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Sawan 2022: कलयुग के श्रवण कुमार! मां और दिव्यांग भाई को पालकी में बिठाकर दो भाई करा रहे कांवड़ यात्रा

Sawan 2022: दोनों भाई इस साल दूसरी बार कांवड़ यात्रा कर रहे हैं..... दोनों की एक ही मन्नत थी कि वे अपने दिव्यांग भाई और बूढ़ी मां को कंधे पर बैठाकर कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) कराए...  

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Sawan 2022: कलयुग के श्रवण कुमार! मां और दिव्यांग भाई को पालकी में बिठाकर दो भाई करा रहे कांवड़ यात्रा
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Zee Media Bureau|Updated: Jul 17, 2022, 01:31 PM IST

आशीष मिश्रा/हरिद्वार: धर्मनगरी हरिद्वार (Haridwar) की हरकी पौड़ी पर लगातार श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ती जा रही है. अलग-अलग डिजाइन के श्रद्धालु कांवड़ (Kanwar) लेकर हरिद्वार से रवाना हो रहे हैं. हरिद्वार शिव भक्तों की आस्था और भोले नाथ के जयकारों से गूंज उठी है. यहां पर ऐसे नजारे देखने को मिल रहे हैं जो आपको भाव-विभोर कर सकते है.

कोरोना काल (Covid period0 के दो साल के लंबे अंतराल के बाद इस बार कावड़ यात्रा सुचारू रूप से शुरू हो चुकी है. वहीं धर्म नगरी उसी आस्था के साथ बुलंदशहर (Bulandshahr) निवासी श्रवण और राजेश अपने दिव्यांग भाई रमेश और मां सावित्री देवी को पालकी में कांवड़ यात्रा कराकर सेवा करने का संदेश दे रहे हैं, दरअसल आज के समय में मां और भाई के लिए इतना प्रेम बहुत कम देखने को मिलता है.

पालकी में दिव्यांग भाई और अपनी बूढ़ी मां को बिठाया
हरकी पैड़ी पर गंगा स्नान करने के बाद गंगाजल भरकर पालकी में दिव्यांग भाई और अपनी बूढ़ी मां को उसमें बैठा दिया, इसके बाद दोनों भाईयों ने अपने दिव्यांग भाई और वृद्ध मां को पालकी से कंधे पर उठाकर हरिद्वार से बुलंदशहर तक की यात्रा पर निकल गए. शुक्रवार को दोनों भाई रुड़की के मंगलौर पहुंचे, जहां पर उन्होंने विश्राम किया. 

हरिद्वार से बुलंदशहर की दूरी 250 किलोमीटर
बता दें कि हरिद्वार से बुलंदशहर की दूरी 250 किलोमीटर है, लेकिन भगवान शंकर के प्रति दोनों भाइयों की आस्था ने दिव्यांग भाई और बूढी मां की सेवा का संदेश दिया है. दोनो भाईयों का कहना है कि दोनों भाई इस साल दूसरी बार कांवड़ यात्रा कर रहे हैं. उनकी एक ही मन्नत थी कि अपने दिव्यांग भाई और वृद्ध मां को कंधे पर बैठाकर कांवड़ यात्रा कराएं, जो आज भगवान शिवशंकर ने यह मन्नत इस साल पूरी कर दी है.

इस दौरान श्रवण ने बताया कि पिछली बार जब मैं कावड़ लेकर आया था तो मैंने एक हरियाणा के लड़के को उसके माता-पिता को इसी तरह ले जाते हुए देखा था तो मुझमें भी ये जुनून जागा और मैं अपने दिव्यांग भाई और अपनी मां को लेकर आ गया.

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