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Supreme Court : राजनीति में पैसे का दबदबा, चंदे से प्रभावित हो सकते हैं सरकार के फैसले-SC

Supreme Court :  सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक करार देने के फैसले में जिस पहलू पर सबसे ज्यादा जोर दिया है, वो है- राजनीति में पैसे का दबदबा. 

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Arvind Singh|Updated: Feb 16, 2024, 01:33 PM IST

Supreme Court :  सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक करार देने के फैसले में जिस पहलू पर सबसे ज्यादा जोर दिया है, वो है- राजनीति में पैसे का दबदबा. कोर्ट ने कहा कि पैसे का देश की चुनावी राजनीति पर  गहरा असर है. चुनाव में एट्री से लेकर, चुनाव जीतने तक, सत्ता में बने रहने के लिए पैसा जरूरी है. चुनावी लोकतंत्र में पैसे के असर को देखे बगैर हम इस इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को लेकर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकते.

 

'चंदा न बदल दे सरकार की नीतियां'

 

कोर्ट ने कहा कि पैसा न केवल चुनाव परिणामों को प्रभावित करता है. बल्कि ये किसी सरकार की नीति, उसके फैसलों को भी प्रभावित कर सकता है. राजनैतिक दलों को चंदा सिर्फ चुनाव प्रचार के मकसद से उस दरमियान ही नहीं मिलता, बल्कि पार्टी  सरकार बनाने के बाद भी चंदा हासिल कर सकती है. हमारे यहां पैसा और राजनीति का जो गठजोड़ है, उसमे इस बात की पूरी संभावना है कि चंदा सत्तारूढ़ दल के लिए घूस का जरिया बन जाए और इसके एवज में सरकार ऐसी नीतियां बनाये जिससे चंदा देने वाले कॉरपोरेट को फायदा हो. ऐसे में अगर आम वोटर को इस बात की जानकारी रहेगी कि किस पार्टी को किस कॉरपोरेट से कितना पैसा मिला है,  तो वो ये तय कर सकता है कि सरकार की किसी नीति के पीछे वजह उसे मिलना चंदा तो नहीं है.

 

इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम ​वोटर के अधिकार का हनन

 

कोर्ट ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम में दानकर्ता की गोपनीयता होने की वजह से ये संभावना है कि पार्टियों और दानकर्ता के बीच का ये लेन-देन लोगों की नजरों में नहीं आ पाए. लोग अपने मतदान के अधिकार का विवेकपूर्ण ढंग से इस्तेमाल कर सके, इसके लिए ज़रूरी है कि उन्हें पॉलिटिकल फंडिंग की जानकारी हो.

 

कॉरपोरेट के चंदे की सीमा हटाने पर आपत्ति

 

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कॉरपोरेट कंपनी पर इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा देने की निर्धारित सीमा को हटाने पर भी सवाल उठाया. दरअसल पहली व्यवस्था के मुताबिक कोई भी कंपनी पिछले 3 सालों के अपने शुद्ध मुनाफे के वार्षिक औसत का 7.5% से ज्यादा चंदा राजनीतिक दलों को नहीं दे सकती थी, लेकिन  इलेक्टोरल बॉन्ड  के लिए इस बाध्यता को खत्म कर दिया गया था.

 

क्या हम लोकतंत्र को बचा पाएंगे!

चीफ जस्टिस ने कहा कि ये बदलाव चुनावी प्रकिया में  एक आम वोटर के बजाए बड़ी कॉरपोरेट कंपनियों के गैरवाजिब दखल को बढ़ावा देता है. ये 'एक शख्श एक वोट' के राजनैतिक समानता के बुनियादी सिद्धान्त और स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव प्रकिया में बाधा डालने वाला है. हमारे यहां हर किसी के वोट की बराबर अहमियत है.

 

कोर्ट ने कहा कि अगर कॉरपोरेट कंपनियों  को बेहिसाब चंदा देने की छूट दी जाती है, तो क्या में सरकार की जवाबदेही आम वोटर के लिए रहेगी और अगर सरकार जरूरतमंदों के बजाए सिर्फ  कॉरपोरेट  घरानो को फायदा पहुंचाने के लिए काम करने लगें तो क्या हम लोकतंत्र को बचा पाएंगे!

 

अब आगे क्या होगा

 

सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से कहा है कि वो तत्काल प्रभाव से इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने पर रोक लगाए. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (अप्रैल 12,  2019) से लेकर अब तक केइलेक्टोरल बॉन्ड की पूरी जानकारी चुनाव आयोग को सौंपे. SBI इलेक्टोरल बॉन्ड की कीमत, खरीदने की तारीख, और उसे खरीदने वाले शख्श की जानकारी आयोग को 6 मार्च तक देगा. इसके एक हफ्ते में इलेक्शन कमीशन अपनी वेबसाइट पर इस जानकारी को डालकर सार्वजनिक करेगा. जिन बॉन्ड को अभी तक भुनाया नहीं गया है उन्हें पार्टियों को बैक को वापस करना होगा. इसके बाद बैक बॉन्ड को खरीदने वाले को पैसा वापस करेंगे.

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