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Takht-E-Taus: ताजमहल से ज्यादा कीमती थी शाहजहां की नाचते मोर वाली कुर्सी, आज खरबों में है वैल्यू!

Mughal Badshah Ka Mayur Singhasan: तख्त-ए-ताऊस के ऊपरी हिस्से पर नाचते हुए मोर थे जिनके पंखों पर बेशकीमती पत्थर जड़े हुए थे और इसी वजह इसे मयूर सिंहासन (Peacock Throne) भी कहा जाता था.

Mayur singhasan peacock throne Takht-E-Taus
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Zee News Desk|Updated: Apr 15, 2023, 07:27 PM IST

Peacock throne of Shah jahan: मुगल बादशाहों की शानो-शौकत देखकर आज भी लोग की आंखें चौंधिया जाती हैं. इस शानो-शौकत को दिखाने में शाहजहां सबसे आगे था. आपको जानकर हैरानी होगी कि जितनी कीमत उस समय ताजमहल (Tajmahal) की नहीं थी, उससे कहीं ज्यादा आलीशान कुर्सी पर शाहजहां अपना दरबार लगाता था. शाहजहां का बेशकीमती तख्त-ए-ताऊस (Takht-E-Taus) जिसका इतिहास में जिक्र मिलता है, उसे बनाने के लिए दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से कीमती हीरे-जवाहरात लाए गए थे. तख्त-ए-ताऊस के ऊपरी हिस्से पर नाचते हुए मोर थे जिनके पंखों पर बेशकीमती पत्थर जड़े हुए थे और इसी वजह इसे मयूर सिंहासन (Peacock Throne) भी कहा जाता था.

फ्रैंच यात्री ट्रेवर्नियरनेम ने किया वर्णन

फ्रेंच यात्री ट्रेवर्नियरनेम (French Traveller Tavernier ) ने मयूर सिंहासन का विस्तार से वर्णन किया है. साल 1665 में दिल्ली दरबार में ट्रेवर्नियरनेम ने जब करीब से इसे देखा तो उसने सिर्फ एक नहीं, बल्कि उसमें कई बेशकीमती सिंहासन देखें. एक पन्नों से जड़ा हुआ, दूसरा हीरो से जड़ा हुआ, क्रमश: पन्ने, माणिक और मोतियों से ढका हुआ. ट्रेवर्नियरनेम तख्त-ए-ताऊस के लिए लिखता है कि यह किसी बिस्तर के तंबू के आकार का था जिसके पाए सोने (Gold) के बने थे. इसी तख्त-ए-ताऊस में दुनिया का सबसे बेशकीमती हीरा कोहिनूर (Kohinoor) भी था. ये सिंहासन 6 फीट लंबा और 4 फीट चौड़ा था और इसकी ऊंचाई 25 से 26 इंच थी. आधार पर 12 कॉलम से जुड़े हुए एक छतरी बादशाह के सिर पर मौजूद थी.

जानिए कितनी थी कीमत?

कहा जाता है कि तख्त-ए-ताऊस की कीमत उस समय 1 करोड़, 20 लाख, 37 हजार, 500 पाउंड थी इसका जिक्र खुद ट्रेवर्नियरनेम ने किया था. वहीं कई मीडिया रिपोर्ट में इस बात का अंदाजा लगाया गया है कि इसकी वर्तमान में कीमत 1 खरब, 35 अरब, 9 करोड़ ,43 लाख रुपये के आस-पास होगी. आपको बता दें कि अफगान लुटेरे नादिरशाह ने साल 1739 में तख्ते ताऊस में लगे हीरे-जवाहरात को लूट लिए थे. इस दौरान मुगल अपने सबसे कमजोर स्थिति में थे तब नादिरशाह ने दिल्ली में महा भयंकर कत्लेआम मचाया था.

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