Home >>Religion UP

Kanwar yatra 2024: सावन में सबसे कठिन और सबसे आसान कांवड़ यात्रा कौन सी, किन बातों का रखें ध्यान

Kanwar yatra : सावन का महीना शुरू होने में बस कुछ दिन ही बाकी रह गए है. जिसके लिए राज्य सरकारे अपने  अपने राज्यों में कांवड यात्रा को लेकर तैयारियां कर रही है. सावन के महीने में लाखों भक्त भगवान शिव को खुश करने के लिए दूर-दूर से कंधों पर कांवड रखकर लेकर आते है. दरअसल, कंधे पर गंगाजल लेकर आना और शिवनलिंग पर जलाभिषेक करने को कांवड यात्रा कहते है.  
 

Advertisement
Kanwar Yatra 2024
Stop
Rahul Mishra|Updated: Jul 07, 2024, 05:46 PM IST

Kanwar yatra 2024: सावन में भोले बाबा को खुश करने के लिए भक्तजन कावंड लेकर आते है और भगवान शिव को गंगा जल चढ़ाते है. सावन में हर शिव मंदिर में भक्तजन अपने कंधे पर कावंड रखकर लेकर आते है. कुछ भक्त गाड़ी में संगीत बजाते हुए कांवड यात्रा करते है तो कुछ कांवड को बिना जमीन पर रखकर लाते है. 
जाने कितनी प्रकार की होती है कांवड़. 

सामान्य कांवड़
कांवड़ यात्रा के दौरान सामान्य कांवड़िए जहां चाहे वहां रुककर आराम कर सकते हैं. उनके आराम करने के लिए रास्ते में कई जगह पंडाल भी लगे होते हैं, जहां रुककर विश्राम करके वो फिर से अपनी यात्रा को शुरू करते हैं.

डाक कांवड़
इस कांवड़ यात्रा में भक्त समूह में कांवड़ यात्रा करते हैं और उनका चलना लगातार जारी रहता है. शंकर भगवन को जल चढ़ाकर ही वह विश्राम करते हैं. सरकार और प्रशासन डाक कांवड़ियों के लिए रास्ता खुला रखते हैं ताकि उनकी यात्रा में कोई अवरोश उत्पन्न न हो. 
 
खड़ी कांवड
खड़ी कांवड़ यात्रा में दो या दो अधिक शिव भक्त मिलकर यात्रा करते हैं. इस तरह की यात्रा में कांवड़ को काँधे से नीचे नहीं रखा जा सकता केवल कांधा बदला जाता है. जब एक यात्री विश्राम करता है तो दूसरा व्यक्ति कांवड़ को कंधे पर रखकर पैर चलाते रहता है. 

दांडी या दंडवत कांवड़ यात्रा  
यह कांवड़ यात्रा सबसे कठिन होती है. इसमें भक्त लेटकर दंडवत प्रणाम करते हुए यात्रा करते हैं. कई बार इसमें एक महीने से अधिक का समय लग जाता है. इस तरह की कांवड़ यात्रा में यात्री के शरीर पर कई जख्म भी हो जाते हैं. लेकिन आस्था और विश्वाश की प्रतीक इस यात्रा में भक्त पूरे मन से इसे पूरा करते हैं. और भोले बाबा के जयकारे लगातार जारी रहते हैं. 

कैसै शुरू हुई कांवड़ यात्रा
भगवान परशुराम भगवान शिव के परम भक्त थे. माना जाता है कि सबसे पहले वे कांवड़ यात्रा लाये थे.  उस समय सावन का पवित्र महीना चल रहा था. परशुराम कांवड़ लेकर बागपत जिले के पास पुरा महादेव गए थे. उन्होंने गढ़मुक्तेश्वर से गंगा का जल लेकर शिव शंकर का अभिषेक किया था. उसी समय से इस परंपरा को निभाते हुए भोलेनाथ के भक्त श्रावण मास में कांवड़ यात्रा जाते हैं.

कौन-कौन से होता है नियम
यात्रा के दौरान किसी भी प्रकार का नशा, मदिरा, मांस और तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए. कांवड़ को कभी भी बिना स्नान किए हाथ नहीं लगाना चाहिए. इसके अलावा चमड़ा का स्पर्श ना करे, वाहन का प्रयोग ना करे, चारपाई का उपयोग ना करे. वृक्ष के नीचे भी कांवड़ नहीं रखना, कांवड़ को अपने सिर के ऊपर से लेकर कभी भी नहीं जाना चाहिए. कांवड़ लाते समय इन कुछ अहम बातों का ध्यान रखना होता है. 

{}{}