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Science Facts: इस वजह से महीने भर पहले ही होने लगेगा अलग होने का एहसास

Scientists on Break ups:  स्कूल से कॉलेज और कॉलेज से सेम ऑफिस तक का सफर एक साथ तय किया और अब सब कुछ फिट लग रह रहा है तो  शादी का बन बना लिया. किन अचानक ये क्या फोन पर बात हुई और सब खत्म, दोनों ने ब्रेकअप कर लिया. 

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Science Facts: इस वजह से महीने भर पहले ही होने लगेगा अलग होने का एहसास
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Anamika Mishra |Updated: Jan 06, 2023, 06:11 PM IST

Scientists on Break ups:  स्कूल से कॉलेज और कॉलेज से सेम ऑफिस तक का सफर एक साथ तय किया और अब सब कुछ फिट लग रह रहा है तो  शादी का बन बना लिया. क्योंकि दोनों एक दूसरे से बेहद प्यार करते है और 6 साल के रिश्ते को अब अनमोल बंधन में बांधना चाहते है. लेकिन अचानक ये क्या फोन पर बात हुई और सब खत्म, दोनों ने ब्रेकअप कर लिया. सभी शॉक्ड हो गए.  किसी को समझ में नहीं आया कि ये कैसे हुआ? क्यों हुआ? 

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ब्रेकअप करने की वजह उन दोनों को भी पता नहीं चली. कि आखिर किस बात में दोनों ने सालों के रिश्तों को आसानी से खत्म कर लिया. लेकिन अब इस प्यार के ब्रेककप की गुत्थी को सॉल्व करने के लिए वैज्ञानिकों ने एक नया तरीका खोजा है, जो प्यार करने वालों को उनके ब्रेककप के तीन महीने पहले ही उन्हें बता देगा कि आपका ब्रेकअप  कैसे होने वाला है?

ऑस्टिन की यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास के रिसर्चर्स ने 6803 रेडिट यूजर्स के 1,027,541 पोस्ट की स्टडी को बारीकी से जांचा. इन लोगों ने सेपरेटिड r/Breakups पर पोस्ट किया था. जिससे उन्होंने लिखने वाले की भाषा से उसकी मनःस्थिति का पता लगाया  कि आखिर क्यों अचानक से होते सेपरेडिट.
इस रिचर्स में निकलकर सामने आया कि पोस्ट लिखते वक्त जिस भाषा का इस्तेमाल इन पोस्ट में किया गया था. तभी भाषा में बदलाव आ जाता था.   

 हाल ही में यह रिसर्च प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस में प्रकाशित हुई है. जिसमें रिसर्चर्स ने ब्रेकअप से दो साल पहले और दो साल बाद के पोस्ट देखे. इन पोस्ट में वैज्ञानिकों को लिखने की भाषा में कई तरह के बदलाव मिलें. जिसका ब्रेकअप होने वाला होता है, उसकी भाषा तीन महीने पहले से ही बदलने लगती है. ब्रेकअप होने के छह महीने बाद तक भाषा में कोई बदलाव नहीं आता. 

भाषा कई तरह के ऐसे शब्दों का प्रयोग होना शुरु हो जाता है जो अलग होने के संकेत देने लगते है , जैसे में मैं, हम शब्दों की मात्रा  लिखने और बात करने में बढ़ जाती है. ऐसे शब्दों की मात्रा बढ़ जाती है, जो इंसान खुद के लिए इस्तेमाल करता है. जिसके जरिए कई मतलब निकाले जा सकते है. लोगों की विश्लेष्णात्मक सोच कम होने लगती है. इंसान ज्यादा निजी और अनौपचारिक भाषा का बोलने या पोस्ट करने लगता है.

जैसे- उदाहरण के लिए  वह किसी से भी अपने मन की स्थिति को सांझा करते वक्त केलव यही कहेगा कि मैं कितना अपने ब्रेककप की कहानी बताऊं. मुझे  अपने दोस्तों  की मदद चाहिए क्योंकि मैं बहुत अकेला फील कर रहा हूं. लेकिन मेरी कहानी लंबी है,

इस तरह की बाते वह अपने स्वभाव में आए अचानक बदलाव से होती है क्योंकि जब वह किसी  रिश्ते में होते है तो वह किसी से भी इस तरह की बात  नहीं करते हैं. लेकिन जब उनका मन बदलता है, या बदलने वाला होता है... तब ऐसी भाषा का इस्तेमाल होता है.  

यह स्टडी करने वाली प्रमुख शोधकर्ती साराह सेराज ने बताया कि लोग पहले से जानते हैं कि उनका ब्रेकअप होने वाला है. लेकिन वो कभी भी अपनी भाषा पर ध्यान नहीं देते. इनका जीवन प्रभावित होना शुरू हो जाता है. हम इस बात पर ध्यान नहीं देते कि हम कितनी बार प्रिपोजिशन, आर्टिकल्स या प्रोनाउंस का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन हमारी सामान्य भाषा में इनकी मात्रा बढ़ जाती है. जिससे आपके मनोवैज्ञानिक स्थिति का पता चलता है. 

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