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Prayagraj News: 'दहेज का ताना मारना गुनाह नहीं', इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्यों की ये अहम टिप्पणी

Dowry Cases: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में स्थित हाई कोर्ट ने एक दहेज उत्पीड़न के मामले में सुनवाई करते हुए एक ऐतिहासिक फैसला दिया है. न्यायालय के इस निर्णय से अब बहुत से ऐसे कोसों का निपटारण बहुत जल्दी हो सकता है. पढ़िए पूरी खबर...

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Prayagraj News
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Rahul Mishra|Updated: May 22, 2024, 03:15 PM IST

Prayagraj News/Mohammad Gufran: उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि किसी महिला को कम दहेज लाने के लिए ताना मारना कानून के तहत दंडनीय अपराध नहीं है. कोर्ट ने कहा कि अस्पष्ट आरोप से आईपीसी की धारा 498 ए के तहत क्रूरता का अपराध नहीं बनता है. जब तक की किसी के विरुद्ध विशिष्ट आरोप न लगाए गए हों. कोर्ट ने कहा कि मात्र सामान्य प्रकृति के आरोप आपराधिक कार्यवाही चलने का पर्याप्त आधार नहीं हो सकते हैं.

सिंगल बेंच ने कि सुनवाई
कोर्ट ने कहा कि हर आरोपी द्वारा किए गए अपराध और उसमें उसकी भूमिका के बारे में विशिष्ट विवरण देना अनिवार्य है. बता दें कि बदायूं के शब्बन खान और उनके तीन रिश्तेदारों की तरफ से इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी. जिस पर जस्टिस विक्रम डी चौहान की सिंगल बेंच ने सुनवाई करते हुए शब्बन खान और उसके रिश्तेदार दो बहन और जीजा के खिलाफ चल रही दहेज उत्पीड़न की कार्रवाई को 9 मई 2024 को रद्द कर दिया है.

दहेज उत्पीड़न को लगाया था आरोप
गौरतलब है कि याचीगण के खिलाफ बदायूं के बिल्सी थाने में आईपीसी की धारा 498 ए ,323, 506 और 3/4 दहेज उत्पीड़न अधिनियम के तहत साल 2018 में मुकदमा दर्ज हुआ था. जिसमें शब्बन खान की पत्नी ने आरोप लगाया था कि शादी के बाद उसके पति और उनके रिश्तेदार कम दहेज लाने पर उसका उत्पीड़न कर रहे हैं. उसके साथ मारपीट की गई और धमकी दी गई तथा दहेज की मांग पूरी न होने पर घर से निकलने के लिए धमकाया गया. मामले मे पुलिस ने जांच के बाद सभी के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट भी दाखिल की थी. जिसके खिलाफ याचियों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी.

ताना मारना क्रूरता की श्रेणी में नहीं आता
मामलो पर सुनवाई करते हाईकोर्ट ने सवाल उठाया कि क्या तीनों रिश्तेदारों पर लगाए गए आरोप इतने विशिष्ट हैं कि दहेज उत्पीड़न का केस चलाया जा सके. क्या कम दहेज का ताना देना आईपीसी की धारा 498 ए में दहेज उत्पीड़न के तहत क्रूरता की श्रेणी में आता है. हाईकोर्ट ने कहा कि यह सब अस्पष्ट प्रकृति के आरोप, आरोपी के निष्पक्ष ट्रायल के अधिकार को प्रभावित कर सकते हैं. 

मुकदमा हुआ रद्द
कोर्ट ने कहा कि सिर्फ कानून की धारा में दी गई भाषा को वर्णित करने मात्र से आरोपी व्यक्ति के विरुद्ध आपराधिक कार्रवाई चलाने का पर्याप्त आधार नहीं होता है. हाईकोर्ट ने कहा हर आरोपी द्वारा किए गए अपराध और उसकी भूमिका के बारे में विशेष विवरण देना अनिवार्य है. कोर्ट ने कहा कि कानून दहेज की मांग को अपराध मानता है. लेकिन कम दहेज के लिए ताना मारना, दंडात्मक अपराध की श्रेणी में नहीं आता है. याचियों के विरुद्ध सामान्य और अस्पष्ट आरोप विवाह के बाद लगाए गए हैं. कोर्ट ने पति के अलावा अन्य तीनों आरोपियों के खिलाफ़ चल रही मुकदमें की कार्यवाही को रद्द करते हुई बड़ी राहत दी है.

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