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पांडवों ने वनवास के समय यहां की थी शिव की पूजा, नहीं सूखता उनके खोदे गए कुएं का पानी

मालाणी की छप्पन की पहाड़ियों में भी ऐसे ही इतिहास के साक्ष्य और किवदंतीया भरी पड़ी हैं. बाड़मेर के किटनोद गांव की पहाड़ियों में बने बागालेश्वर महादेव मंदिर की भी अपनी एक कहानी है.

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पांडवों ने वनवास के समय यहां की थी शिव की पूजा, नहीं सूखता उनके खोदे गए कुएं का पानी
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Bhupesh Aacharya|Updated: Jul 18, 2022, 08:38 AM IST

Pachpadra: भगवान शिव को पहाड़ों में वास करने वाले देवता माना जाता है. देश-प्रदेश के पहाड़ों में शिव के उपासक सदियों से पूजा अर्चना और दर्शन करते आए हैं. 

मालाणी की छप्पन की पहाड़ियों में भी ऐसे ही इतिहास के साक्ष्य और किवदंतीया भरी पड़ी हैं. बाड़मेर के किटनोद गांव की पहाड़ियों में बने बागालेश्वर महादेव मंदिर की भी अपनी एक कहानी है.

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बाड़मेर के बालोतरा कस्बे से कुछ किलोमीटर दूर किटनोद-कुशीप की पहाड़ियों में भी एक शिव मंदिर है, जहां सावन के महीने श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. किटनोद कस्बे से महज 4 किलोमीटर दूर छप्पन की पहाड़ियों के बीच बागालेश्वर महादेव मंदिर की भी अपनी एक कहानी है. पहाड़ी के बीच बने इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि जब पांडव वनवास के दौरान इस क्षेत्र से गुजरे थे तो वो कुछ महीने इन छप्पन की पहाड़ियों में भी रुके थे. किटनोद कस्बे के पास पहाड़ी में रुकने के दौरान उन्होंने यहां शिव की उपासना की थी और शिवलिंग की स्थापना की. पांडवों ने इस स्थान पर एक बेरी भी खोदी थी, जिसे आज पाण्डु बेरी (कुआं) के नाम से जाना जाता है, इस बेरी में पानी कभी कम नहीं होता.

शिवलिंग की पूजा अर्चना कर लोग खुशहाली की कामना 
माना जाता है कि पांडवों ने कुछ दिन यहां विश्राम किया था और इस स्थान पर भगवान शिव की पूजा की और भगवान शिव ने उन्हें यहां दर्शन दिए. अज्ञातवास के दौरान भगवान कृष्ण उनसे मिलने इन्ही पहाड़ों में आये थे. तभी से यहां शिव की पूजा की जाती है. सावन के महीने में यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. यहां स्थापित शिवलिंग की पूजा अर्चना कर लोग खुशहाली की कामना करते हैं.

प्राकृतिक पानी का भी अपना महत्त्व 
इसी जगह पर एक ओर तपस्या स्थल मौजूद है. करीब 400 साल पहले रुपनाथ जी महाराज ने यहां समाधि ली, जिसे लोग झरडोजी (लोक देवता) मंदिर के रूप में पूजते हैं. इस मंदिर के पास पहाड़ो से रिस कर आने वाले प्राकृतिक पानी का भी अपना महत्त्व है. लोगों का मानना है कि इस जगह पूजा करने ओर कुंड के पानी को शरीर पर लगाने से दाद, खुजली और असाध्य हो चुके चमड़ी रोग की बीमारी दूर हो जाती है. चमड़ी की असाध्य बीमारी को लेकर दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं और शिव मंदिर में दर्शन के साथ झरडोजी की पूजा करते हैं.

पहाड़ी की दुर्गम रास्तों के कारण पहले यहां कम श्रद्धालु पहुंचते थे लेकिन अब मंदिर तक पहुंचने के लिए ग्रेवल सड़क और पहाड़ी में भी रपट का निर्माण किया गया गया है, जिससे श्रद्धालु आसानी से मंदिर तक पहुंच सके.

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