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श्रावस्ती : बकरी विवाद में हुए दोहरे हत्याकांड में 24 साल बाद आया फैसला, 14 लोगों को आजीवन कारावास

UP  Crime News : सामूहिक हत्याकांड मामले में 14 लोगों को सश्रम उम्रकैद की सजा अपर सेशन जज ने सुनाई है. अभियुक्तों पर जुर्माना भी लगा है.  

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Double Murder
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Zee Media Bureau|Updated: Sep 21, 2022, 06:22 PM IST

संतोष सिंह/ बहराइच : उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती (Shravasti) जिले में 24 साल पुराने दोहरे हत्याकांड (Double Murder) में बुधवार को फास्ट ट्रैक कोर्ट का फैसला आया. अदालत ने इस नृशंस सामूहिक हत्याकांड मामले में 14 लोगों को सश्रम आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. साथ ही हर अभियुक्त 56800 रुपये का जुर्माना भी लगाया है. दरअसल 24 वर्ष पहले सोनवा थाना क्षेत्र के तुरहनी रज्जब गांव में गांव निवासी सत्तार नाम के शख्स के खेत में जमील नाम के शख्स की बकरी रस्सी तोड़कर चली गई थी. जब जमील का पुत्र कल्लू अपनी बकरी पकड़ने सत्तार के खेत पर गया तो सत्तार ने उसे मां बहन की गाली देते हुए थप्पड़ जड़ दिया.

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सत्तार बकरी लेकर अपने घर की तरफ जाने लगा. इसके बाद कल्लू का चचेरा भाई अब्दुल रहमान सत्तार के पीछे फारूक पुत्र हबीब के दरवाजे पर पहुंचा और सत्तार से इसी बात को लेकर कहासुनी होने लगी. और देखते ही देखते यह कहासुनी मारपीट में बदल गई. इस मारपीट में दोनों पक्षों से 2 व्यक्तियों की घटनास्थल पर ही मौत हो गई और तीसरे शख्स की मौत बहराइच जिला अस्पताल में इलाज के दौरान हो गई थी. दोनों पक्षों की तरफ से सोनवा थाने में मुकदमा पंजीकृत हुआ था.

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इस मामले की विवेचना थानाध्यक्ष सोनवा ने किया था. विवेचक ने 16 नामजद अभियुक्तों के विरुद्ध न्यायालय पर चार्जशीट दाखिल की थी. दौरान मुकदमा दो अभियुक्त रियासत और जब्बार की मौत हो गई थी. इस मामले का विचारण न्यायालय अपर सत्र न्यायाधीश (फास्ट ट्रेक ) कोर्ट पर हुआ. अभियोजन पक्ष की पैरवी सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता पंकज देव गुप्ता ने किया. अभियोजन के पक्ष से कुल 11 साक्षियों को परीक्षित कराया गया.

अपर जिला सत्र न्यायाधीश अजय कुमार सिंह ने इस नृशंस हत्याकांड मामले में 14 लोगों को दोषी मानते हुए सभी अभियुक्तों को सश्रम आजीवन कारावास की सजा सुनाई है साथ ही प्रति अभियुक्त 56800 रुपए के अर्थदंड से दंडित किया है. अर्थदंड अदा न करने की स्थिति में 2 वर्ष की अतिरिक्त साधारण कारावास की सजा हर अभियुक्त को भुगतनी पड़ेगी. जिला शासकीय अधिवक्ता केपी सिंह ने बताया कि यह घटना 9 जनवरी 1998 की है .

 

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