trendingNow/india/rajasthan/rajasthan11465753
Home >>उदयपुर

कंतारा से कम नहीं है राजस्थान के उदयपुर की गवरी, देखकर फटी रह जाएंगी आंखें

Rajasthan Tradition Gavari : कनार्टक (kantara) के लोक देवता से जुड़ी कहानी कंतारा (kantara) फिलहाल हर किसी की जुंबा पर है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि राजस्थान(Rajasthan) के उदयपुर(udaipur)में भी कंतारा फिल्म (kantara movie) में दिखाये गये धार्मिक अनुष्ठान भूतकोला जैसा ही एक आयोजन होता है. इसकी तस्वीरें किसी लिहाज से कंतारा से कम नहीं है

Advertisement
कंतारा से कम नहीं है राजस्थान के उदयपुर की गवरी, देखकर फटी रह जाएंगी आंखें
Stop
Pragati Awasthi|Updated: Dec 01, 2022, 01:12 PM IST

Rajasthan Tradition Gavari : राजस्थान में लोकदेवताओं का अपना विशेष स्थान है और उनसे जुड़े कई धार्मिक अनुष्ठान यहां होते रहते हैं. ऐसा ही एक लोकनृत्य है गवरी जो राजस्थान के भील जाति के लोग खेलते हैं. इस लोक नृत्य में भाग लेने वाले लोग अपने परिवार से अलग रहते हैं. 

इस लोकनृत्य को करने वाला हर किरदार एक अलग तरह का श्रृंगार करता है. जिसमें लाल,काले, पीले,नीले रंगों से चेहरे को सजाया जाता है. जो देखने में उतना ही खतरनाक दिखता है जितना की कंतारा मूवी में दिखाया गया था. 

गवरी लोक नृत्य का हर किरदार मुखौटा पहने होता है और ये पहनावा 40 दिन तक एक जैसा ही रहता है. राजस्थान का ये लोकनृत्य गवरी सबसे प्राचीन लोक नाट्य माना जाता है. गवरी लोकनृत्य का समापन गलावण और वलावण नाम की रस्म के साथ होता है. जिसमें मां पार्वती या गोरजा की प्रतिमा जिस दिन बनाई जाती है. उसे गलावण यानि की  बनाने का दिन कहते है. जिस दिन इस मूर्ति का विसर्जन किया जाता है उसे वलावण कहते है.

इससे एक दिन पहले भील समाज के लोग नृत्य करते हुए. गांव के एक चुने गए कुम्हार के घर पहुंचते हैं और यहां पूजा अर्चना कर मिट्टी के हाथी पर गोरजा की प्रतिमा को सवारी के तरह मां गौरी के मंदिर में लाते हैं यहां पर रातभर गवरी खेली जाती है.

गवरी लोक नृत्य के आखिरी दिन से पहले ही ज्वार बोई जाती है. इसके बाद गांव के सभी लोग मां गोरजा की शोभायात्रा निकालते हैं और मां की प्रतिमा का विसर्जन करते हैं. खास बात ये हैं कि कलाकारों के लिए रिश्तेदार,परिजन और गांव के लोग पोशाकें, पगड़ी लाते है. जिसे " पहिरावाणी" कहते है.

 

Read More
{}{}