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Rajasthan Election : 35 साल लगातार कांग्रेस के गढ़ रहे ओसियां में पिछले 20 सालों से मदेरणा परिवार को मिल रही चुनौती

Osian Vidhansabha Seat : जोधपुर की ओसियां को 11 विधायक दे चुकी कांग्रेस को अब पिछले 20 सालों से इस सीट पर भाजपा भी कड़ी टक्कर देती आई है और अब इस सीट पर सबसे बड़ी चुनौती हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी बन चुकी है. मदेरणा परिवार की तीसरी पीढ़ी यानी दिव्या मदेरणा इस सीट से मौजूदा विधायक हैं. पढ़ें इस सीट का सियासी इतिहास..

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Rajasthan Election : 35 साल लगातार कांग्रेस के गढ़ रहे ओसियां में पिछले 20 सालों से मदेरणा परिवार को मिल रही चुनौती
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Anish Shekhar|Updated: Jul 25, 2023, 02:51 PM IST

Osian Vidhansabha Seat : जोधपुर की सबसे बड़ी विधानसभा सीट ओसियां यूं तो मदेरणा परिवार की परंपरागत सीट बन चुकी है, लेकिन पिछले 20 सालों का इतिहास देखा जाए तो इस सीट पर भाजपा भी कड़ी टक्कर देती आई है और अब इस सीट पर सबसे बड़ी चुनौती तीसरी ताकत का दावा करने वाले हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी बन चुकी है. मदेरणा परिवार की तीसरी पीढ़ी यानी दिव्या मदेरणा इस सीट से मौजूदा विधायक हैं, जबकि ओसियां विधानसभा सीट के पहले विधायक उनके दादा परसराम मदेरणा रहे जबकि एक बार (2008) उनके पिता महिपाल मदेरणा भी यहां से विधायक के रूप में चुन कर विधानसभा पहुंच चुके हैं.

खासियत

ओसियां विधानसभा सीट पर सबसे ज्यादा चार बाग कांग्रेस के नेता नरेंद्र सिंह भाटी ने जीत हासिल की. नरेंद्र सिंह भाटी 1980 से 1990 तक लगातार 10 साल विधायक रहे. इसके बाद नरेंद्र सिंह भाटी ने 1993 और 1998 का भी विधानसभा चुनाव जीता और वह ओसियां के विधायक के रुप में विधानसभा पहुंचे. जबकि रंजीत सिंह तीन बार विधायक बने. रंजीत सिंह ने 1967 में पहली बार विधायकी  हासिल की. इसके बाद वह लगाता दो बार और जीते और 1980 तक विधायक रहे, जबकि परसराम मदेरणा 1957 से लेकर 1967 तक विधायक रहे. जबकि राम नारायण विश्नोई, बन्ने सिंह और भैराराम चौधरी ओसियां सीट से एक-एक बार विधायक चुने गए. जबकि भोपालगढ़ से विधायक रहे महिपाल मदेरणा भी यहां से एक बार विधायक चुने गए.

दिव्या मदेरणा

राजस्थान के बड़े सियासी परिवार से ताल्लुक रखने वाली दिव्या मदेरणा की इमेज पिछले 5 सालों में एक तेजतर्रार विधायक के रुप में बनी है. दिव्या मदेरणा कई बार अपनी ही पार्टी को घेरती नजर आई हैं. पिछले दिनों उनकी इसी रुआब के चलते प्रदेश प्रभारी ने उन्हें तलब कर जवाब भी मांगा था. हालांकि बाद में प्रदेश प्रभारी ने यह भी कहा था दिव्या ने कभी भी पार्टी के खिलाफ बयान नहीं दिया है. वहीं आरएलपी प्रमुख और नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल से भी तकरार को लेकर दिव्या मदेरणा सुर्खियों में बनी रहती है. वक्त बेवक्त दोनों नेताओं के बीच सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक तीखी बयानबाजी देखने को मिल जाती है. वहीं माना जा रहा है 2023 के विधानसभा चुनाव में दिव्या मदेरणा के सामने सबसे बड़ी चुनौती हनुमान बेनीवाल ही पेश करेंगे.

ओसियां विधानसभा सीट का इतिहास

पहला विधानसभा चुनाव 1957

ओसियां के पहले विधानसभा चुनाव 1957 में हुए. चुनाव में कांग्रेस की ओर से परसराम मदेरणा चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं उनको चुनौती देने के लिए प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की ओर से रेवत दान ने ताल ठोकी. इस चुनाव में परसराम मदेरणा ने 15,303 मतों से जीत हासिल करके अपने सियासी विरासत की नींव रखी. जबकि रेवत राम को महज 8,317 वोट मिले.

दूसरा विधानसभा चुनाव 1962

1962 के विधानसभा चुनाव तक परसराम मदेरणा अपने आप को एक ताकतवर नेता के रूप में स्थापित कर चुके थे, लिहाजा ऐसे में कांग्रेस ने एक बार फिर परसराम मदेरणा पर विश्वास जताया और उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया. जबकि परसराम मदेरणा को चुनौती देने के लिए एक बार फिर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की ओर से रेवत दान चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में रेवत दान के पक्ष में 10,721 वोट पड़े तो वहीं परसराम मदेरणा एक बार फिर अपनी धाक जमाने में कामयाब हुए और तकरीबन सात हजार से ज्यादा मतों के अंतर से विजयी हासिल की.

तीसरा विधानसभा चुनाव 1967

1967 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने ओसियां पंचायत समिति के प्रधान रहे रणजीत सिंह राठौड़ को टिकट दिया. जिसके बाद जबकि उनके खिलाफ स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार ने ताल ठोकी. इस चुनाव में रंजीत सिंह राठौड़ की बड़े अंतर से जीत हुई. रणजीत सिंह राठौड़ अब एक नया इतिहास लिखने को तैयार थे.

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चौथा-पांचवा विधानसभा चुनाव 1972-1977

1967 के विधानसभा चुनाव में ओसियां के पहले प्रधान रहे रणजीत सिंह राठौड़ की जीत हुई. जिसके बाद कांग्रेस का भरोसा रणजीत सिंह राठौड़ पर बढ़ गया. 1972 के चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर रणजीत सिंह राठौड़ पर ही भरोसा जताया और उनके सामने स्वतंत्र पार्टी से रतन सिंह ने ताल ठोकी. इस चुनाव में भी रणजीत सिंह के पक्ष में लहर बनी और 31,679 वोट उनके पक्ष में पड़े. इस चुनाव में रंजीत सिंह के हाथों रतन सिंह को हार का सामना करना पड़ा. इसी तरह 1977 के विधानसभा चुनाव में भी एक बार फिर रंजीत सिंह ही कांग्रेस के उम्मीदवार बने और उन्होंने अपने सबसे करीबी प्रतिद्वंदी बन्ने सिंह को हरा कर तीसरी बार विधानसभा पहुंचे.

छठां विधानसभा चुनाव 1980

1980 आते-आते देश की सियासी तस्वीर बदल चुकी थी, कांग्रेस अपने बुरे दौर से गुजर रही थी और 1980 के दौर में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस (आई) की ओर से नरेंद्र सिंह भाटी चुनावी मैदान में थे, तो वहीं कांग्रेस (यू) की ओर से बदन सिंह चौधरी उम्मीदवार बने. इंदिरा गांधी के दौर में हुए चुनाव में कांग्रेस (आई) के नरेंद्र सिंह भाटी की जीत हुई और वह पहली बार विधायक के रुप में विधानसभा पहुंचे.

सातवां विधानसभा चुनाव 1985

1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने नरेंद्र सिंह भाटी पर फिर भरोसा जताया और उन्हें अपना प्रत्याशी बनाया. जबकि कांग्रेस के टिकट पर 15 साल विधायक रहे रणजीत सिंह ने निर्दलीय के तौर पर चुनौती पेश की. इस चुनाव में रणजीत सिंह को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा और नरेंद्र सिंह भाटी 37,128 वोटों के साथ एक बार फिर विधानसभा पहुंचे.

आठवां विधानसभा चुनाव 1990

1990 के विधानसभा चुनाव में पहली बार ओसियां विधानसभा सीट की सियासी तस्वीर बदलती हुई नजर आई. पिछले 35 सालों से एक छत्र राज करने वाली कांग्रेस के लिए यह चुनाव बेहद ही चुनौतीपूर्ण रहा. कांग्रेस ने अपने मजबूत उम्मीदवार नरेंद्र सिंह भाटी को ही इस चुनाव में फिर अपना उम्मीदवार बनाया. जबकि जनता दल की एंट्री ने कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी थी. जनता दल की ओर से राम नारायण विश्नोई उम्मीदवार बने. इस चुनाव में नरेंद्र सिंह भाटी को हार का सामना करना पड़ा. जबकि नारायण राम नारायण विश्नोई के सिर जीत का सेहरा बंधा और वह 32,484 वोटों के साथ पहली बार विधानसभा पहुंचे.

9वां विधानसभा चुनाव 1993

1990 में हुए विधानसभा चुनाव के 3 साल बाद ही एक बार फिर चुनावी बिगुल बजा. इस चुनाव में कांग्रेस के सबसे मजबूत सिपाही बन चुके नरेंद्र सिंह भाटी फिर चुनावी मैदान में उतरे. जबकि इस चुनाव में भाजपा की एंट्री हो चुकी थी. भाजपा ने जनता दल से विधायक रहे रामनारायण विश्नोई को टिकट दिया. हालांकि जब चुनावी नतीजे आए तो राम नारायण विश्नोई 29,499 वोट पाकर भी चुनाव हार चुके थे. जबकि 1980 से 1990 तक कांग्रेस के विधायक रहे नरेंद्र सिंह भाटी की बड़े अंतर से जीत हुई और वह तीसरी बार विधानसभा पहुंचे.

10वां विधानसभा चुनाव 1998

1998 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने रणनीति बदली और अब कांग्रेस के उम्मीदवार नरेंद्र सिंह भाटी के खिलाफ एक मजबूत राजपूत उम्मीदवार के तौर पर राघवेंद्र प्रताप सिंह को उतारा. हालांकि भाजपा की रणनीति असफल रही और राघवेंद्र प्रताप सिंह को हार का सामना करना पड़ा. जबकि नरेंद्र सिंह भाटी चौथी बार ओसियां से विधायक चुने गए.

11वां विधानसभा चुनाव 2003

2003 के विधानसभा चुनाव, एक बार फिर ओसियां के सियासी इतिहास में सिर्फ बड़ा बदलाव लेकर आया. इस चुनाव में कांग्रेस ने अपने चार बार के विधायक रहे नरेंद्र सिंह भाटी को ही चुनावी जंग में हो उतारा तो वहीं बीजेपी ओसियां के बड़े चेहरे रहे बन्ने सिंह को लेकर आई. इस चुनाव में बन्ने सिंह की 47,414 वोटों से जीत हुई, जबकि नरेंद्र सिंह भाटी को हार का सामना करना पड़ा.

12वां विधानसभा चुनाव 2008

इस चुनाव में ओसियां सीट का जातीय गणित बदल चुका था, क्योंकि चुनाव से पहले हुए परिसीमन की वजह से एक बार फिर नया इतिहास रचा जाना था, विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने ओसियां के पहले विधायक रहे वरिष्ठ जाट नेता परसराम मदेरणा के पुत्र महिपाल मदेरणा को टिकट दिया. महिपाल मदेरणा इससे पहले भोपालगढ़ से चुनाव लड़ते आ रहे थे, लेकिन भोपालगढ़ परिसीमन के बाद आरक्षित सीट हो गई. लिहाजा ऐसे में महिपाल मदेरणा चुनावी ताल ठोकने के लिए ओसियां सीट से आ गए जबकि उन्हें निर्दलीय उम्मीदवार शंभू सिंह ने कड़ी टक्कर दी. इस चुनाव में महिपाल मदेरणा की जीत हुई, हालांकि उनका यह कार्यकाल विवादों से भरा रहा.

13वां विधानसभा चुनाव 2013

2008 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत चुके महिपाल मदेरणा का कार्यकाल बेहद विवादों से भरा रहा. लिहाजा इसका फायदा 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिला. भाजपा की ओर से भैराराम चौधरी चुनावी ताल ठोक रहे तो वहीं मदेरणा बहू लीला मदेरणा कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरी. हालांकि लीला मदेरणा को हार का सामना करना पड़ा और भैराराम चौधरी की जीत हुई.

14वां विधानसभा चुनाव 2018

2018 के विधानसभा चुनाव में एक बड़ी चुनौती कांग्रेस के सामने थी, कांग्रेस ने मदेरणा परिवार की अगली पीढ़ी पर ही दांव खेलते हुए दिव्या मदेरणा को अपना उम्मीदवार बनाया. दिव्या मदेरणा के कंधों पर अपने दादा और पिता की सियासी विरासत को आगे बढ़ाने की चुनौती थी, तो वहीं बीजेपी की ओर से भैराराम चौधरी उम्मीदवार बने. हालांकि पहली बार चुनाव लड़ रही दिव्या मदेरणा की बड़े अंतर से जीत हुई और वह ओसियां के सियासी इतिहास की पहली महिला विधायक चुनी गई.

सबसे बड़ी जीत-हार

ओसियां विधानसभा सीट पर सबसे बड़ी जीत का रिकॉर्ड रंजीत सिंह राठौड़ के नाम पर दर्ज है. 1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते रणजीत सिंह राठौड़ ने 22,841 वोटों से के अंतर से स्वराज पार्टी के रतन सिंह को चुनावी शिकस्त दी थी, जबकि इसके कुछ सालों बाद ही ओसियां की जनता ने सबसे कड़ा मुकाबला भी देखा. यह मुकाबला था, 1990 के विधानसभा चुनाव का. इस चुनाव में राम नारायण विश्नोई वर्सेस नरेंद्र सिंह भाटी देखने को मिला. जनता दल की टिकट पर चुनाव लड़ रहे नारायण सिंह विश्नोई को 32,484 वोट मिले थे जबकि कांग्रेस के उम्मीदवार नरेंद्र सिंह भाटी को 32,405 वोट मिले यानी जीत और हार का अंतर महज 79 वोटों का था. यह चुनाव ओसियां चुनावी इतिहास में सबसे कम अंतर से जीत के रूप में दर्ज हो गई.

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