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भारत की प्रतिष्ठा में अदालतों ने कैसे लगाए चार चांद, सुप्रीम कोर्ट जज ने समझाई क्रोनोलॉजी

Justice Kohli: जस्टिस कोहली ने कहा कई हाल के वर्षों में भारत ने मध्यस्थता और मध्यस्थता सेवाओं में खुद को एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है. वे एक संगोष्ठी को संबोधित कर रही थीं.

भारत की प्रतिष्ठा में अदालतों ने कैसे लगाए चार चांद, सुप्रीम कोर्ट जज ने समझाई क्रोनोलॉजी
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Gaurav Pandey|Updated: Aug 03, 2024, 03:57 PM IST

Supreme Court Judge: देश के लोग हमेशा से ही संविधान और न्याय पर पूरा यकीन करते आए हैं. इसी कड़ी में सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश जस्टिस हिमा कोहली ने कहा है कि देश की अदालतों ने मध्यस्थता फैसलों की शुचिता को अक्षुण्ण रखते हुए मध्यस्थता के लिए एक अनुकूल गंतव्य के रूप में भारत की प्रतिष्ठा को मजबूत किया है. 

असल में वे शुक्रवार को कानूनी कंपनियों ‘गिब्सन डन सेक्रेटेरियट और यूएनयूएम लॉ’ , यूएनयूएम लॉ , अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता एवं मध्यस्थता केंद्र (आईएएमसी) और ‘ जनरल काउंसल एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ द्वारा आयोजित 'व्यापार संवर्धन में मध्यस्थता में हालिया विकास' विषयक एक संगोष्ठी को संबोधित कर रही थीं.

महत्वपूर्ण प्रगति 

जस्टिस कोहली ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार के विकास ने विवाद समाधान को और अधिक जटिल बना दिया है तथा इन चुनौतियों से निपटने के लिए वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर), विशेष रूप से मध्यस्थता, व्यवसायों के लिए एक शक्तिशाली औजार के रूप में उभरा है. जस्टिस कोहली ने कहा, "हाल के वर्षों में भारत ने मध्यस्थता और मध्यस्थता सेवाओं में खुद को एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है. 

मध्यस्थता निर्णयों की शुचिता

मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के तहत मामलों के तेजी से निपटान और व्यापक रूप से प्रवर्तन-समर्थक व्यवस्था के संवर्धन के प्रति न्यायपालिका की प्रतिबद्धता से भारत एक वाणिज्यिक मध्यस्थता केंद्र के रूप में तब्दील हुआ है." उन्होंने कहा कि विभिन्न ऐतिहासिक फैसले दर्शाते हैं कि भारत मध्यस्थता निर्णयों की शुचिता को बनाये रखने के प्रति कटिबद्ध है. 

भारत की प्रतिष्ठा को मजबूत किया

जस्टिस कोहली ने कहा, "न्यायिक हस्तक्षेप को कम करते हुए और मध्यस्थता पुरस्कारों का सम्मान करते हुए भारतीय न्यायालयों द्वारा किये गये प्रयासों ने (वैकल्पिक) विवाद समाधान के लिए एक अनुकूल गंतव्य के रूप में भारत की प्रतिष्ठा को मजबूत किया है. यह न्यायिक दर्शन विधायी सुधारों का पूरक है और मध्यस्थता के लिए एक वैश्विक केंद्र बनने की भारत की महत्वाकांक्षा को दर्शाता है.

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