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Power crisis: राजस्थान में बिजली संकट, विदेश से होगी कोयले की खरीद

राजस्थान की बिजली उत्पादन कंपनियां कोयले की कमी से जूझ रही है. राजस्थान सरकार केंद्र पर लगातार अतिरिक्त कोयले की आपूर्ति का दबाव बना रही है. वहीं छत्तीसगढ़ में आवंटित खदानों से कोयला निकालने में पसीने छूट रहे है. 

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बिजली संकट
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Ankit Tiwari|Updated: Jul 02, 2022, 10:27 AM IST

Jaipur: राजस्थान की बिजली उत्पादन कंपनियां कोयले की कमी से जूझ रही है. राजस्थान सरकार केंद्र पर लगातार अतिरिक्त कोयले की आपूर्ति का दबाव बना रही है. वहीं छत्तीसगढ़ में आवंटित खदानों से कोयला निकालने में पसीने छूट रहे है. स्थानीय विरोध के चलते अब तक नई आवंटित खदानों से कोयला नहीं निकल पाया है, इससे मानसून के सीजन में ऊर्जा विभाग के पसीने छूट रहे हैं. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मंजूरी के बाद ऊर्जा विभाग अब विदेश से कोयला खरीद की प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहा है और जल्दी ही वित्त विभाग इसकी मंजूरी दे सकता है.

राजस्थान के थर्मल पॉवर प्लांट्स में मानसून में छत्तीसगढ़ की कोयला माइंस और कोल इंडिया से कोयला सप्लाई में कमी की आशंका ब्लैक आउट के खतरे का अलर्ट दे रही है. प्रदेश के थर्मल पॉवर प्लांट्स को 70 फीसदी कोयले की सप्लाई छत्तीसगढ़ से होती है. कोयले का अब तक प्रबंधन नहीं होने से प्रदेश में बिजली उत्पादन से जुड़ी राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को अंदेशा है कि राजस्थान में 4340 मेगावाट के बिजली प्लांट्स मॉनसून में ठप हो सकते है. 

प्रदेश के ऊर्जा मंत्री भंवर सिंह भाटी का कहना है कि अब विदेश से खरीद की तैयारी है. हालांकि भारत सरकार से विदेश से कोयला खरीदने का ऑर्डर अतिरिक्त आर्थिक भार डाल रहा है. भारत सरकार को अपने संसाधनों से सस्ता कोयला राजस्थान को देना चाहिए. भारत सरकार से आवंटित छत्तीसगढ़ की खदानों से खनन प्रक्रिया एक बार फिर से रुकी है ऐसे में मुश्किलें बढ़ रही है.

राजस्थान में थर्मल पावर प्लांट्स यूनिट्स की 23 इकाइयों की कुल कैपेसिटी 7580 मेगावाट है. इनमें से 3240 मेगावाट कैपेसिटी के प्लांट कोल इंडिया की एसईसीएल और एनसीएल से कोयला सप्लाई लेते हैं जबकि 4340 मेगावाट प्लांट राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम की छत्तीसगढ़ में खुद की कैप्टिव कोल माइंस से लिंक्ड हैं. 

परसा ईस्ट कैंटे बेसिन एक्सटेंशन और पारसा कोल ब्लॉक के नए ब्लॉक में राजस्थान को केन्द्र से मंजूरी के बाद माइंस नहीं करने दी जा रही क्योंकि वहां हसदेव अरण्य क्षेत्र में पेड़ काटने की परमिशन नहीं मिल रही. आदिवासी, एनजीओ और स्थानीय जनप्रतिनिधयों का विरोध जारी है. समाधान निकलना मुश्किल हो रहा है, ऐसे में पावर कट का दौर भी लंबा रह सकता है.

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