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राजस्थान में कांग्रेस-भाजपा के सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूले से जाट-राजपूतों को फायदा, जानें वजह

राजस्थान में आगामी विधानसभा चुनाव के लिए विभिन्न सीटों पर उम्मीदवारों के चयन में कांग्रेस और भाजपा सोशल इंजीनियरिंग की रणनीति का पालन कर रही हैं. दोनों पार्टियों ने दो-दो लिस्ट जारी की हैं. बीजेपी ने 124 तो वहीं कांग्रेस ने 76 सीटों पर अपने उम्मीदवारों को टिकट दिया.

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राजस्थान में कांग्रेस-भाजपा के सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूले से  जाट-राजपूतों को फायदा, जानें वजह
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Updated: Oct 28, 2023, 08:34 PM IST

Rajasthan Eletion 2023: राजस्थान में आगामी विधानसभा चुनाव के लिए विभिन्न सीटों पर उम्मीदवारों के चयन में कांग्रेस और भाजपा सोशल इंजीनियरिंग की रणनीति का पालन कर रही हैं. दोनों पार्टियों ने दो-दो लिस्ट जारी की हैं. बीजेपी ने 124 तो वहीं कांग्रेस ने 76 सीटों पर अपने उम्मीदवारों को टिकट दिया. टिकट बंटवारे में सोशल इंजीनियरिंग साफ नजर आ रही है क्योंकि दोनों पार्टियों ने लगभग हर प्रमुख समुदाय के प्रतिनिधियों को शामिल कर उन्हें लुभाने की कोशिश की है. हालांकि, टिकटों का वितरण भी व्यक्तिगत वोट खींचने की शक्ति के अनुसार किया गया है. राजनीतिक विशेषज्ञों ने आईएएनएस को बताया कि दोनों पार्टियों की ओर से जाट समुदाय को ज्यादा महत्व दिया गया है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों की लिस्ट में जाट समुदाय को सबसे ज्यादा तवज्जो दी गई है.

राजस्थान में जातीय बहुलता और प्रभाव को देखते हुए बीजेपी ने अब तक 21 (17 फीसदी) टिकट जाट नेताओं को दिए हैं, जबकि कांग्रेस ने 15 (20 फीसदी) टिकट दिए हैं.
उन्होंने कहा, ''आगामी सूचियों में भी जाट समुदाय का दबदबा रहने की उम्मीद है. हर चुनाव में करीब 35 विधायक जाट समुदाय से ही चुने जाते हैं. ''इसके अलावा बीजेपी ने भी अपने चिरपरिचित अंदाज में 20 सीटों पर ब्राह्मण और वैश्य उम्मीदवारों को उतारकर अच्छी संख्या में टिकट दिए हैं. इसका मतलब है कि बीजेपी ने अब तक 16 फीसदी से ज्यादा टिकट इन दोनों समुदायों को दिए हैं.

ब्राह्मण और वैश्य उम्मीदवार

अगर हम कांग्रेस की बात करें तो पार्टी ने अब तक ब्राह्मण और वैश्य समुदाय को 11 टिकट (15 प्रतिशत) दिए हैं.अब तक भाजपा ने राजपूत समुदाय को लगभग 10 प्रतिशत टिकट दिए हैं और कांग्रेस ने केवल 5 प्रतिशत को टिकट दिए हैं. हालांकि, कांग्रेस के करीब 125 टिकट अभी घोषित होने बाकी हैं. ऐसे में भविष्य में इन समुदायों के टिकट बढ़ सकते हैं.

दोनों पार्टियों ने सांगानेर (जयपुर), बीकानेर पश्चिम और केकड़ी सीट से ब्राह्मण उम्मीदवारों को टिकट दिया है. यहां ब्राह्मणों का सबसे बड़ा और प्रभावशाली वोट बैंक है.हालांकि, मालवीय नगर में भाजपा ने वैश्य समुदाय के चेहरे कालीचरण सराफ को मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस ने अर्चना शर्मा को मैदान में उतारकर ब्राह्मण चेहरे पर अपना दांव लगाया है. मालवीय नगर में ब्राह्मण और वैश्य मतदाता सबसे ज्यादा प्रभावशाली हैं. नाथद्वारा में ब्राह्मण सबसे बड़ा वोट बैंक है, जहां कांग्रेस के उम्मीदवार कद्दावर नेता सीपी जोशी हैं,

जाट और राजपूत

वहीं बीजेपी ने पूर्व मेवाड़ राजघराने के विश्वराज सिंह मेवाड़ को टिकट दिया है. महाराणा प्रताप से जुड़ी भावनाओं को ध्यान में रखते हुए, भाजपा ने मेवाड़ की इस महत्वपूर्ण सीट से एक राजपूत चेहरे को मैदान में उतारा है. जाट समुदाय का प्रभाव लक्ष्मणगढ़, मंडावा, बायतु, झुंझुनू, नावां और डीग-कुम्हेर में दिखता है. जानकारों का कहना है कि यही वजह है कि यहां दोनों पार्टियों के उम्मीदवार जाट हैं. हालांकि, डीग-कुम्हेर में जाटों के साथ-साथ गुर्जर और जावा वोट बैंक भी प्रभावी हैं.

नागौर की परबतसर सीट पर जाट और राजपूत वोट बैंक अहम हैं. यहां से जाट विधायक रामनिवास गवरिया कांग्रेस के उम्मीदवार हैं, जबकि बीजेपी ने राजपूत चेहरे मानसिंह किनसरिया पर दांव लगाया है. इसी तरह नोखा में जाट और बिश्नोई चेहरों के बीच लड़ाई है. सवाई माधोपुर की बात करें तो यहां मीणा, गुर्जर और मुस्लिम प्रमुख वोट बैंक हैं. यहां बीजेपी की ओर से किरोड़ी लाल मीणा उम्मीदवार हैं, जबकि गुर्जर और मुस्लिम मिलकर दूसरा सबसे बड़ा वोट बैंक हैं. यहां से कांग्रेस विधायक दानिश अबरार हैं.

गुर्जर- मुस्लिम उम्मीदवार

कांग्रेस ने अब तक जारी सूचियों में छह मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, जबकि भाजपा के पास अब तक कोई मुस्लिम चेहरा नहीं है. दूसरी ओर, जहां भाजपा ने दो सिंधी उम्मीदवारों को टिकट दिया है, वहीं कांग्रेस ने अब तक किसी को भी मैदान में नहीं उतारा है. दिलचस्प बात यह है कि दोनों पार्टियों की ओर से लगभग बराबर संख्या में टिकट गुर्जर उम्मीदवारों को दिए गए हैं. अब तक बीजेपी से पांच और कांग्रेस से चार गुर्जर उम्मीदवारों को टिकट मिला है.

राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि सभी सीटों पर टिकट देने का मुख्य आधार जाति है. पार्टियां इलाके के जातीय समीकरण को ध्यान में रखकर ही टिकट देती हैं. लेकिन, कभी-कभी एक परिवार का प्रभाव या ध्रुवीकरण भी महत्वपूर्ण फैक्टर होते हैं. कई बार जातिगत आधार न होने के बावजूद किसी नेता को क्षेत्र में उसके परिवार के प्रभाव के कारण टिकट मिल जाता है. उसी आधार पर नेता चुनाव भी जीतते हैं.

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