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Mughal Emperor Shah Alam II: यह मुगल बादशाह हद से अधिक निकला कायर, छोटी सी फौज के सामने टेक दिए घुटने

Mughal Emperor Shah Alam II:  मुगल शासक शाह आलम द्वितीय के समय मुगलिया साम्राज्य अंतिम सांसें गिन रहा था. रही सही कसर 1764 के बक्सर युद्ध ने पूरी कर दी जब अवध के नवाब, बंगाल के नवाब औक मुगलिया फौज की संयुक्त ताकत पर अंग्रेज भारी पड़े.

Mughal Emperor Shah Alam II: यह मुगल बादशाह हद से अधिक निकला कायर, छोटी सी फौज के सामने टेक दिए घुटने
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Lalit Rai|Updated: Aug 19, 2023, 06:41 AM IST

Mughal Emperor Shah Alam II History:  18वीं सदी के दूसरे हिस्से में यानी 1750 के बाद मुगल साम्राज्य एक तरह से अंतिम सांस गिन रहा था. 1761 में पानीपत की लड़ाई ने साबित कर दिया कि हिंदुस्तान की दिशा किस ओर जाने वाली है. अहमद शाह अब्दाली के खिलाफ मराठा डट कर लड़े लेकिन कामयाबी हाथ नहीं लगी. पानीपत में जो कुछ हो रहा था उसे अंग्रेज भी देख रहे थे. 1757 में प्लासी की लड़ाई में बंगाल के नवाब के खिलाफ मिली जीत के बाद उनके हौसले बुलंद थे. उन्हें बस मौके का इंतजार था. वो मौका 1764 में आया जब बक्सर की लड़ाई ने यह साबित कर दिया कि महान होने का दंभ भरने वाले मुगलों की ताकत जमीन पर अब छीड़ हो चली थी.

1764 में लड़ा गया बक्सर युद्ध

1764 में बिहार के बक्सर में मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय, अवध के नवाब और बंगाल के नवाब मीर कासिम की संयुक्त सेना को अंग्रेज सेनापति मेजर हेक्टर मुनरो ने महज दो दिन की लड़ाई में हरा दिया. अंग्रेजों की तुलना में इन तीनों की संयुक्त फौज कहीं अधिक थी लेकिन योग्यता के मामले में वो उन्नीस साबित हुआ और देश की तकदीर मुगलों के हाथ से निकलकर अंग्रेजों के हाथ में चली गई. इतिहासकार बताते हैं कि बक्सर में अंग्रेज और संयुक्त सेनाएं एकदूसरे के सामने आईं तो ऐसा लगने लगा कि 1757 में प्लासी की लड़ाई को भले ही अंग्रेजों ने जीत लिया हो बक्सर में उनकी हार निश्चित है लेकिन जिस तरह से महज दो दिन की लड़ाई में नतीजा अंग्रेजों के पक्ष में गया उससे साफ था था कि संयुक्त फौज हांथी के दांत की तरह थी.

1765 का आत्मघाती समझौता

बक्सर की लड़ाई के बाद 1765 में अंग्रेजों और मुगल बादशाह के बीच संधि होती है जिसके बाद पश्चिम बंगाल,बिहार, झारखंड, उड़ीसा का दीवानी और राजस्व अधिकार पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया. देश के इतने हिस्सों पर राजस्व अधिकार हासिल करने का मतलब साफ था कि मुगलों की सत्ता अब सही मायनों में दिल्ली तक सीमित रह गई है. इस समझौते के बाद अंग्रेज अब खुलकर मैदान में आ गए. वो मुगल साम्राज्य के व्यापार में भी दखल देने लगे. कलकत्ता में अब कहने के लिए नवाब का शासन था. हकीकत में वो सभी फैसले अंग्रेजों की सलाह के आधार पर किया करता था. बंगाल में अंग्रेजों में अपने मुताबिक अलग अलग चेहरों को सत्ता सौंपते रहे और बंगाल की तरफ से सीधी नजर दिल्ली पर जा टिकी थी. इतिहासकार बताते हैं कि अब यह सिर्फ समय की बात थी जब ईस्ट इंडिया कंपनी ऐलान करती है कि अब भारत में शासन सत्ता के असली चेहरे वो ही हैं, मुगल बादशाह और नवाब तो महज दिखावा हैं.

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