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सचिन पायलट और अशोक गहलोत में हो गई सुलह, अब डोटासरा, खाचरियावास और धारीवाल का क्या होगा ?

राजस्थान में लंबे वक्त से जारी शीत युद्ध का दिल्ली दरबार में पटाक्षेप हो गया है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट ने दिल्ली दरबार में कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी से मुलाकात कर सियासी युद्ध पर विराम लगा दिया है.
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क्या होगा 5 बड़े नेताओं का
क्या होगा 5 बड़े नेताओं का

दरअसल गहलोत और पायलट के बीच चल रहे सियासी युद्ध में कई ऐसे नेता है, जिन्होंने जमकर अपनों पर ही व्यंग बाण चलाएं. दिल्ली में हुए समझौते के बाद अब इन नेताओं के सियासी भविष्य पर भी सवाल उठने लगे हैं. इन नेताओं में पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा से लेकर कैबिनेट मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास और शांति धारीवाल तक के नाम शामिल है. साथ ही इस वरिष्ठ मंत्री रमेश मीणा और विश्वेंद्र सिंह सरीखे नेताओं के भी नाम है. चलिए बताते हैं की आंखें इस सियासी समझौते के बाद इन 5 बड़े नेताओं पर क्या सियासी असर होगा.

 

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गोविंद सिंह डोटासरा
गोविंद सिंह डोटासरा

जाट कौम से आने वाले गोविंद सिंह डोटासरा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सबसे करीबी नेताओं में शुमार है. गोविंद सिंह डोटासरा साल 2018 में सीकर के लक्ष्मणगढ़ से चुनकर आए और उन्हें गहलोत मंत्रिमंडल में शामिल किया गया. डोटासरा के पास शिक्षा विभाग जैसा अहम मंत्रालय रहा, लेकिन अपने कार्यकाल के दौरान डोटासरा कई विवादों से घिरे रहे. जिनमें रीट पेपर लीक और आरपीएससी में परिवार के सदस्यों का चयन का मुद्दा अहम रहा. 

हालांकि 2020 में पायलट गुट के बगावत के बाद कांग्रेस आलाकमान ने डोटासरा को प्रदेश में अहम भूमिका सौंपते हुए पीसीसी चीफ बनाया. अब चर्चाएं हैं कि राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस संगठन में अहम बदलाव करके पीसीसी चीफ को भी बदला जा सकता है, ऐसे में माना जा रहा है पीसीसी चीफ की कुर्सी सचिन पायलट या उनके कैंप किसी नेता को दी जा सकती है

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प्रताप सिंह खाचरियावास
प्रताप सिंह खाचरियावास

जयपुर की सबसे हॉट सीट सिविल लाइन से जीतकर विधायक बने प्रताप सिंह खाचरियावास पहले सचिन पायलट के विश्वसनीय लोगों में शुमार थे, लेकिन साल 2020 में पायलट गुट की बगावत से खाचरियावास ने खुद को दूर रखा और वह पायलट गहलोत कैंप में आ गए. जिसके बाद उन्होंने गहलोत गुट की ओर से जमकर सियासी बैटिंग की और पायलट गुट को निशाना बनाया. हालांकि 2021 के मंत्रिमंडल फेरबदल में खाचरियावास का डिमोशन हो गया. अब चर्चाएं हैं गहलोत और पायलट के बीच सियासी समझौता होने के बाद खाचरियावास की कुर्सी पर एक बार फिर सियासी संकट मंडरा रहा है.

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शांति धारीवाल
शांति धारीवाल

राजस्थान कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ विधायकों में से एक शांति धारीवाल गहलोत सरकार में दूसरे नंबर के व्यक्ति माने जाते हैं, लेकिन शांति धारीवाल ने पिछले साल 25 सितंबर को कांग्रेस हाईकमान के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया था और 80 विधायकों के इस्तीफा दिलवा दिए थे, जिसके बाद कांग्रेस हाईकमान शांति धारीवाल से बेहद खफा बताए जा रहे हैं.

वैश्य समाज से आने वाले शांति धारीवाल के नेतृत्व में 80 से ज्यादा विधायकों ने हाईकमान की ओर से भेजे गए ऑब्जर्वर से मुलाकात करने से इंकार कर दिया था, जिसके बाद धारीवाल, महेश जोशी समेत तीन नेताओं पर कांग्रेस आलाकमान ने अनुशासनहीनता मानते हुए नोटिस थमाया था, हालांकि यह मामला अब भी लंबित पड़ा है. लिहाजा ऐसे में गहलोत और पायलट के सियासी समझौते से सियासी समझौते का धारीवाल को खामियाजा उठाना पड़ सकता है.

 

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रमेश मीणा
रमेश मीणा

साल 2009 में बसपा से कांग्रेस में आए, रमेश मीणा ने 2014 में कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इसके बाद मीणा सचिन पायलट खेमे से मंत्री भी बने और उन्हें खाद्य विभाग जैसा अहम मंत्रालय दिया गया. साल 2020 में हुई बगावत में रमेश मीणा भी सचिन पायलट के बागी साथियों में से एक थे लेकिन बगावत से वापसी के बाद मीणा ने खेमा बदल लिया. इसके बाद साल 2021 में मंत्रिमंडल विस्तार में उनका कद बढ़ाते हुए उन्हें पंचायती राज और ग्रामीण विकास जैसा अहम मंत्रालय सौंपा गया. अब सचिन पायलट रमेश मीणा से बेहद नाराज बताए जाते हैं, लिहाजा ऐसे में रमेश मीणा भी सचिन पायलट के रडार पर हैं.

 

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विश्वेंद्र सिंह
विश्वेंद्र सिंह

भरतपुर के महाराज और डीग कुम्हेर से विधायक विश्वेंद्र सिंह को सचिन पायलट का अर्जुन कहा जाता था साल 2018 में जीत के बाद उन्हें पर्यटन विभाग का जिम्मा सौंपा गया. हालांकि 2020 में सचिन पायलट के साथ बगावत के बाद उन्हें मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया था, लेकिन बगावत के बाद विश्वेंद्र सिंह ने पाला बदल लिया और सचिन पायलट से दूरी बना ली विश्वेंद्र सिंह अपने बेटे अनिरुद्ध सिंह के चलते भी लगातार चर्चाओं और विवादों में रहे. अब नए कैबिनेट विस्तार में कहा जा रहा है कि विश्वेंद्र सिंह की मंत्री पद से छुट्टी हो सकती है और पूर्वी राजस्थान से पायलट समर्थक किसी नेता को मंत्री पद मिल सकता है.

 

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क्या होगा?
क्या होगा?

कुल मिलाकर सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच सियासी समझौते ने राजस्थान कांग्रेस के कई विधायकों और नेताओं की चिंता बढ़ा दी है, क्योंकि इनमें से कई नेता पाला बदलने के लिए मशहूर हैं. ऐसे में गहलोत और पायलट की एकजुटता इन विधायकों की परेशानी बढ़ा सकते हैं.





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