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सामाजिक समरसता का उदाहरण है देवरिया का पिंडी गांव, जमील और साबिर मियां पेश कर रहे हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल

देवरिया जनपद में एक गांव है पिंडी. पिंडी गांव सरयू नदी के किनारे बसा हुआ है. गर्गमुख शांडिल्य गोत्र के ब्राह्मणों का उत्पत्ति का केंद्र है पिंडी गांव. इस गांव में बड़े-बड़े विभूषित महात्मा पैदा हुए.

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सामाजिक समरसता का उदाहरण है देवरिया का पिंडी गांव, जमील और साबिर मियां पेश कर रहे हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल
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RAVI KANT MISHRA|Updated: Mar 16, 2023, 04:39 PM IST

त्रिपुरेश त्रिपाठी देवरिया : एक तरफ जहां देश में सामाजिक वैमनस्यता तेजी से फैल रही है तो वहीं दूसरी तरफ यूपी के देवरिया जनपद में एक गांव है पिंडी. पिंडी गांव सरयू नदी के किनारे बसा हुआ है. गर्गमुख शांडिल्य गोत्र के ब्राह्मणों का उत्पत्ति का केंद्र है पिंडी गांव. इस गांव में बड़े-बड़े विभूषित महात्मा पैदा हुए. यह गांव पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय कमलापति त्रिपाठी का भी पैतृक गांव है.जो सामाजिक समरसता का संदेश आज भी दे रहा है.

इस गांव में रहने वाले जमील मियां जिनकी उम्र लगभग 65 वर्ष है. यह इस गांव में नाउ का कार्य कई वर्षों से करते हैं. जमील मियां हिंदू परिवारों के बच्चों के जन्मोत्सव, उनकी शादी और बुजुर्ग के देहांत होने के बाद कर्मकांड में भी हिस्सा लेते हैं. सब कुछ शुभ ,अशुभ सभी कार्यों में शिरकत करते हैं. गांव के लोग इन्हें प्रेम भी करते हैं और उनका सम्मान भी करते हैं.

जमील मियां अच्छी खासी संस्कृत भी बोलते हैं और इन्हें कुछ अंग्रेजी का भी इन्हे ज्ञान है. जब भी कोई शुभ अवसर होता है तो जमीर मियां नाऊ के तौर पर पहुंच जाते हैं. वह शादी संस्कार हो या बच्चे का जन्मोत्सव हो या किसी बुजुर्ग की मौत हो, सभी कार्य में जमील मियां की आवश्यकता पड़ती है.

जब हमने जमील मियां से बात की तो इनका कहना था कि सभी का खून लाल है. सबको सभी का सम्मान करना चाहिए और सब को सामाजिक समरसता बनाकर रखनी चाहिए. जमील मियां हमें संस्कृत के श्लोक भी सुनाएं. जमील मियां की सादगी ही उनके व्यक्तित्व का परिचय दे रही थी.

दूसरी तस्वीर इस गांव के साबिर मियां की है जो पिंडी और आसपास के गांव के बुजुर्ग की मौत होने के बाद हिंदू भाई इन्हे फोन कर घाट पर बुलाते हैं और साबिर मियां घाट पर जाकर चिताओं की लकड़ी सजाते हैं. साबिर मियां पेशे से मजदूर हैं और उनकी बिटिया एलएलबी भी कर रही हैं. साबिर मियां पूरे मनोयोग से चिताओं को सजाते हैं और जब तक दाह संस्कार पूरा नहीं हो जाता वह घाट पर बैठे रहते हैं. उसके बाद हिंदू धर्म के अनुसार नदी में नहा कर अपने काम पर चले जाते हैं.

गांव के हर बंदे, बुजुर्ग, नौजवान के होठों पर सबीर मियां और जमील मियां का नाम चलता रहता है. जब भी कोई शुभ अवसर हो जमील मिया या जाते हैं. जब हमने साबिर मियां से बात की तो इनका कहना था की मन चंगा तो कठौती में गंगा. मन साफ होना चाहिए, सभी आपस में भाई हैं. सामाजिक समरसता का उदाहरण है यह पिंडी गांव. सरयू नदी के किनारे बसे इस गांव में सभी मूलभूत सुविधाएं मौजूद हैं.

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