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आजमगढ़ उपचुनाव 2022: अपने ही गढ़ में समाजवादी पार्टी को क्यों करना पड़ा हार का सामना,जानें 5 कारण

 Azamgarh Bypoll Result 2022: समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने उपचुनाव में प्रचार से दूरी बना ली थी. इसका असर परिणाम में साफतौर पर देखने को मिला. अखिलेश ने  आजमगढ़ में एक दिन भी प्रचार नहीं किया, जबकि आजमगढ़ उनका लोकसभा क्षेत्र भी रह चुका है.

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आजमगढ़ उपचुनाव 2022: अपने ही गढ़ में समाजवादी पार्टी को क्यों करना पड़ा हार का सामना,जानें 5 कारण
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Suraj Pathak|Updated: Jun 26, 2022, 07:16 PM IST

Azamgarh Chunav Result 2022: आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव के जीत का सेहरा भोजपुरी फिल्म के अभिनेता दिनेश लाल यादव (Dinesh Lal Yadav) निरहुआ के सिर बंधा. दिनेश लाल यादव ने सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव (Dharmendra Yadav) और बीएसपी के गुड्डू जमाली (Guddu Jamali) को मात दी है.निरहुआ को 312768 वोट मिले. जबकि सपा के धर्मेंद्र यादव को 304089 वोट मिले.यहां निरहुआ 8500 से भी ज्यादा वोटों से चुनाव जीते हैं.  वहीं, अपने ही गढ़ में समाजवादी पार्टी के हारने के क्या कारण रहे. आइए जानते हैं. 

भोजपुरी सिनेमा के दिग्गज जुटे रहे 
दिनेश लाल यादव के लिए भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के कई सुपस्टार मैदाम में उतर गए थे. पवन सिंह, आम्रपाली दूबे, निलम गिरी, प्रवेश यादव, समर सिंह, समते कई दिग्गज कलाकार लागतार निरहुआ के पक्ष में रोड शो और रैली किए. चूंकी पूर्वांचल में भोजपुरी का अच्छा खासा प्रभाव है. इसका भी बीजेपी को फायदा मिला. चुनाव से ठीक पहले आम्रपाली दूबे यहां की महिला वोटरों से रूबरू हुईं और निरहुआ के पक्ष में मतदान करने की अपील भी की. 

अखिलेश का ओवर कॉन्फिडेस पार्टी को ले डूबा 
समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने उपचुनाव में प्रचार से दूरी बना ली थी. इसका असर परिणाम में साफतौर पर देखने को मिला. अखिलेश ने  आजमगढ़ में एक दिन भी प्रचार नहीं किया, जबकि आजमगढ़ उनका लोकसभा क्षेत्र भी रह चुका है. इसके चलते स्थानीय लोग नाराज दिखे. लोगों का कहना था कि आजमगढ़ के लोगों ने जिसे चुनाव जिताया, उसने एक बार में ही आजमगढ़ को बेगाना कर दिया. वहीं, भाजपा ने उपचुनाव की तारिखों के ऐलान के साथ ही अपने कार्यकर्ताओं को बूथ लेवल पर एक्टिव कर दी थी. मतदाओं को रिझाने के लिए संगठन के पार्टी के द्वारा किए गए कामों को लेकर जनता के बीच जाते रहे. आजमगढ़ चुनाव से ठीक पहले भाजपा के सभी प्रदेश स्तर के नेता, मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री के दौरे के अलावा अन्य बड़े नेता लगातार जनता के बीच बने रहे.

बाहरी प्रत्याशी रहा घाटे का सौदा 
आजमगढ़ का लोकल प्रत्याशी को चुनाव नहीं लड़ाना अखिलेश यादव को भारी पड़ गया. सैफई से पैराशूट से प्रत्याशी उतारना भी सपा के लिए ठीक नहीं रहा. सपा के संरक्षक मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव यहां से सांसद तो रहे, लेकिन कभी यहां आए नहीं. उनका जनता से सीधा लगाव नहीं  रहा. इसका सीधा असर उपचुनाव में दिखने को मिला. विधानसभा चुनाव में दसों विधानसभा सीटों पर कब्जा जमाने वाली पार्टी जनता को रिझाने में असफल रही. सत्ताधारी बीजेपी यहां की जनता को यह समझाने में कामयाब हो गई कि अगर यहां से भाजपा का प्रत्याशी जीत दर्ज करता है तो यहां की जनता को डबल इंजन की सरकार के सभी योजनाओं का सीधा लाभ मिलेगा. साथ ही आजमगढ़ में चौमुखी विकास होगा.    

जातीय समीकरण हुआ फेल
आजमगढ़ लोकसभा में यादव और मुस्लिम वोटर्स की संख्या सबसे ज्यादा है. दलित और कुर्मी वोटर्स भी निर्णायक भूमिका में रहते हैं. ऐसा माना जाता है कि  यादव वोटर्स समाजावदी पार्टी के साथ जाते हैं. इसके बाद भी 2019 के लोकसभा चुनाव हार के बाद भी लोकल स्तर पर निरहुआ जनता के बीच रहकर काम कर रहे थे. इसका फायदा उन्हें मिला और सपा के कोर वोटर्स भी भारतीय जनता पार्टी में शिफ्ट हो गए. वहीं, बसपा ने मुस्लिम वोटो में जबरदस्त सेंधमारी की बसपा का मुस्लिम प्रत्याशी मुस्लिम मतदाताओं में भ्रम की स्थिति उत्पन्न कर दी जिससे वो बंट गए जिसका सीधा लाभ भाजपा को मिला. यहां पर भाजपा को 
दलित वोट भी अच्छा मिला, राशन व कानून व्यवस्था भी दलित लोगों के लिए भाजपा को वोट देने को प्रेरित किया.

आजमगढ़ में भी दिखा सीएम योगी का क्रेज 
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बुलडोजर रूप प्रदेश समेत देश में चर्चा में है. इसके अलावा सीएम योगी अपने जनसभाओं में भी लगातार इस बात की जिक्र करते रहे कि कोरोना संकट के समय अखिलेश यादव ने आजमगढ़ को लावारिस छोड़ दिया था. इसका प्रभाव भी उपचुनाव में देखने को मिला.आजमगढ़ के कई अपराधियों पर यूपी पुलिस ने शिकंजा कसा. इसका सकारात्मक संदेश वोटर्स के बीच गया. इसके अलावा प्रदेश और केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही योजना मुफ्त राशन, पीएम आवास, जलनल योजना योजना और कानून व्यवस्था भी दलित वोटरों को भाजपा को वोट देने को प्रेरित किया.

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