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Shamli: खौफजदा अंग्रेजों ने तीन दिन पेड़ पर लटकाकर रखा था इस क्रांतिकारी का शव, हिल गई थीं ब्रिटिश हुकूमत की चूलें

Azadi Ka Amrit Mahotsav: शामली के चौधरी मोहर सिंह आजादी के आंदोलन में अग्रणी सेनानियों में शामिल रहे. उन्होंने अन्य क्रांतिकारियों के साथ वर्ष 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला. खौफजदा अंग्रेजों ने उनके शव को तीन दिन तक पेड़ पर लटका कर रखा था. 

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Shamli: खौफजदा अंग्रेजों ने तीन दिन पेड़ पर लटकाकर रखा था इस क्रांतिकारी का शव, हिल गई थीं ब्रिटिश हुकूमत की चूलें
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Zee Media Bureau|Updated: Aug 13, 2022, 05:30 PM IST

श्रवण शर्मा/शामली: भारत को आजादी दिलाने में अनेक वीरों को प्राणों की आहुति देनी पड़ी. शामली में भी अनेक वीरों ने अंग्रेजों से लोहा लिया और स्वतंत्रता की राह में अपने प्राणों का बलिदान कर दिया. ऐसे बलिदानी क्रांतिकारियों में शामली के चौधरी मोहर सिंह का नाम सबसे पहले याद किया जाता है. 

1857 में अंग्रेजों के खिलाफ खोला था मोर्चा
चौधरी मोहर सिंह का जन्म शामली के जमींदार चौधरी घासीराम के यहां हुआ था. वह आजादी के आंदोलन में अग्रणी सेनानियों में शामिल रहे. उन्होंने अन्य क्रांतिकारियों के साथ वर्ष 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला और उनकी तोपों के आगे तन गए. कहा जाता है कि शहीद होने के बावजूद क्रांतिकारियों में दहशत फैलाने के लिए उनके शव को तीन दिन तक पेड़ पर लटका कर रखा था. 

मथुरा में गुरु विरजानंद के आश्रम में बनाई थी आंदोलन की योजना 
शामली शहर के एसटी तिराहे पर स्थित एकता पार्क में चौधरी मोहर सिंह की प्रतिमा लगी है. इस प्रतिमा पर लगे शिलापट्ट पर चौधरी मोहर सिंह की शहादत की दास्तां लिखी है. वहीं अंग्रेजी हुकुमत के दौर की वह तहसील की बिल्डिंग आज भी जर्जर हालत में खड़ी है. मोहर सिंह आजादी के आंदोलन में अग्रणी सेनानियों में शामिल रहे. उन्होंने आंदोलन की योजना मथुरा में गुरु विरजानंद के आश्रम में बनाई थी. 

साथियों के साथ शामली तहसील और रेजिडेंसी में लगा दी थी आग
चौधरी मोहर सिंह के साथ थानाभवन के काजी नियामत अली खां और महबूब अली खां ने मिलकर शामली तहसील और रेजिडेंसी में आग लगा दी थी. उनकी अगुवाई में नौजवान अलग-अलग टुकड़ियों में अंग्रेजों से मुकाबला कर रहे थे. करीब छह महीने तक तहसील पर क्रांतिकारियों का कब्जा रहा था. फतेहपुर के जंगल में अंग्रेजों के साथ क्रांतिकारियों का संघर्ष हुआ था. अंग्रेजों ने तोपें लगाकर शामली को चारों ओर से घेर लिया था. 

संघर्ष में करीब 225 पुरुष और 27 महिलाएं हुए थे शहीद 
यहां पर थानाभवन के अब्दुल रहीम खां, सैदपुर के चौधरी भगवान सिंह, थानाभवन के चौधरी हरज्ञान सिंह, भैंसवाल के भवानी सिंह, आशा देवी, हरड़ के गेंदा सिंह, इंद्राकौर देवी, पुरबालियान के चौधरी हरपाल सिंह, शोभा देवी, परासौली के खैराती खां, शामली से मामकौर, सोरम से चौधरी लक्ष्मण सिंह, राजकौर, ढिकौली से शोभा सिंह के साथ चौधरी मोहर सिंह भी शहीद हो गए थे. शिलापट्ट पर दर्ज जानकारी के अनुसार यहां पर 225 पुरुष और 27 महिलाएं शहीद हुए थे. 

क्रांतिकारियों में दहशत फैलाने के लिए झिंझाना-करनाल रोड पर मोहर सिंह के शव को तीन दिन तक पेड़ पर फांसी पर लटकाकर रखा गया था. उनके वंशज रामकुमार बताते हैं कि पूरे देश व शामली के लिए गौरव की बात है कि वह उस धरती के वासी हैं, जिस पर अमर बलिदानी क्रांतिकारी मोहर सिंह ने जन्म लिया. उन्होंने हमें आजादी दिलाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी. आजादी के अमृत महोत्सव पर देश उन्हें याद कर रहा है, लेकिन हमें उनके आदर्शों पर चलते हुए देश के लिए काम करना है. 

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