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Biggaji Maharaj: लंपी से कराहती गायें कर रही अवतारी बिग्गाजी का इंतजार, कलयुग में आप ही बचाओ महाराज

गौमाता के पास जुबान नहीं है की लम्पी से हो अपनी तकलीफ को बयां कर सकें, बिग्गाजी के साथ बहुत कम साथी थे और दूसरी तरफ मुस्लिम कसाई बहुत अधिक थे, दोनों तरफ से घोर युद्ध हुआ. बिग्गाजी ने कई कसाईयों के सर धड़ से अलग कर दिया और वीरता के साथ लड़ते रहे.

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गौरक्षक लोकदेवता बिग्गाजी
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Himadri Sharma|Updated: Sep 14, 2022, 08:08 PM IST

 

                                                                                                         "गौमाता कर रही पुकार, फिर से वीरों तुम लो अवतार
                                                                                                           बिग्गाजी, तेजाजी बनकर, बचाओ गौवंश की जान"

History Of Biggaji: गौमाता के पास जुबान नहीं है की लम्पी से हो अपनी तकलीफ को बयां कर सकें, लेकिन मन में कहीं ना कहीं वो आज उन वीरों को याद कर रही है जिनके बारे में उसने भी अपने पुरखों से सुना था, जिन्होंने गौमाता की रक्षा में अपना बलिदान दे दिया था. गौमाता भी सोच रही होगी कहा है वो गौभक्त जिनके किस्से उनके पुरखो ने बताये थे. आज लम्पी बीमारी में गौवंश ने ना जाने कितने अपने साथियों को काल का ग्रास बनते देखा है, कई बछड़ों ने अपनी माँ को खोया है. आमजन हो या सरकार हो गौमाता बस एक ही बात कह रही है, हम बोल नहीं सकते लेकिन देख और महसूस कर सकते की इस मुश्किल की घड़ी में कोण हमारा अपना है और कौन दूध का कर्ज चुका रहा है. राजस्थान को यूं ही नहीं वीरों की धरती कहा जाता है, यहां पर वीरता के वे किस्से हैं, जिन्हें जानकर हर कोई नतमस्तक हो जाता है. आज के समय में भी जिस तरह से गायों पर संकट आरहा है, ऐसे में प्रदेश को उन्हीं तेजाजी, पाबूजी हड़बूजी और बिग्गाजी जैसे योद्धाओं की जरूरत है, जिन्होंने गौरक्षा को ही अपना धर्म माना. आज जिस गौरक्षक वीर के बारे में हम बताने जा रहें हैं उनका नाम है बिग्गाजी.

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कौन है बिग्गाज

बिगाजी को राजस्थान के गौ रक्षक देवता के रूप में जाना जाता है. बिग्गाजी का जन्म 1358 ईस्वी में रिड़ी में राव मेहंदी और सुल्तानी देवी के यहा हुआ था. बिग्गाजी का जन्म स्थान वर्तमान में बीकानेर में स्थित है. बिग्गाजी बचपन से वीर और धनुष विद्या में निपुण थे. उस समय धरती को पीथल बोल कर पूजा जाता था और गायों की रक्षा करना, उन्हें चराना क्षत्रिय का परम धर्म माना जाता था. यही सीख बिग्गाजी को भी बचपन से दी गई थी. युवा होने पर बिग्गाजी की शादी अमरसर के चौधरी खुशाल सिंह की पुत्री राजकंवर के साथ हुई और बिग्गाजी की दूसरी शादी मालासर के खींदाजी मिल की बेटी मीरा के साथ हुई थी. 

गौ रक्षा के लिए लड़ता रहा धड़, धरती हो गई खून से लाल 

लोककथा के अनुसार बिग्गाजी के साले की शादी थी और वे अपने साले की शादी में अपने ससुराल गए थे. इस दौरान जब वे रात को सोकर सुबह उठे तो कुछ ब्राह्मण महिलायें उनके पास आई और कहा की राठ क्षेत्र के राठ मुस्लिम कसाई उनकी गायों को छीनकर जंगल की ओर ले गए है. इस क्षेत्र में कोई भी क्षत्रिय हमारी मदद को आगे नहीं आरहा है, ऐसे में आप हमारी सहायता कीजिये. इस बात पर बिग्गाजी की खून खौल उठा और उन्होंने कहा की धर्म की रक्षा करने वाला क्षत्रिय नारी की आंखों में आंसू नहीं देख सकता, और उन्होंने अपने अस्त्र शस्त्र उठाए और अपने साथ सावलदास पहलवान, हेमा बागड़वा, गुमाराम तावणियां, राधो व बाधा के साथ गायों को बचाने सफेद घोड़ी पर सवार होकर मालासर से राठ की ओर निकल पड़ें. 

मालासर वर्तमान में बीकानेर में स्थित है. मालासर से 35 कोस दूर जैतारण में वीर बग्ग्गाजी को गायों को ले जाने वाले मुसलमान कसाई दिखाई दिए और वहीं पर दोनों तरफ से मुकाबला शुरू हो गया. बिग्गाजी के साथ बहुत कम साथी थे और दूसरी तरफ मुस्लिम कसाई बहुत अधिक थे, दोनों तरफ से घोर युद्ध हुआ. बिग्गाजी ने कई कसाईयों के सर धड़ से अलग कर दिया और वीरता के साथ लड़ते रहे. राठ क्षेत्र में इतना रक्त बहा की धरती खून से लाल हो गयी, युद्ध में राठों को पराजित कर बग्गाजी ने सभी गायों को छुड़ा दिया, लेकिन अंत में एक बछड़े के पीछे छूट जाने पर वे फिर उसे लेने के लिए गए. इस दौरान एक कसाई ने धोखे से आकर बिग्गाजी पर पीछे से वार कर उनका सर धड़ से अलग कर दिया, लेकिन फिर भी राजपूती खून ने धर्म रक्षा नहीं छोड़ी उनका धड़ बिना शीश के लड़ता रहा. दोनों हाथों की तलवारें अपना शौर्य दिखाती रही.

सर विहीन धड़ को लड़ते देख हर कोई आश्चर्य चकित हो गया, युद्ध खत्म होने के बाद बिगाजी ने अपने हाथों से अपने शस्त्र साफ़ किये और अपनी घोड़ी और गायों को मूल स्थान पर जाने का आदेश दिया. शहीद बिग्गाजी ने पहले गायों को अपने ससुराल पहुंचाया, फिर उनकी घोड़ी उनका शीश लेकर उनके जाखड़ राज्य की ओर चल पड़ी. स्वामिभक्त घोड़ी के मुंह से जहां बिग्गाजी की सर गिरा वह आज रिड़ी में देवली मंदिर है, जहां गौरक्षक बिग्गाजी को पूजा जाता है और जहां बिग्गाजी का धड़ गिरा वहां धड़ देवली मंदिर है. बिग्गाजी की मृत्यु का समाचार जब उनकी बहिन हरिया ने सुना, तो वह भी भी के वियोग में सती हो गयी.  

इस गोगाजी व तेजाजी की भांति बिग्गाजी भी गौरक्षक लोकदेवता के रूप में पूजे जाने लगे. यह वीर पुरुष जाखड़ जाटों में होने के कारण प्रारंभ में जाखड़ जाट चाहे वे देश-विदेश में कहीं भी रहते हों, बिग्गाजी को अपना कुलदेवता मानकर इसकी पूजा करने लगे. धीरे-धीरे बिग्गाजी के बलिदान व वीरोचित गुणों की गाथा का असर अन्य जातियों पर भी पड़ा और उनमें इन्हें लोकदेवता के रूप में पूजा जाने लगा. 

गायों की बीमारियों को ठीक करता है बिग्गाजी का धागा 

लोगों में मान्यता है कि गायों में किसी प्रकार की बीमारी होने पर, बिग्गाजी के नाम का धागा गाय के गले में बांधने से सभी रोग ठीक हो जाते हैं. बिग्गाजी के उपासक त्रयोदसी को घी बिलोवना नहीं करते हैं तथा उस दिन जागरण करते हैं और बिग्गाजी के गीत गाते हैं. इसकी याद में आसोज सुदी 13 को ग्राम बिग्गा व रिड़ी में स्थापित बिग्गाजी के मंदिरों में विशाल मेले भरते हैं, जहां हरियाणा, गंगानगर तथा अन्य विभिन्न स्थानों से आए भक्तों द्वारा सृद्धा के साथ बिग्गाजी की पूजा की जाती है. इसी उम्मीद में इस समय भी जब लम्पी बीमारी से पूरे प्रदेश में हाहाकार मचा हुआ है, लोग गौरक्षक लोकदेवता की शरण में जाकर अपने पशुधन को बचाने की प्रार्थना कर रहें हैं. 

आज प्रदेश को ऐसे ही गौरक्षक वीरों की आवश्यकता है, जो आगे आकर गौमाता के दर्द को कम कर सके, बेजुबानों की जुबान समझ सकें. 

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