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एसिड अटैक में सब कुछ गंवाने वाली देवांशी बनीं अनाथ बच्चों का सहारा, शहीद की बेटी बनी प्रदेश की शान

Bareily Acid Attack Survivor Devanshi Yadav :  अगर आपके इरादे अटल हों और आपमें कुछ कर गुजरने का मादा हो तो हालात भी आपके जुनून के सामने हार मान लेता है. ऐसा ही एक वाक्या बरेली में सामने आया है. यहां एसिड अटैक का दंश झेल रही एक युवती ने ना सिर्फ अपने आपको संभाला बल्कि दूसरों का सहारा भी बन गईं. 

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Bareily Acid attack survivor Devanshi Yadav
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Amitesh Pandey |Updated: Sep 14, 2023, 04:50 PM IST

अजय कश्‍यप/बरेली : कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालों यारों...दुष्यंत कुमार की इन लाइनों में जीवन का पूरा सार छिपा हुआ है. अगर आपके इरादे अटल हों और आपमें कुछ कर गुजरने का मादा हो तो हालात भी आपके जुनून के सामने हार मान लेता है. ऐसा ही एक वाक्या बरेली में सामने आया है. यहां एसिड अटैक का दंश झेल रही एक युवती ने ना सिर्फ अपने आपको संभाला बल्कि दूसरों का सहारा भी बन गईं. 

कोचिंग आते-जाते शाहदे करते थे पीछा 
देवांशी, ये नाम है उस शक्ति का जिसने अपने नसीब का लिखा मिटाकर अपनी सफलता की एक नई इबारत लिख रही है. देवांशी की 10वीं तक की पढ़ाई बरेली के सेंट मारिया स्कूल में हुई. इस बीच एक ऐसा हादसा हुआ जिसकी यादें उन्‍हें आज भी झकझोर देती हैं. देवांशी साल 2008 में दसवीं की छात्रा थीं. कोचिंग जाते समय एक लड़का देवांशी का पीछा करता था. 

शोहदों ने फेंक दिया था एसिड 
एक दिन लड़के ने देवांशी का रास्‍ता रोककर बात करने की कोशिश की. देवांशी ने इनकार कर दिया तो लड़के ने अपने दोस्‍तों के साथ उसपर एसिड फेंक चेहरा झुलसा दिया. इस हादसे में देवांशी का चेहरा पूरी तरह झुलस गया, बस आंखें बच गईं. आसपास का हिस्सा भी झुलस गया. कई साल इलाज कराना पड़ा. 

रूढ़ीवादी सोचकर पीछे छोड़ 3 बच्चियों को लिया गोद 
देवांशी भले ही अभी अविवाहित हैं, लेकिन उनके अंदर भी एक मां छिपी हुई है. इसके बाद देवांशी ने रूढ़ीवादी सोच को पीछे छोड़कर 3 अनाथ बच्चियों की जिंदगी में खुशियों के रंग भरने का फैसला किया. आज भी देवांशी अपने फैसले पर अडिग हैं. देवांशी की ममता का आंचल युगांडा तक फैला हुआ है जिसकी छांव में दो बच्चियां अपनी जिंदगी में धीरे-धीरे आगे कदम बढ़ा रही हैं. साढ़े तीन साल की वानमयी बरेली में उनके साथ रहती हैं. देवांशी को वानमयी के मुंह से मां सुनना अच्‍छा लगता है. 

9 माह की उम्र में उठ गया पिता का साया
देवांशी ने बताया कि जब वह महज 9 माह की थीं तब उनके पिता शहीद हो गए. देवांशी की मां संजू यादव एडीजी ऑफिस में बतौर ओएसडी तैनात हैं. पिता रामाश्रय यादव सीओ थे जो 1992 में बाजपुर में आतंकियों से मोर्चा लेते हुए शहीद हो गए थे. मृतक आश्रित कोटे में नौकरी मिलने के बाद संजू यादव ने देवांशी को हर खुशी ही नहीं दी, संस्कार भी कूट-कूट कर भरे. पढ़ाई पूरी करने के बाद देवांशी बरेली आकर मां और नानी के साथ रहने लगीं. 

देवंशी की मां ने पहचाना मातृत्व
सबसे पहले देवांशी ने अपनी मां को बताया कि वह किसी अनाथ बच्ची को गोद लेना चाहती है. यह सुनकर संजू यादव अवाक रह गईं. जमाना क्या कहेगा, कुंवारी लड़की मां बन रही है, कौन तुमसे शादी करेगा, जैसे तमाम सवालों की बूढ़ी नानी ने बौछार लगा दी, लेकिन आखिरकार देवांशी के तर्कों के आगे उसकी मां मान गईं. इसके बाद देवांशी ने बच्ची को गोद देने वाली संस्था कारा में रजिस्ट्रेशन कराया. मई 2019 में उन्होंने छह माह की अनाथ बच्ची को गोद लिया और उसका नाम रखा वानमयी. वानमयी अब पूरे घर की जान है. 

शहीद पिता के नाम पर समाजसेवा
देवांशी अपने शहीद पिता के नाम पर रामाश्रय वेलफेयर सोसइटी के नाम से एनजीओ भी चलाती हैं. गरीब बच्चों को पढ़ाती भी हैं. एनजीओ से करीब 600 बच्चे जुड़े हैं. इसके अलावा स्टेशन पर जाकर भी वह गरीब बच्चों को पढ़ाती हैं. उन्हें कॉपी किताब, राशन, दवाई और इलाज भी उपलब्ध कराती हैं. 2018 में उन्होंने यह एनजीओ शुरू किया. अब वह घर पर काम करने आने वाली महिलाओं को भी पढ़ाती हैं. 

अपनी बेटियों को समझें
देवंशी का कहना है कि समाज आज बेटों को ज्यादा तबज्जो देता है, लेकिन उसके मुताबिक बेटियां भी कम नही हैं. देवांशी का कहना है कि अगर आपकी बेटी के साथ कोई हादसा हो जाता है तो उसका परिवार उसके साथ खड़ा रहना चाहिए. अगर ऐसा होता है तो कोई भी हो वह आधी जंग जीत लेता है. 

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