नई दिल्ली: जिन्हें देश का सिपाही बनना है, वो देश की ट्रेनों को जला रहे हैं. जिन्हें सेना की वर्दी पहननी है, वो खाकी पर पत्थर फेंक रहे हैं. जिनका सपना फौजी बनना है, वो प्रदर्शन के 'पुश-अप्स' लगा रहे हैं. आखिर क्यों? प्रदर्शनकारियों के पास इसका सीधा जवाब है- अग्निपथ...
अग्निपथ को लेकर हिंसक प्रदर्शन?
हैरान करने वाली बात यह है कि इनमें से ज्यादातर ऐसे नौजवान हैं, जिनकी दौड़ सुबह 4 बजे शुरू हो जाती है. जिन्होंने अपने कई साल सैनिक बनने की कोशिश में ही खपा दिए, लेकिन इन्हें लगता है कि सेना भर्ती के लिए लाई गई सरकार की नई योजना अग्निपथ का मकसद उनके अरमानों पर पानी फेरना है. इसीलिए गुरुवार को जब देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जम्मू-कश्मीर के बारामूला में सेना के लिए नई पीढ़ी के हथियारों और साजों-सामानों का जायजा ले रहे थे, तब बिहार से हरियाणा तक सेना भर्ती की नई योजना अग्निपथ का हिंसक विरोध हो रहा था.
सरकार की अग्निपथ योजना के खिलाफ बिहार और हरियाणा समेत 7 राज्यों में प्रदर्शन हुए. हरियाणा के पलवल में तो प्रदर्शनकारियों से निपटने के लिए पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी. अग्निपथ योजना के खिलाफ प्रदर्शन का असर रेलवे पर सबसे ज्यादा पड़ा. कई ट्रेनें जला दी गईं, तो करीब 34 ट्रेनों को हिंसक प्रदर्शन के बाद रद्द करना पड़ा.
अग्निपथ को लेकर युवाओं में कंफ्यूजन?
अब सवाल ये है कि ये आक्रोश के अंगारे किसके लिए हैं? क्या सच में ये योजना 4 साल की देशभक्ति और उसके बाद खुद देखो अपनी गृहस्थी जैसी है? क्या विपक्ष युवाओं को मोदी सरकार की इस स्कीम के खिलाफ गुमराह कर रहा है? या फिर बरसों बरस से सोल्जर बनने का सपना देखने वाले युवा इस योजना से खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं? अब आपको कन्फ्यून की गलियों में घूम रहे क्रांति कुमारों को जरा सच और झूठ के बारीक पर्दे के बारे में भी बता दें. भ्रम ये है कि लोगों को लग रहा है कि अग्निवीरों का भविष्य असुरक्षित है. यानी लोग अग्निपथ योजना के तहत सेना में शामिल होंगे और 4 साल की नौकरी के बाद रिटायर हो जाएंगे, उसके बाद उनका क्या होगा?
अग्निपथ को लेकर भ्रम..!
अग्निपथ को लेकर पहला भ्रम कि जवानों का कार्यकाल खत्म होने के बाद उन्हें अवसर नहीं मिलेंगे? जबकि सरकार कह रही है कि ऐसे जवानों को उनके कार्यकाल ख़त्म होने के बाद भी मौक़े मिलेंगे. जो कारोबारी बनना चाहते हैं, उन्हें वित्तीय मदद मिलेगी. आगे पढ़ाई के अवसर उपलब्ध कराए जाएंगे. अर्ध सैनिक बलों और राज्य पुलिस में प्राथमिकता के आधार पर उनकी भर्ती होगी.
दूसरा भ्रम ये है कि अग्निपथ से युवाओं के अवसर कम होंगे. इसके पीछे तथ्य ये है कि सेना में भर्ती के मौके बढ़ेंगे. सशस्त्र बलों में पहले से तिगुनी भर्तियां होंगी. तीसरा भ्रम है कि रेजिमेंटल बॉन्डिंग प्रभावित होगी. यानी रेजिमेंट सिस्टम खत्म हो जाएगा. सरकार का दावा है कि रेजिमेंटल सिस्टम में कोई बदलाव नहीं होगा. सर्वश्रेष्ठ अग्निवीरों का ही चयन किया जाएगा.
कई देशों में हैं शॉर्ट सर्विस भर्ती सिस्टम!
एक भ्रम यह फैलाया जा रहा है कि इससे सेना की कार्य क्षमता पर असर पड़ेगा. इसे लेकर सरकार की दलील है कि कई देशों में शॉर्ट सर्विस भर्ती सिस्टम है. 4 साल बाद अग्निवीरों के प्रदर्शन का परीक्षण होगा और बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले अग्निवीर ही स्थाई होंगे.
प्रवेश आयु को लेकर भी उठे सवाल
भ्रम ये भी फैलाया जा रहा है कि 21 साल का सैनिक अपरिपक्व और गैरज़िम्मेदार होता है. सरकार का मानना है कि दुनिया भर में सेनाएं युवाओं पर निर्भर हैं. अनुभव और युवा जोश का बराबर संतुलन जरूरी है. इसी के साथ सरकार ने प्रवेश आयु को 21 से 23 साल कर दिया है.
लोगों को भ्रमित किया जा रहा है कि अग्निवीरों से समाज को और आंतरिक सुरक्षा को ख़तरा है, जबकि ऐसा कुछ नहीं है. वर्दी पहनने वाला जवान, ताउम्र देश के लिए समर्पित होता है और ये विचार सेना के नैतिक मूल्यों का अपमान है.
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