Nirjala Ekadashi Tithi 2024 : वैसे तो महीने में पड़ने वाली हर एक एकादशी को महत्व दिया गया है लेकिन निर्जला एकादशी का हिंदू धर्म में एक अलग ही स्थान है. इस व्रत को ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर मनाने का विधान है. निर्जला एकादशी 18 जून को इस साल मनाया जाएगा. भगवान विष्णु के भक्त और साधक इस दिन उनकी पूजा करेंगे और उन्हें समर्पित व्रत का संकल्प भी करेंगे.
एकादशी माता कौन थी?
निर्जला एकादशी व्रत अगर आप भी रखने जा रहे हैं तो आपको यह जान लेना चाहिए कि एकादशी माता कौन थी और क्यों एकादशी तिथि पर चावल खाना निषेध माना गया है. इसके बारे में जानने के लिए एक पूरी कथा को झानना होगा. एकादशी माता कौन थी, आइए पहले ये जान लें. एकादशी माता का जन्म उत्पन्ना एकादशी के शुभ अवसर पर हुआ. माता एकादशी का जन्म भगवान विष्णु से ही हुआ ऐसा माना जाता है.
एकादशी कन्या रूप में थीं
कहते हैं कि जब एकादशी कन्या रूप में थीं और उनका नाम एकादशी नहीं हुआ करता था तब उसी दौरान उन्होंने असुरों का अंत करने में भगवान विष्णु की सहायता की. ऐसे में कन्या से भगवान विष्णु अति प्रसन्न हुए और इच्छा अनुसार वरदान मांगने के लिए कहा. कन्या ने वर मांगा कि अगर कोई भी मनुष्य मेरे उपवास का संकल्प करेगा तो उसके सभी पापों का नाश हो जाएं. उसे विष्णु लोक यानी वैकुंठ में स्थान मिले. वहीं, भगवान ने इसी समय पहले तो उस कन्या को एकादशी नाम दिया और फिर वरदान भी दिया कि एकादशी के व्रत के पालन से मनुष्य जाति के सभी पाप कट जाएंगे और विष्णु लोक में व्यक्ति को स्थान मिलेगा.
एकादशी माता ने चावल को श्राप दिया
अब आते हैं एकादशी पर चावल क्यों नहीं खाते हैं इस प्रश्न पर, तो अनिरूद्धाचार्य महाराज जी ने इस विषय पर एक कथा के दौरान जानकारी दी थी. आचार्य के अनुसार जब एकादशी से विष्णु जी ने सभी पापों को नष्ट करने को कहा तो एकादशी सभी पापों को नष्ट करने निकल पड़ी. वहीं कुछ पाप चावल में जाकर छिप गए. इससे एकादशी माता बहुत नाराज हो गई और चावल को श्राप दे दिया कि तुम चावलों ने पापाों को स्थान दिया है, ऐसे में तुम्हें एकादशी के दिन कोई नहीं खाएगा. इतना कहना था कि इस तिथि पर लोगों मे चावन खाना यह सोचकर छोड़ दिया कि सभी पाप चावल में होते हैं ऐसे में एकादशी पर चावल न खाया जाए.
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सुबह पारण में चावल
एकादशी के दिन तो पकाना और खाना दोनों मना होता है पर व्रत का पारण चावल खाकर करने के बारे में बताया गया है. तभी व्रत का संपूर्ण होना माना जाएगा. एकादशी व्रत के नियमों का पालन करना अति आवश्यक होता है जोकि दशमी तिथि की शाम से ही किया जाना चाहिए. एकादशी पर व्रत रखकर द्वादशी को सुबह के समय पारण करना चाहिए.