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Mughal Empire: इस संत ने तोड़ा था अकबर का घमंड! जेल में डालने की कर दी थी गलती

Mughal Dynasty: मुगल (Mughal) बादशाह अकबर (Akbar) यूं तो शक्तिशाली राजा था लेकिन एक बार उसका घमंड एक संत ने तोड़ दिया था. सनातन धर्म में इस संत को संत शिरोमणि माना जाता है. इस संत ने ही हनुमान चालीसा की रचना की. कहते हैं कि मुगल बादशाह ने एक बार इस संत को जेल में कैद कर लिया था और फिर उसको इस दुस्साहस का खामियाजा भुगतना पड़ा था. आखिर में परेशान होकर अकबर ने संत शिरोमणि को रिहा कर दिया था. इससे पहले अकबर ने जो बड़ा ऑफर संत को दिया था उन्होंने वह ठुकरा दिया था. आइए जानते हैं कब और किस संत ने मुगल बादशाह अकबर का घमंड तोड़ा था.

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बता दें कि मुगल सम्राट अकबर ने इस संत को जेल में डाल दिया था क्योंकि उन्होंने बादशाह का उसके नवरत्नों में शामिल होने का प्रस्ताव ठुकरा दिया था. अकबर ने संत को फतेहपुर सीकरी की जेल में बंद कर दिया था. लेकिन बाद ऐसी घटना हुई जिसके कारण अकबर संत को रिहा करने के लिए मजबूर हो गया.

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किवदंती के अनुसार, मुगल बादशाह अकबर ने जब संत शिरोमणि को फतेहपुर सीकरी की जेल में कैद कर लिया तो बंदरों ने जेल में उत्पात मचाना शुरू कर दिया. बंदरों ने जेल के सुरक्षाकर्मियों का जीना दुश्वार कर दिया. लंबे समय तक बंदर फतेहपुर सीकरी जेल में सुरक्षाकर्मियों के लिए परेशानी का सबब बने रहे. जब कोई हल नहीं निकला तो अकबर ने मजबूरन संत को रिहा कर दिया.

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akbar navratna

जान लें कि अकबर का घमंड तोड़ने वाले संत शिरोमणि कोई और नहीं गोस्वामी तुलसीदास जी ही थे. अकबर के नवरत्नों के बारे में आपने जरूर सुना होगा. गोस्वामी तुलसीदास को अकबर अपने नवरत्नों में शामिल करना चाहता था. लेकिन उनको ये मंजूर नहीं था. गोस्वामी तुलसीदास ने साफ कह दिया था कि वह अकबर का गुणगान नहीं करेंगे. भगवान श्रीराम ही सिर्फ उनके स्वामी हैं.

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गोस्वामी तुलसीदास ने अकबर के प्रस्ताव का जवाब देते हुए चौपाई लिखी, 'हौं तो चाकर राम के पटौ लिखौ दरबार। अब की तुलसी होहिंगे नर के मनसबदार।। इस चौपाई में उन्होंने कहा कि हमारा तो एक ही राजा हैं और वह भगवान श्रीराम हैं. बाकी श्रीराम के अलावा मैं किसी को राजा नहीं मानता. अब क्या तुलसीदास किसी मानव के यहां नौकरी करेंगे.

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जान लीजिए कि जब अकबर ने गोस्वामी तुलसीदास के पास प्रस्ताव भेजा था तब उसकी सल्तनत एशिया में सबसे बड़ी थी. अकबर के नवरत्नों में शामिल अब्दुल रहीम खानखाना और तोडरमल गोस्वामी तुलसीदास के पास बादशाह का प्रस्ताव लेकर गए थे, लेकिन उन्होंने बिना डरे साफ मना कर दिया था.





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