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Rani Durgavati: हिंद की वो बेटी जिसने छुड़ा दिए मुगल बादशाह अकबर की फौज के छक्के

Daughter of Hind Rani Durgavati: 15वीं शताब्दी में जब अकबर (Akbar) के राज में कई हिंदू राजाओं ने मुगलों के आगे घुटने टेक दिए थे, तब भी कई राज्यों से मुगलों को कड़ी चुनौती मिली. ऐसा ही एक राज्य था गोंडवाना जिसे जीतना मुगलों के लिए आसान नहीं था. क्योंकि मुगल फौज के सामने थीं, हिंद की ये बहादुर बेटी.

Rani Durgavati: हिंद की वो बेटी जिसने छुड़ा दिए मुगल बादशाह अकबर की फौज के छक्के
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Shwetank Ratnamber|Updated: Mar 02, 2023, 07:23 AM IST

Historical facts about Rani Durgavati: मुगल बादशाहों को धूल चटाने में सिर्फ भारत के राजाओं का ही नहीं बल्कि हिंद की बेटियों का भी बड़ा योगदान रहा है. ऐसे कई हिंदू शाषक रहे जिन्होंने मुगलों की गुलामी स्वीकार करने से इनकार कर दिया था. ऐसा ही एक राज्य था मध्य भारत का गोंडवाना जिसे जीतना मुगलों के लिए आसान नहीं था. क्योंकि मुगलों की फौज के साने हथियार लेकर मां काली बनकर खड़ी थीं, रानी दुर्गावती. रानी पूरे स्वाभिमान के साथ अपने राज्य को बचाने के लिए अडिग थी.

रानी दुर्गावती के नाम से कांपती थी मुगल फौज

1524 में उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में राजा कीर्तिसिंह चंदेल के घर जन्मी दुर्गावती का जन्म नवरात्रि की दुर्गा अष्टमी को हुआ था. इसी वजह से उनका नाम दुर्गावती रखा गया था. रानी अपने पिता की इकलौती संतान थीं, जिन्हें बचपन से ही घुड़सवारी, तलवारबाजी, तीरंदाजी जैसी युद्ध कलाओं में महारथ हासिल थी. दुर्गावती उसी चंदेल वंश से थीं जिन्होंने भारत में महमूद गजनी के कदमों को रोका था. हालांकि 16वीं सदी के आते-आते चंदेल वंश कमजोर होने लगा था.

अकबर की आत्मकथा अकबरनामा में भी रानी दुर्गावती का जिक्र है. इतिहासकारों का कहना है कि रानी दुर्गावती का निशाना अचूक था. वो तीर और बंदूक दोनों चलाने में माहिर थीं. 18 साल की उम्र में उनका ब्याह गोंड राजवंश के राजा संग्राम शाह के बड़े बेटे दलपत शाह से हुआ था. उनकी वीरता के किस्से दूर-दूर तक फैले थे. 

मुश्किलें रोक नहीं पाईं

1545 में रानी दुर्गावती ने बेटे वीर नारायण को जन्म दिया और 1550 में उनके पति दलपत शाह का निधन हो गया. इसके बाद उन्होंने गोंडवाना की बागडोर अपने हाथ में ले ली. 1556 में मालवा के सुल्तान बाज बहादुर ने हमला बोला तो दुर्गावती ने उसे धूल चटा दी. 1562 में अकबर ने मालवा को मुगल साम्राज्य में मिला लिया. 1564 में असफ खान ने गोंडवाना पर हमला बोल दिया. छोटी सेना रहते हुए भी दुर्गावती ने मोर्चा संभाला. रणनीति के तहत दुश्मनों पर हमला किया और पीछे हटने पर मजबूर कर दिया.

अकबर की फौज को चटाई धूल

1562 में जब गोंड पर हमला हुआ तो रानी ने अपने बेटे के साथ 3 बार मुगल सेना का सामना किया. मुगलों की हजारों की फौज के सामने रानी के 500 सिपाही कम पड़ गए, लेकिन फिर भी रानी ने बड़ी चतुराई से मुगलों को धूल चटा दी. उस दौर में उनके सैनिक जबलपुर स्थित नराई नाला पहुंचे जो एक पहाड़ी क्षेत्र था और उसके एक तरफ गौर नदी थी और दूसरी तरफ नर्मदा. जैसे ही दुश्मन घाटी में आया तब रानी की छोटी सी सेना ने हमला बोल दिया और मुगलों को खदेड़ दिया. इस प्रथम युद्ध में रानी का सेनापति मारा गया और फिर रानी ने खुद को फौज का सेनापति घोषित कर दिया.

इसके बाद मुगलों की सेना हार का बदला लेने के लिए और बड़ी टुकड़ी और रसद लेकर पहुंची और तब रानी के पास महज 300 सैनिक थे. फिर भी बहादुर रानी ने मुगलों की फौज को बड़े पैमाने पर खत्म कर दिया. मुगलों की सेना भी आधी रह गई लेकिन रानी को तब भी हार दिख रही थी. तब रानी ने अपने दीवान आधार सिंह को अपनी जान लेने को कहा. हालांकि, वो  ऐसा ना कर पाए और रानी ने तब खुद ही अपनी जान ले ली. इस तरह 24 जून 1564 को उन्होंने अंतिम सांस ली. दूसरी ओर उनके बेटे ने युद्ध लड़ना जारी रखा और वे भी वीरगति को प्राप्त हो गए. उनके सम्मान में भारत सरकार ने साल 1988 में रानी दुर्गावती के नाम एक पोस्टल स्टाम्प भी जारी​ किया था.

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