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जानिए क्‍यों की जा रही है 109 साल पुराने 'लाल पुल' की जांच

IIT दिल्‍ली और रुड़की की एक टीम गोमती नगर स्थित हार्डिंग ब्रिज की पावर टेस्टिंग कर रही है. इसके बाद ही तय होगा कि इस पुल को लोगों के लिए खोला जाए या नहीं. 

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जानिए क्‍यों की जा रही है 109 साल पुराने 'लाल पुल' की जांच
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Zee Media Bureau|Updated: Dec 18, 2022, 06:54 PM IST

लखनऊ : अभी तक आपने इंसानों और जानवरों की चिकित्‍सीय जांच के बारे में सुना होगा. क्‍या हो जब किसी पुल की 'नब्‍ज' तलाशी जाए. जी हां, आप सही सुन रहे हैं लखनऊ के गोमती नगर स्थित हार्डिंग ब्रिज (लाल पुल) की इन दिनों पावर टेस्टिंग की जा रही है. आईआईटी दिल्‍ली और रुड़की की एक टीम गोमती नगर में डेरा डाले है. विशेषज्ञ 109 साल पुराने इस पुल की मजबूती को परख रहे हैं. 

4 से 5 लाख लोग प्रतिदिन गुजरते हैं 
दरअसल, प्रशासन के अधिकारियों का मानना है कि इस पुल से रोजाना 4 से 5 लाख लोग गुजरते हैं. पुल पर अब दरारें आने लगी हैं. पुल अपनी जर्जर हालत की ओर बढ़ रहा है. पुल के जर्जर हालत की खबर फैली तो विशेषज्ञों की टीम लखनऊ पहुंच गई कि कैसे इस विरासत को बचाया जा सके. विशेषज्ञों की टीम पुल पर एक से डेढ़ गुना ज्‍यादा वजन रख कर उसकी क्षमता परख रहे हैं. 

पुल का लचीलापन माप रही टीम 
विशेषज्ञ टीम से जुड़े डीएन तिवारी का कहना है कि उनकी टीम का उद्देश्‍य है कि पुल को बिना नुकसान पहुंचाएं उसकी जांच की जा सके. उन्‍होंने कहा कि हमारी टीम के लोग पुल के ऊपर और नीचे दोनों तरफ मौजूद हैं. पुल का लचीलापन जांचने के लिए उसपर 14 मीटर लंबाई पर 120 क्विंटल का वजन रखा गया है. इसके लिए पुल पर 4 डंपर में मिट्टी लादकर रखी गई है. एक डंपर का वजन 30 क्विंटल है. पुल के नीचे खड़े होकर लगातार पुल का लचीलापन परखा जा रहा है.  

अगले माह टीम सौंपेगी जांच रिपोर्ट 
डीएन तिवारी ने कहा कि आईआईटी रुड़की से अनुमत‍ि मिलने के बाद जांच रिपोर्ट को 3 जनवरी को पीडब्‍ल्‍यूडी को सौंप देंगे. जांच रिपोर्ट के बाद ही स्‍पष्‍ट हो जाएगा कि इस पुल से कितना आवागमन ठीक रहेगा. 

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लाल पुल का इतिहास 
बताया गया कि यह पुल 109 साल पुराना है. यह पुल नवाबों की नगरी के बीच में है, जो शहर को आपस में जोड़ने का काम करता है. शुरुआत में यह पुल पत्‍थरों का हुआ करता था. बाद में 17वीं शताब्‍दी में इसे अवध के नवाब आसफुद्दौला ने जीर्णोद्धार किया. उन दिनों नवाब की बेगम शमशुन निशां पुल से गुजरने वालों से कर भी वसूला करती थीं. उनकी इजाजत के बिना इस पुल से कोई नहीं गुजर पाता था, इसीलिए इसे शाही पुल भी कहा जाता है. 

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