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सम्मेद शिखर को टूरिस्ट पैलेस घोषित करने का विरोध, जैन मुनि सुज्ञेय सागर ने त्यागे प्राण

विश्व विख्यात जैन तीर्थ सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल घोषित करने के विरोध में जैन मुनियों ने अनशन और अन्न त्यागना शुरू कर दिया हैं.

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सम्मेद शिखर को टूरिस्ट पैलेस घोषित करने का विरोध, जैन मुनि सुज्ञेय सागर ने त्यागे प्राण
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Deepak Goyal|Updated: Jan 03, 2023, 09:29 PM IST

जयपुर: विश्व विख्यात जैन तीर्थ सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल घोषित करने के विरोध में जैन मुनियों ने अनशन और अन्न त्यागना शुरू कर दिया हैं. सम्मेद शिखरजी को पर्यटन स्थल घोषित करने के विरोध में पिछले दस दिनों से अनशन कर रहे 72 वर्षीय जैन मुनि सुज्ञेय सागर ने संघी जी जैन मन्दिर में प्राण त्याग दिए.

सांगानेर संघी जी मन्दिर में विराजित पूज्य चतुर्थ पट्टाधीश आचार्य सुनील सागर के शिष्य मुनि सुज्ञेय सागर की समाधि सुबह हुई. मुनि सम्मेद शिखर मामले को लेकर 25 दिसम्बर से अन्न जल त्याग कर आमरण अनशन पर थे, जिसके चलते आचार्य के सानिध्य में पंच परमेष्ठि का ध्यान करते हुए उन्होंने अपना देह त्याग दिया.

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उग्र आंदोलन की चेतावनी

वह मध्यम सिंहनिष्क्रिड़ित व्रत में उतरते हुए उपवास कर रहे थे. उनकी डोल यात्रा संघी जी मन्दिर सांगानेर से जैन नसिया रोड अतिशय तीर्थ वीरोदय नगर सांगानेर में अंतिम संस्कार हुआ. मुनि के दर्शन करने के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ा. सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल घोषित किए जाने के बाद से मुनि ने आमरण अनशन शुरू किया था. उन्होंने सम्मेद शिखर को बचाने के लिए बलिदान दिया है. मुनि सम्मेद शिखर से भी जुडे हुए थे. आचार्य शंशाक ने कहा कि जैन समाज अभी अहिंसामयी तरीके से अभी आंदोलन कर रहा है. आगामी दिनों में आंदोलन को उग्र भी किया जाएगा.

जैन समाज का एक दल करेगा सम्मेद शिखर के लिए करेगा कूच

उधर अब मुनि समर्थ सागर ने भी अन्न का त्याग कर तीर्थ को बचाने के लिए पहल की है. झारखंड के गिरिडीह जिले में अवस्थित पारसनाथ पहाड़ी को पर्यटन स्थल घोषित किए जाने के खिलाफ देशभर में विरोध-प्रदर्शन का सिलसिला जारी है.पारसनाथ पहाड़ी दुनिया भर के जैन धर्मावलंबियों के बीच सर्वोच्च तीर्थ सम्मेद शिखरजी के रूप में विख्यात है. सम्मेद शिखर जैन धर्म और जैन समाज की आस्था का मुख्य केंद्र है, इस तीर्थ स्थल का बहुत बड़ा इतिहास है, इस पवित्र पर्वत से 20 तीर्थंकर भगवानों ने अपने त्याग और तप से मोक्ष के सुख को प्राप्त किया साथ ही करोड़ों मुनियों ने इस पर्वत की वंदना कर त्याग-तप और साधना कर समाधी मरण के सुख को प्राप्त किया. इसके अतिरिक्त पूरे विश्वभर से प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या में जैन श्रद्धालुओं इस पवित्र पर्वत की वंदना करते है.

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