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राजस्थान के जाट-OBC किसका देंगे साथ? राहुल गांधी कर रहे बार बार जिक्र, समझिए क्या है गणित

राजस्थान के जाट और मूल ओबीसी किसका देंगे साथ यह सबसे बड़ा सवाल है, क्योंकि राजस्थान में किसी भी दल का खेल बनाने और बिगड़ने में जाट और ओबीसी फेक्टर खास अहमियत रखता है.

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राजस्थान के जाट-OBC किसका देंगे साथ? राहुल गांधी कर रहे बार बार जिक्र, समझिए क्या है गणित
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Anish Shekhar|Updated: Nov 20, 2023, 09:51 AM IST

Rajasthan Election Jat OBC : राजस्थान के जाट और मूल ओबीसी किसका देंगे साथ यह सबसे बड़ा सवाल है, क्योंकि राजस्थान में किसी भी दल का खेल बनाने और बिगड़ने में जाट और ओबीसी फेक्टर खास अहमियत रखता है. राजस्थान में अब चुनाव प्रचार अंतिम दौर में पहुंच चुका है, लिहाजा ऐसे में सियासी दलों की नजर जाट और मूल ओबीसी पर है.

दरअसल राजस्थान में विधानसभा चुनाव की रस्साकशी के बीच राहुल गांधी के भाषणों में बार-बार ओबीसी का जिक्र हो रहा है. राहुल ओबीसी को साध कर फिर से सरकार रिपीट करना चाहते हैं, तोवही हनुमान बेनीवाल की भी पॉलिटिक्स जाट और ओबीसी के भरोसे ही अधिक से अधिक परचम लहराने की हैं. हालांकि इस बेहद रोमांचक चुनाव में अब तक जाट और मूल ओबीसी समुदाय ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं.

जाट और मूल ओबीसी के हाथ सत्ता की चाबी

राजस्थान में सबसे ज्यादा आबादी जाट मतदाताओं की है. इनमें बीजेपी और कांग्रेस ने भी सबसे ज्यादा टिकट जाटों को ही दिया है. जहां कांग्रेस ने 36 जाट उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे हैं तो वहीं भाजपा की ओर से भी 33 जाटों को टिकट दिया गया है. जाट मतदाताओं का प्रभाव राजस्थान की 82 सीटों पर माना जाता है, लिहाजा ऐसे में किसी भी सरकार के बनने और बिगड़ने में जाट और ओबीसी मतदाताओं का बड़ा हाथ होता है. 

जाटों ने 2018 में कांग्रेस और 2019 में भाजपा का दिया साथ

आपको बता दें कि साल 2013 के विधानसभा चुनाव में जाटों का भारी समर्थन भाजपा को प्राप्त हुआ था, लेकिन साल 2018 में जाटों की ही नाराजगी भाजपा को भारी पड़ी और इसका फायदा सीधे तौर पर कांग्रेस को हुआ. जिसकी बदौलत प्रदेश में कांग्रेस सत्ता में वापसी करने में कामयाब हुई, हालांकि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में जाटों ने एक बार फिर भाजपा का साथ दिया, लेकिन पिछले 5 सालों में कई अलग-अलग वजहों से जाटों की नाराजगी भी भाजपा से देखने को मिली. 

इन जिलों में जाटों का खास प्रभाव

राजस्थान की जोधपुर, नागौर, पाली, बाड़मेर, जैसलमेर, सिरोही, चूरू, सीकर, झुंझुनू, बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, धौलपुर और भरतपुर तक जाटों का खासा प्रभाव है. यहां के अधिकतर सीटों पर किसी के भी हार और जीत का फैक्टर जाटों का रुझान ही होता है. पिछले दिनों भरतपुर में हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण में भी जाट केंद्र में रहे, तो वहीं राहुल गांधी भी लगातार ओबीसी समुदाय को हक दिलाने की बात कह रहे हैं.

कुल मिलाकर राजस्थान में जाट और मूल ओबीसी किसका साथ देते हैं, यह देखना बेहद दिलचस्प होगा. हालांकि यह समुदाय एक तरफा वोट नहीं करता है, लेकिन इन समुदाय को अधिक से अधिक साधने की जुगत में बीजेपी और कांग्रेस जुटी हुई है और यही कारण है कि जिसका साथ जाट और ओबीसी देंगे उसी की सत्ता में वापसी होगी!.

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