करना ठीक नहीं है. इतिहास कई चीजें सिखाता है, सबक देता है.''

बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष का पलटवार
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट का कहना है कि कांग्रेस की नीति कभी राष्ट्रवादी रही नहीं , देश विभाजन करने वाली कांग्रेस देश जोड़ने का नारा देती है तो प्रश्न खड़ा होना स्वाभाविक है. पहली बार देश के अंदर राष्ट्रीय बिंदुओं के प्रति श्रद्धा का वातावरण बना है, गुलामी के प्रतीकों को समाप्त करना चाहते हैं. 

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