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Al Jauhar Trust: अल जौहर ट्रस्ट से क्या है आजम खान का कनेक्शन, कैसे 100 रुपये में मिली अरबों की जमीन

Azam Khan Al Jauhar Trust : उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में सपा नेता आजम खान से जुड़े अल जौहर ट्रस्ट के ठिकाने और उनसे जुड़े सदस्यों के घर आयकर विभाग की छापेमारी चल रही है.     

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Azam Khan Ali Jauhar University
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Amrish Kumar Trivedi|Updated: Sep 13, 2023, 01:45 PM IST

IT Raid on Al Jauhar Trust: यूपी के पूर्व मंत्री और सपा के कद्दावर नेता आजम खान, उनके परिजनों और करीबियों के घर बुधवार को आयकर विभाग की ताबड़तोड़ छापेमारी की गई. इस रेड के केंद्र में था अलजौहर ट्रस्ट- इसके सभी 13 ट्रस्टियों के घरों-कार्यालयों पर भी आईटी टीमें पहुंचीं. आजम खान इस अल जौहर ट्रस्ट के मुखिया हैं.

अल जौहर ट्रस्ट क्या है
अल जौहर ट्रस्ट 2004 में बना और उसी के तहत रामपुर में 2006 में मुहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय स्थापित किया गया. सपा शासन के दौरान ये एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी के तौर पर बनी, जो आजम खान का एक सपना थी. खुद मुलायम सिंह यादव ने इस विश्वविद्यालय की नींव रखी थी.शुरुआत में इसे सरकारी मान्यता प्राप्त उर्दू यूनिवर्सिटी का सपना था, लेकिन बसपा की मायावती सरकार आने के बाद मुश्किलें खड़ी हुईं तो इसे पूरी तरह प्राइवेट यूनिवर्सिटी बनाने का रुख किया गया.

सपा सरकार में पलटी किस्मत
शुरुआती तौर पर जौहर कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के तौर पर यूनिवर्सिटी कैंपस से इसे चलाया गया, जो महामाया टेक्निकल यूनिवर्सिटी से संबद्ध थी. लेकिन 2012 में जब दोबारा सपा सरकार सत्ता में आई तो अखिलेश यादव ने इसे प्राइवेट यूनिवर्सिटी के तौर पर दर्जा देते हुए एडमिशन स्टार्ट हुए. 9 साल लंबी लड़ाई के बाद मुलायम सिंह यादव के हाथों ही इस यूनिवर्सिटी का शानदार उद्घाटन भी हुआ. समाजवादी पार्टी का पूरा कुनबा वहां मौजूद था.  लाखों की भीड़ के बीच तब अखिलेश यादव ने कहा था- मौलाना मोहम्मद अली जौहर और उनके भाई शौकत अली का देश के स्वतंत्रता संग्राम में बड़ा योगदान था और ये विश्वविद्यालय उनके सपनों को पूरा करेगी.

भाई भतीजावाद का आरोप
इस यूनिवर्सिटी में आजम खान के परिवार, रिश्तेदारों को ही ज्यादातर पद दे दिए गए. आरोप है कि 2012-2017 के अखिलेश सरकार में यूनिवर्सिटी को अनुचित लाभ दिए गए. रिसर्च सेंटर के लिए साढ़े तीन एकड़ जमीन 100 रुपये हर साल के लिए लीज पर दे द गई. शोध संस्थान में उर्दू, अरबी, फारसी विषयों पर कोई शोध नहीं हुआ. हालांकि सपा सरकार के बाद में ये लीज कैंसल कर दी गई. 

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