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खुद को 'तुर्रम खान' समझने वाले भी नहीं जानते कौन थे यह जांबाज हीरो! आइए खंगालें इतिहास

Turram Khan:  तुर्रम खान कोई मामली व्यक्ति नहीं थे. तुर्रम उर्फ तुर्रेबाज खान 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के जांबाज हीरो में से एक थे. एक ओर उत्तर में मंगल पाण्डेय ने स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत की, तो दूसरी ओर हैदराबाद में इसके नेतृत्व की जिम्मेदारी तुर्रम खान ने ली...

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खुद को 'तुर्रम खान' समझने वाले भी नहीं जानते कौन थे यह जांबाज हीरो! आइए खंगालें इतिहास
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Zee News Desk|Updated: Jun 02, 2022, 01:51 PM IST

Turram Khan: खुद को बड़ा तुर्रम खान समझते हो न... ज्यादा तुर्रम खान बनने की कोशिश मत करो... ऐसी कहावतें तो चलती रहती हैं. हम व्यंगात्मक तरीके से अपने उन बड़बोले दोस्तों को यह बात कहते हैं, जो अपने आपको बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं और हीरो बनने की कोशिश करते हैं. अब सच्चाई यह है कि हमें यह कहावत किसी ने कही थी, तो हम भी किसी चाइनीज़ व्हिस्पर की तरह इसे आगे बढ़ा देते हैं. इसका मतलब समझने का समय किसके पास है? ये छोड़िए.... हम में से कई तो यह भी नहीं जानते कि तुर्रम खान आखिर थे कौन? तो चलिए आज इस बात को क्लियर कर ही लेते हैं और जानकारी की पर्सनल किताब में एक और चीज एड कर लेते हैं. यह भी पता करते हैं कि उनके नाम पर इतनी कहावतें बनीं क्यों?

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कौन थे तुर्रम खान?
दरअसल, तुर्रम खान कोई मामली व्यक्ति नहीं थे. तुर्रम उर्फ तुर्रेबाज खान 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के जांबाज हीरो में से एक थे. एक ओर उत्तर में मंगल पाण्डेय ने स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत की, तो दूसरी ओर हैदराबाद में इसके नेतृत्व की जिम्मेदारी तुर्रम खान ने ली. 

हैदराबाद में स्वतंत्रता संग्राम का जिम्मा तुर्रम खान ने लिया
साल था 1857... मार्च की 29 तारीख को अपने देश को आजाद करने की ठानने वाले मंगल पाण्डेय ने संग्राम की चिंगारी बैरकपुर में फूंकी. जल्द ही यह चिंगारी आग की तरह फैल गई और दानापुर, आरा, इलाहाबाद, मेरठ, दिल्ली, झांसी होते हुए पूरे भारत में पहुंच गई. 

केवल तलवारों के बल पर अंग्रेजों पर बोला हमला
हैदराबाद में उस समय अंग्रेजों के एक जमादार चीदा खान ने सिपाहियों के साथ दिल्ली कूच करने से इनकार कर दिया. फिर, उसे निजाम के मंत्री ने धोखे से कैद किया और अंग्रेजों को सौंप दिया. उसे ही छुड़ाने की जिम्मेदारी ली तुर्रम खान ने. 1857 की 17 जुलाई की रात तुर्रम खान ने 500 स्वतंत्रता सेनानियों के साथ रेजीडेंसी हाउस पर हमला बोल दिया. 

गद्दार ने बिगाड़ी तुर्रम की योजना
तुर्रम खान का प्लान था कि वह उस समय रेजीडेंसी हाउस पर हमला करेंगे, जब अंग्रेजों को उम्मीद भी नहीं होगी और उन्हें फतह मिलेगी. हालांकि, उनकी यह योजना सफल नहीं हो पाई, क्योंकि एक गद्दार ने अंग्रेजों से मिलकर उन्हें दगा दे दिया. यह गद्दार था निजाम का वजीर सालारजंग, जिसने अंग्रेजों तक हमले की सूचना पहुंचा दी थी. ऐसे में अंग्रेज तुर्रम खान के हमले को लेकर पूरी तैयारी किए बैठे थे. तोप में गोले भर दिए गए थे और हजारों सिपाही बंदूक लिए तैनात खड़े थे. 

रात भर चला तुर्रम और अंग्रेजों के बीच मुकाबला
अब अंग्रेजों के पास लड़ाई के बड़े-बड़े हथियार थे, जबकि तुर्रम खान और साथियों के पास केवल तलवारें. फिर भी तुर्रेबाज खान ने हार मानने से साफ इनकार कर दिया और अंग्रेजों पर टूट पड़े. एक समय आया जब तुर्रम की चंद तलवारें ब्रिटिश की हजारों तोपों और सिपाहियों की गोलियों पर भारी पड़ गईं. पूरी रात यह मुकाबला चलता रहा. अंग्रेजों ने कोशिश तो पूरी की, लेकिन वह तुर्रम खान को पकड़ नहीं सके.

अंग्रेजों ने रखा 5000 का इनाम, धोखे से की हत्या
इस शिकस्त के बाद अंग्रेज आग बबूला हो गए और तुर्रम खान को पकड़ने के लिए 5 हजार रुपये का इनाम रख दिया गया. इसके कुछ समय एक और गद्दार तुर्रम खान का साथी बना, जिसका नाम था मिर्जा कुर्बान अली बेग. उसने तूपरण के जंगलों में तुर्रेबाज खान से दगा किया और धोखे से उनकी हत्या कर दी. तुर्रम खान की शहादत के बाद स्वतंत्रता कि उस लड़ाई को हिला दिया. आज भी तुर्रम खान को उनकी बहादुरी के लिए याद किया जाता है और उनके नाम से आज भी कहावतें चलती हैं.

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